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Saturday, 21 December, 2024
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छत्तीसगढ़ के एक गांव में 15 साल में 130 किडनी की बीमारी से मौतें हुईं, वजह कोई नहीं जानता

छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि इन गांवों में फैली क्रोनिक किडनी डिसीज़ (सीकेडी) के कारणों का पता लगाने का निरंतर प्रयास जारी है लेकिन इसका कोई एक कारण अब तक सामने नहीं आया है.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा और 9 अन्य गावों में किडनी की क्रोनिक बीमारी से पिछले 15 सालों में होने वाली 130 मौतें एक पहेली बनी हुई हैं वहीं इस इलाके की करीब 10-15 हजार की आबादी इसकी जद में आ चुकी है.

राज्य सरकार का कहना है कि रायपुर से करीब 250 किलोमीटर दूर देवभोग हीरा खदान के पास स्थित इन गांवों में फैली क्रोनिक किडनी डिसीज़ (सीकेडी) के कारणों का पता लगाने का निरंतर प्रयास जारी है लेकिन इसका कोई एक कारण अब तक सामने नहीं आया है.

सुपेबेड़ा के ग्रामीणों का कहना है कि उनके 1800 की जनसंख्या वाले गांव में पिछले 15 सालों में 130 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 80% घरों में एक या एक से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी का इलाज करा रहे हैं.

ग्रामीणों का यह भी कहना है कि यह बीमारी सुपेबेड़ा तक सीमित नहीं है बल्कि इससे लगने वाले 9-11 अन्य गांवों को भी प्रभावित किया है. इस क्षेत्र की करीब 15 हजार की आबादी सीकेडी की जद में आ चुकी है. हालांकि प्रमुखता से सुपेबेड़ा गांव का नाम ही लिया जाता है क्योंकि यहां के लोगों ने अपनी सुरक्षा के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया है.


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बीमारी का कोई ठोस कारण सामने नहीं आया: सरकार

छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने दिप्रिंट को बताया कि सुपेबेड़ा और उससे लगने वाले गांवों में क्रोनिक किडनी डिसीज़ (सीकेडी) के ही लक्षण मिले हैं. इससे कई लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन इस बीमारी का अभी तक कोई एक कारण पुख्ता तौर पर सामने नहीं आया है.

उन्होंने कहा, ‘पीने के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड और किडनी की बीमारी को जन्म देने वाले अन्य हैवी मेटल्स की अधिक मात्रा के अतिरिक्त जेनेटिक, शराब का सेवन जैसे दूसरे कारण भी हो सकते हैं.’

‘सुपेबेड़ा में पानी और मिट्टी के कुछ सैम्पलों की जांच की गई है जिससे पानी में हैवी मेटल्स की मात्रा ज्यादा देखी गई है लेकिन इसे पुख्ता तौर पर सीकेडी का मुख्य कारण नहीं माना जा सकता. राज्य सरकार द्वारा एम्स और पीजीआई चंडीगढ़ के विशेषज्ञों से सुपेबेड़ा और अन्य क्षेत्रों में सीकेडी के अध्ययन के लिए आग्रह किया गया है. उनके रिपोर्ट के बाद ही बीमारी के पुख्ता कारण सामने आ सकते हैं.’

क्या है एम्स और अन्य विशेषज्ञों की रिपोर्ट में

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायपुर, रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल रायपुर, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर और जॉर्ज इंस्टिट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ, नई दिल्ली के विशेषज्ञों द्वारा सुपेबेड़ा के किडनी मरीजों की अक्टूबर 2020 में जारी एक अध्यन रिपोर्ट में कहा गया है कि इन मरीजों में किडनी रोग के जनक माने जाने वाले हैवी मेटल्स आर्सेनिक, कैडमियम, मरकरी और लीड की मात्रा ज्यादा पाई गई थी.

सीकेडी ऑफ अननोन ओरिजिन इन सुपेबेड़ा छत्तीसगढ़, इंडिया ‘ के नाम से इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया, ’10 मरीजों के यूरीन परीक्षण में क्रोमियम, मैंगनीज़, फ्लोराइड और निकल की मात्रा काफी ज्यादा पाई गई है. लेकिन यूरीन में इन हैवी मेटल्स की उपस्थिति से यह नहीं कहा जा साकता कि ये किडनी की बीमारी के मुख्य कारक है. इसके लिए सीरम की जांच भी आवश्यक होगी.’

