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Saturday, 4 May, 2024
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4 राज्यों में BJP के घोषणापत्र तय करने वाली थीम में ‘धर्मांतरण, मंदिर’ शामिल लेकिन केरल में ‘गाय’ का जिक्र नहीं

आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसी से यह तय होगा कि दक्षिण में पार्टी के विस्तार की योजनाएं कितनी सफल या विफल रहती हैं और बंगाल में वह कितनी पैठ बना पाती है.

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नई दिल्ली: धर्मांतरण और ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून, मंदिर निर्माण और सांप्रदायिक बहिष्करण पर रोक—ये कुछ ऐसी सामान्य थीम हैं जो पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा की तरफ से जारी घोषणापत्रों की रूपरेखा निर्धारित करती हैं.

पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु के लिए जारी घोषणापत्र में गोहत्या और/या गोतस्करी पर कड़ाई से रोक का वादा किया गया है लेकिन केरल में ऐसा नहीं किया गया है, जहां गोमांस का काफी सेवन किया जाता है.

आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसी से तय होगा कि दक्षिण भारत में पार्टी के विस्तार की योजनाएं कितनी सफल या असफल रहती हैं, जहां इसने अब तक केवल एक राज्य (कर्नाटक) में ही सत्ता का स्वाद चखा है.

भाजपा असम में फिर सत्ता हासिल करने की कवायद में जुटी है, जहां वह 2016 में पहली बार अपनी सरकार बनाने में सफल रही थी, वहीं पश्चिम बंगाल पर भी उसने पूरा ध्यान केंद्रित कर रखा है. पार्टी ने हाल के वर्षों में इस राज्य में अच्छी-खासी बढ़त बनाई है, और वामपंथी दलों और कांग्रेस को पछाड़कर चुनाव में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरी है.

चुनाव के नतीजे 2 मई को सामने आएंगे.

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मंदिर प्रशासन पर वादा

पश्चिम बंगाल के चुनाव आठ चरणों में होंगे, ये 27 मार्च को शुरू होंगे और 29 अप्रैल तक चलेंगे. राज्य में पार्टी ने भूमि पर कथित गैरकानूनी कब्जे, पशु तस्करी और सांप्रदायिक हिंसा पर अंकुश के लिए अलग-अलग ‘टास्क फोर्स’ गठित करने का वादा किया है.

घोषणापत्र के अनुसार, ‘निरातोंको टास्क फोर्स’ जहां ‘सांप्रदायिक और आतंकी हिंसा की घटनाओं की जांच और इन पर अंकुश की जिम्मेदारी संभालेगी और ऐसे अपराधों में लिप्त लोगों पर कड़ी कार्रवाई करेगी, ‘गो सुरोक्षा टास्क फोर्स’ सीमा पार गायों की खरीद-फरोख्त और अवैध तस्करी पर रोक लगाने के उद्देश्य से बनेगी.

घोषणापत्र में पूरे राज्य में मंदिरों के पुनर्निर्माण और मरम्मत के लिए 100 करोड़ रुपये की ‘मंदिर जीर्णोद्धार निधि’ का वादा भी किया गया है.

मंदिरों का मुद्दा तमिलनाडु के घोषणापत्र में भी शामिल है, जहां 6 अप्रैल को एक ही चरण में चुनाव होने हैं. भाजपा यहां पर सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन करके राज्य में 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

तमिल में ‘थोलाएनोक्कू पत्रम्’ कहे जाने वाले घोषणापत्र में कहा गया है कि भाजपा सुनिश्चित करेगी कि हिंदू मंदिरों का प्रशासनिक जिम्मा ‘हिंदू विद्वानों और संतों के एक अलग बोर्ड’ को सौंपा जाए. मंदिर प्रशासन मौजूदा समय में राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

न्याय में देरी, न्याय न मिलने जैसा होने का तर्क देते हुए घोषणापत्र में काफी समय से लंबित सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े मामलों को दैनिक सुनवाई के आधार पर निपटाने का वादा किया गया है, जैसा वादा उसने पश्चिम बंगाल में भी किया है.

भाजपा ने इसके साथ ही जबरन या बहला-फुसलाकर किए जाने वाले धर्मांतरण को अपराध की श्रेणी में लाकर ‘कड़े धर्मांतरण निरोधी कानून’ बनाने का वादा किया है. इसमें कहा गया है, ‘जबरन धर्मांतरण धार्मिक गतिविधियों की आजादी के अधिकार-धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के समान नहीं है. राज्य में कड़े धर्मांतरण निरोधी कानून लागू किए जाएंगे, ताकि जबरन या बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन कराने पर रोक लग सके.

घोषणापत्र कहता है कि राज्य में सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए 1982 के कन्याकुमारी दंगों की जांच के लिए बने जस्टिस वेणुगोपाल आयोग की रिपोर्ट में शामिल सिफारिशों को लागू किया जाएगा.

‘गौ रक्षा’ शीर्षक के साथ शामिल वादे में पार्टी ने कहा है कि तमिलनाडु में भारतीय संविधान के अनुरूप ‘गोहत्या विरोधी कानून’ बनाया जाएगा.

