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Friday, 15 November, 2024
होमदेशअनुसूचित जाति के शिकायत पोर्टल पर दो महीने में मिली 1276 शिकायतें, आधी से अधिक ‘अत्याचार’ से जुड़ी

अनुसूचित जाति के शिकायत पोर्टल पर दो महीने में मिली 1276 शिकायतें, आधी से अधिक ‘अत्याचार’ से जुड़ी

अप्रैल में शुरू किए जाने के बाद से NCSC को 664 शिकायतें ‘अत्याचार’ के मामले में मिली हैं, 372 सामाजिक-आर्थिक मामलों से जुड़ी हैं, और 240 का संबंध सेवाओं के मुद्दों से है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के ऑनलाइन शिकायत पोर्टल को, इसके लॉन्च किए जाने के पहले दो महीनों में 1,276 शिकायतें हासिल हुई हैं. आधी से अधिक शिकायतों का संबंध ‘अत्याचार’ से है, जो उन तीन में से एक मद है जिनके अंतर्गत शिकायतें दर्ज कराई जा सकती हैं (सामाजिक-आर्थिक और सेवाएं अन्य दो हैं).

14 अप्रैल को लॉन्च किए गए इस पोर्टल का उद्देश्य, शुरू से अंत तक शिकायतों की ई-फाइलिंग और उनकी प्रगति पर नज़र रखना है. ये उन फिज़िकल शिकायतों के अतिरिक्त होती हैं, जो आयोग को हासिल होती हैं.

दिप्रिंट के हाथ लगे पोर्टल डेटा से पता चलता है कि 28 जून तक, कुल 1,276 में से 664 शिकायतें ‘अत्याचार’ के मद में मिली हैं, 372 सामाजिक-आर्थिक मामलों से जुड़ी हैं, और 240 का संबंध सेवाओं के मुद्दों से है.

जहां ‘अत्याचार’ में आगज़नी, हत्या का प्रयास, और जातिसूचक अपशब्द से लेकर असूचित जातियां एवं अनुसूचित जनजातियां (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत मानहानि और पुलिस की निष्क्रियता आती है, वहीं ‘सेवाओं’ से जुड़ी शिकायतों में जाति के आधार पर एससी प्रमाण पत्र जारी करने में देरी, जाति के आधार पर प्रोन्नति में देरी, और केंद्रीय मंत्रालय या विभागों अथवा राज्य सेवाओं या पीएसयूज़ में भेदभाव या उत्पीड़न के मामले आते हैं.

सामाजिक-आर्थिक अनुभाग में राज्य/यूटी/ केंद्रीय मंत्रालय/विभाग/ केंद्रीय पीएसयू/पीएसबी या संबंधित राज्य पीएसयू को चुना जाता है, और शिकायत का एक संक्षिप्त विवरण दिया जाता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, एनसीएससी अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि पोर्टल शिकायतें दर्ज करने में सहायक साबित हो रहा है, चूंकि इसमें कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी हिस्से से शिकायतें अपलोड कर सकता है. उन्होंने कहा कि ‘पोर्टल से शिकायतें दर्ज करने की संख्या बढ़ गई है’.

पोर्टल कैसे काम करता है ये समझाते हुए सांपला ने कहा कि पोर्टल पर शिकायतें प्राप्त होने के बाद, संबंधित पदाधिकारियों को एक नोटिस भेजा जाता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘कभी कभी पदाधिकारियों को मामले पर रिपोर्ट भेजने के लिए कहा जाता है, और उन्हें 15-30 दिन का समय दिया जाता है. अगर वो रिपोर्ट नहीं भेजते या इस समय अवधि में कोई जवाब नहीं देते, तो फिर एक और नोटिस भेजकर 7 दिन का और समय दिया जाता है. उसके बाद ही सुनवाई निर्धारित की जाती है. उस प्रक्रिया में एक महीने से अधिक लगता है, और ये अभी चल रही है. इसके पूरा हो जाने के बाद, हम इन शिकायतों की सुनवाई शुरू करेंगे’.

उन्होंने कहा, ‘जल्द ही हम एक एप भी शुरू करेंगे, जिससे लोगों के लिए अपनी शिकायतों को अपलोड करना आसान हो जाएगा. हम पोर्टल को गांव-स्तर पर सभी कॉमन सर्विस सेंटर्स में उपलब्ध कराने की भी तैयारी कर रहे हैं, जिससे कि जिन लोगों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है, वो भी जाकर अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं’.

आयोग के अनुसार, 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2020 के बीच, उसे कुल 19,264 (ऑफलाइन) शिकायतें प्राप्त हुईं.


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‘पोर्टल पर सबसे अधिक शिकायतें पश्चिम बंगाल से’

सांपला ने कहा कि पोर्टल पर शिकायतों का राज्यवार ब्योरा नहीं रखा जाता. लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि एनसीएससी शिकायतों को राज्यों के हिसाब से वर्गीकृत करने की प्रकिया में है, और शिकायतों को देखने पर पता चलता है कि ज़्यादातर शिकायतें बंगाली में अपलोड की गईं थीं, जिससे ज़ाहिर होता है कि अधिकतर पश्चिम बंगाल से मिली हैं’.

सांपला के अनुसार, एससी के सैकड़ों सदस्यों ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आयोग में शिकायतें दर्ज कराई हैं, जो 2 मई को घोषित किए गए थे. राज्य में- जहां राजनीतिक हिंसा आम बात है- नतीजे के बाद वाले दिनों में जिनमें तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी को हरा दिया, राज्य में भीषण हिंसा की घटनाएं देखी गईं.

सांपला ने, जो एक पूर्व बीजेपी सांसद हैं, कहा, ‘2 मई के बाद बंगाल से पोर्टल के बाहर कम से कम 4,000 शिकायतें हासिल हुई हैं. यही कारण है कि आयोग ने राज्य का दौरा भी किया, ताकि वहां चुनाव-बाद की हिंसा और एससीज़ के खिलाफ हो रहे अत्याचार का जायज़ा लिया जा सके’.

आयोग ने 14-15 मई को दो दिन के लिए राज्य का दौरा किया. उसका आरोप था कि अनुसूचित जातियों पर हुए हमलों के मामलों में, पुलिस ने अत्याचार निरोधक अधिनियम के तहत मुक़दमे दर्ज नहीं किए, और आयोग ने ममता बनर्जी सरकार से ऐसे पुलिस अधिकारियों को बर्ख़ास्त करने के लिए कहा.

उन्होंने कहा, ‘इसमें (बंगाल से शिकायतों) बलात्कार की कम से कम 15-20, और हत्या की 20-25 शिकायतें शामिल हैं. हमने देखा कि पुलिस ने ऐसे किसी मामले में एससी-एसटी एक्ट लागू नहीं किया था’.

दिप्रिंट ने इन आरोपों पर प्रतिक्रिया लेने के लिए पश्चिम बंगाल डीजीपी वीरेंद्र से संपर्क किया, लेकिन इस खबर के छपने तक उनका जवाब हासिल नहीं हुआ था. टीएमसी सांसद सुखेंदु सेखर रॉय ये कहते हुए इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया, केवल पुलिस इस आरोप का जवाब दे सकती है.

फरवरी में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से लोकसभा में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक़, 2015 और 2019 के बीच पश्चिम बंगाल में अत्याचार निरोधक अधिनियम के तहत कुल 1,048 मामले दर्ज किए गए जबकि उत्तर प्रदेश में 49,727, मध्य प्रदेश में 33,657, बिहार में 32,415, महाराष्ट्र में 11,319 और गुजरात में 7,880 मामले दर्ज हुए.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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