रिपोर्ट में कहा गया, ‘यह भारत में सीकेडी मरीजों के एक नए क्षेत्र में मिलने की पहली पुख्ता रिपोर्ट है जो अन्य रिपोर्ट्स से अलग है. इस गांव और आसपास के क्षत्रों में सीकेडी के लोड और उसके कारण की जानकारियों के लिए और विस्तृत अध्यन की आवश्यकता है.’

इस अध्यन रिपोर्ट में किडनी की बीमारी के संभावित कारणों में जेनेटिक हिस्ट्री को भी माना गया है. रिपोर्ट में सुपेबेड़ा के 12 किडनी मरीजों की जांच और उनके यूरीन परीक्षणों का पूरा उल्लेख है.


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15 साल में 130 मौतें और ग्रामीणों का संघर्ष

सुपेबेड़ा में सीकेडी से अपने पिता को खो चुके त्रिलोचन सोनवानी ने दिप्रिंट को बताया, ‘गांव में इस बीमारी से अब तक करीब 130 मौतें हो चुकी हैं और कई लोग अभी इससे जूझ रहे हैं लेकिन सरकार के स्तर पर इसके समाधान के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है जबकि गांव के लोग इसके लिए लगतार संघर्ष कर रहे हैं.’

सोनवानी और दूसरे ग्रामीणों का कहना है कि सीकेडी से होने वाली मौतों का मुख्य कारण सुपेबेड़ा और दूसरे गांवों के बोरवेल के पानी में हैवी मेटल की ज्यादा मात्रा का होना है.

सोनवानी कहते हैं, ‘सुपेबेड़ा में शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां या तो किडनी के मरीज न हों या फिर वहां पिछले डेढ़ दशक में इस बीमारी से किसी की मौत न हुई हो. गांव में किडनी की बीमारी से मौत का सिलसिला पिछले 15 सालों से चल रहा है जब पहली मौत 2005 में 45 वर्षीय नीलाम्बर नेताम की हुई.’

सोनवानी के अनुसार, ‘गांववालों को 2016 तक ये मौतें सामान्य लगती थी लेकिन मई 2017 में एक महीने के अंदर 23 ग्रामीणों की मौत ने यहां के निवासियों को विचलित कर दिया. इन मृतकों में 22-23 वर्ष के युवा भी थे. लगातार हो रही मौतों से परेशान होकर हम लोगों ने ओडिशा के भोपालपटनम और विशाखापट्टनम के अस्पतालों, जहां उनका इलाज चल रहा था, से पता लगाया तो जानकारी मिली कि सभी की मौत किडनी फेल होने से हुई थी. वहां के डॉक्टरों ने बताया कि गांव का पानी दूषित हो चुका है, उसमें हैवी मेटल की मात्रा बहुत अधिक है.’

पिता संतोष आंदिल और बड़े भाई कमलेश आंदिल को खो चुके 22 वर्षीय ग्रामीण कुबेर आंदिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे पिता की मृत्यु 6-7 साल पहले हुई फिर 2018 में बड़े भाई को खो दिया. दोनों को हमने बीमारी से जूझते देखा. अब घर में मैं और मां अकेले रहते हैं. डर लगता है, पता नहीं हमारी बारी कब आ जाए.’

‘वर्तमान में गांव के 3 लोगों की हालत बहुत गंभीर है. उनका इलाज विशाखापट्टनम में चल रहा है. लेकिन सुपेबेड़ा सहित आस पास के करीब 9 दूसरे गांवों में किडनी की बीमारी से ग्रसित लोगों की तादात बहुत अधिक है. यहां सरकार के अधिकारी बहुत आए लेकिन अब तक गांव में फैली इस महामारी का कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है. इलाज करने वाले ज्यादातर डॉक्टरों ने अभी तक पानी की खराबी को कारण बताया है.’

सुपेबेड़ा के सरपंच महेन्द्र मथरा ने बताया, ‘इस क्षेत्र में सुपेबेड़ा सहित 9-11 अन्य गांवों की करीब 10-15 हजार की आबादी किडनी की बीमारी की जद में आ चुकी हैं. मेरे पिता जयधर की मौत भी 2015 में किडनी फेल होने से हुई.’

‘गांव में 2011 की जनगणना के अनुसार 223 परिवारों में 80 प्रतिशत में किडनी के मरीज अलग-अलग स्टेज में हैं. 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन के बाद अब तक सुपेबेड़ा में अकेले 19 लोगों की मौत हो चुकी है जो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. इसके अलावा अन्य गांवों में भी कई मौतें हुई हैं लेकिन वहां के लोग इसे छिपाते हैं.’