इसमें कहा गया है, ‘बीफ और मांस के लिए केरल और अन्य राज्यों में गो तस्करी पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाया जाएगा. विभिन्न मंदिरों में गौशालाओं की स्थापना की जाएगी और पशु तस्करों से जब्त गायों की देखभाल की जाएगी.’

‘लव जिहाद, लैंड जिहाद’

असम, जहां 27 मार्च, 1 अप्रैल और 6 अप्रैल को तीन चरणों में चुनाव होने हैं, में पार्टी ने ‘लव जिहाद और लैंड जिहाद के खतरे से निपटने और उसे जड़ से खत्म करने के लिए उपयुक्त कानून और नीतियां’ लागू करने का वादा किया है.

‘असम में मवेशी तस्करी के खतरे’ को समाप्त करने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स की पेशकश के साथ ही एक डी-रेडिकलाइजेशन पॉलिसी बनाने की बात भी कही गई जो ‘सांप्रदायिक बहिष्करण और अलगाववाद को हवा देने वाले लोगों और संगठनों पहचान करने और उन पर काबू पाने में मदद करेगी.’

मंदिर जीर्णोद्धार पर जोर दिए जाने के तहत इसने मां कामाख्या शक्ति पीठ, नवग्रह मंदिर और शिवडोल सहित महत्वपूर्ण मंदिरों के आसपास सड़क संपर्क में सुधार और होटलों में बिजली आपूर्ति, सार्वजनिक परिवहन की सुविधा, जगह-जगह रेस्टरूम जैसी बुनियादी सुविधाएं बेहतर बनाने का वादा किया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके.

घोषणापत्र में कहा गया है कि भाजपा सत्ता में आई तो धार्मिक स्थलों के आसपास अवैध अतिक्रमण पर भी रोक लगाएगी. पार्टी का कहना है, ‘हम नामघर (प्रार्थना घरों) का अवैध अतिक्रमण रोकेंगे और उनके पुनर्निर्माण के लिए 2.5 लाख रुपये की मदद करेंगे.’

केरल, जहां भाजपा अपनी पैठ बढ़ाने की जी-तोड़ कोशिश में लगी है और ‘मेट्रो मैन’ ई. श्रीधरन को मैदान में उतारा है, में पार्टी ने वादा किया है कि मंदिर प्रशासन को राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त किया जाएगा और भक्तों को सौंपा जाएगा.

सबरीमला मंदिर में मासिक धर्म की आयु वाली लड़कियों और महिलाओं के प्रवेश को लेकर रहे विवाद के मद्देनजर भाजपा ने ‘सबरीमला मंदिर की परंपराओं और प्रथाओं के संरक्षण’ के लिए एक कानून लाने का भी वादा किया है.

अन्य वादों में शामिल हैं, ‘के.पी. शंकरन नायर आयोग की सिफारिश के आधार पर एक स्वतंत्र, गैर-राजनीतिक और भक्तों द्वारा नियंत्रित मंदिर प्रशासन के लिए कानून बनाना, मंदिरों की जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के लिए आवश्यक कदम उठाना, मंदिरों में सनातन धर्म के अध्ययन की व्यवस्था कायम करना, जीर्ण-शीर्ष अवस्था वाले मंदिरों के जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण की योजनाएं बनाना.’

इसके अलावा, पार्टी ने ‘लव जिहाद’ के खिलाफ एक कानून बनाने और जबरन धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाने की प्रतिबद्धता जताई है. केरल के लिए जारी घोषणापत्र में ‘गाय’ शब्द का एकमात्र उल्लेख गुरुवायूर मंदिर में ‘एलिफैंड यार्ड और काऊ शेड’ यानी उन्हें रखे जाने की जगह का विस्तार करने और आधुनिक सुविधाएं देने के संदर्भ में किया गया है.

केरल में 6 अप्रैल को एक ही चरण में चुनाव होगा.

भाजपा के घोषणापत्रों के संदर्भ में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बात चाहे राष्ट्रीय स्तर की करें या राज्यों के संबंध में, पार्टी अपने चुनावी वादों के जरिये अपने वैचारिक मुद्दों को सामने रखने के लिए जानी जाती है.

एक राजनीति विज्ञानी और थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में फेलो राहुल वर्मा ने कहा, ‘भले ही सार्वजनिक तौर पर या बड़े पैमाने पर इन पर चर्चा न होती हो लेकिन फिर भी घोषणापत्र राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. सबसे पहले, वे पार्टी कैडर के लिए इसका संकेत होते हैं कि वे मतदाताओं को अपने साथ कैसे जोड़ें. दूसरे, सत्ता में आने पर ये नेताओं के लिए एक टेम्पलेट के तौर पर काम करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जहां तक पार्टी घोषणापत्र की बात है, हाल के दिनों में भाजपा वैचारिक मुद्दों पर अन्य दलों की तुलना में खुद को ज्यादा मुखर ढंग से पेश करती रही है. राज्यों को लेकर इसके घोषणापत्रों में भी यही प्रतिबिंबित हो रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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