मथरा का कहना है, ‘यहां पर लोगों की कई सालों से मौत हो रही थी लेकिन किसी को कुछ पता नहीं चलता था. मामला ज्यादा हाईलाइट 2015-16 में मीडिया में आने के बाद हुआ. यहां जो भी सरकारी आदमी या विशेषज्ञ आते हैं सभी क्षेत्र के पानी को दोष देते हैं. इसके बावजूद इसे ठीक करने के लिए कोई कार्रवाई नही हुई है. गांववालों को वही दूषित पानी पीना पड़ रहा है.’

युवाओं को नहीं मिल रहे रिश्ते, रिश्तेदार नहीं पीते घर का पानी

गांवों के लोगों का कहना है कि किडनी की बीमारी इस क्षेत्र के लिए अब अभिशाप बन गई है. रिश्तेदार और दूसरे गांव के लोग सुपेबेड़ा के ग्रामीणों से अब मुंह मोड़ने लगे हैं.

आंदिल का कहना है कि गांव में 20-23 साल के करीब 50 युवाओं और युवतियों के लिए शादी का कोई नया रिश्ता नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा, ‘इनमें करीब 25 युवक और इतनी ही संख्या में लड़कियों के लिए कोई शादी का रिश्ता नहीं मिल रहा है.’

महेंद्र के अनुसार, ‘बहुत बुरा लगता है जब रिश्तेदार हमारे घर पानी पीने से मना कर देते हैं, बाहर से आने वाले लोग अपना पानी साथ लेकर आते हैं. हमें सामाजिक और आर्थिक प्रताड़ना भी झेलना पड़ रहा है. लेकिन हम इसी पानी को पीने के लिए मजबूर हैं.’


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‘पीने का पानी बोरवेल नहीं नदी का दिया जाए’

सुपेबेड़ा के लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में सब कुछ ठीक है सिवाय पानी के. वे सालों से मांग कर रहे हैं कि उनको पीने के लिए पास में बहने वाली तेल नदी का पानी मुहैया कराया जाए लेकिन सरकार आज तक ऐसा नहीं करा पाई है.

करीब साल भर पहले प्रधानमंत्री नल जल योजना के तहत कि इस दिशा में कुछ काम चल रहा था लेकिन वह भी अब बंद हो गया है.

त्रिलोचन सोनवानी कहते हैं, ‘बीमारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हए सरकार ने सुपेबेड़ा के 28 में से 23 बोरवेल बंद तो कर दिया लेकिन उसका कोई विकल्प नहीं दिया जिससे ग्रामीणों को पीने का पानी भी कम मिल रहा है. सुपेबेड़ा और अन्य गांवों को कई सालों से तेल नदी के पानी से जोड़ने की मांग चल रही है लेकिन सरकार आजतक ऐसा नहीं कर पाई है. पानी का स्रोत बदलने से करीब 15 हजार लोगों की जिंदगी बीमारी से बच सकती है.’

महेंद्र ने कहा, ‘नदी के दूसरी तरफ ओडिशा के कालाहांडी जिले की करीब 70 प्रतिशत आबादी तेल नदी का पानी पीती है. वहां लोगों को किडनी की कोई बीमारी का सामना नहीं करना पड़ रहा है. सरकार से हमारी मांग सिर्फ तेल नदी का पानी मुहैया कराने की है लेकिन आजतक वह भी पूरा नहीं हुआ है. संभव है कि पानी का स्रोत बदलने से इस क्षेत्र के लोग समय से पहले मरने से बच सकते हैं.’

नदी के पानी के लिए ग्रामीणों की मांग पर दिप्रिंट से बात करते हुए देवभोग के एसडीएम अनुपम आशीष टोप्पो ने बताया, ‘लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) विभाग द्वारा इस मामले में एक स्पेशल प्रोजेक्ट बनाकर तैयार किया गया है. इसके तहत तेल नदी से पीने का पानी सुपेबेड़ा और इस क्लस्टर के सभी 9-10 गांवों को मुहैया कराया जाएगा. प्रोजेक्ट की टेंडरिंग प्रक्रिया जल्द पूरी कर ली जाएगी और काम चालू हो जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘ग्रामीणों को आने वाले 7-8 महीनों में नदी का पानी मिलने लगेगा.’


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