नई दिल्ली: 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, नौकरशाही हलकों में इस बात को लेकर हलचल थी कि कैसे गुजरात के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों को केंद्र सरकार और जांच एजेंसियों में प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया था.
यह ट्रेंड तीन साल पहले तक जारी रहा, जब रक्षा, शिक्षा और वाणिज्य मंत्रालयों में सभी सचिव गुजरात कैडर के थे. अतिरिक्त सचिव और संयुक्त सचिव जैसे अन्य स्तरों प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), वित्त और गृह मामलों के मंत्रालयों के साथ-साथ कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) में महत्वपूर्ण पदों पर भी गुजरात के ही अधिकारियों ने कब्जा कर लिया.
2024 में देखें तो अब केंद्र सरकार में गुजरात कैडर के बहुत कम अधिकारी हैं.
वर्तमान में सरकार में कैडर से केवल एक सचिव हैं — श्रीनिवास कटिकिथला, जो अल्पसंख्यक मामलों के सचिव हैं.
अतिरिक्त सचिव स्तर पर गुजरात से केवल दो अधिकारी हैं — आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में 1995-बैच के अधिकारी डी. थारा और रक्षा मंत्रालय में रक्षा उत्पादन विभाग में 1996-बैच के अधिकारी टी. नटराजन शामिल हैं. संयुक्त सचिव स्तर पर गुजरात के चार अधिकारी केंद्र में तैनात हैं, जिनमें एक रक्षा मंत्रालय में भी शामिल है.
पीएमओ में भी गुजरात कनेक्शन लगातार कमज़ोर होता दिख रहा है. जबकि पी.के. मिश्रा 1972 बैच के गुजरात-कैडर अधिकारी, पीएम के प्रधान सचिव के रूप में शीर्ष पर हैं, सलाहकारों, अतिरिक्त सचिवों और संयुक्त सचिवों में गुजरात-कैडर का कोई अधिकारी नहीं है.
एकमात्र अपवाद प्रधानमंत्री के निजी सचिव हार्दिक शाह और संजय आर. भावसर हैं जो कि पीएमओ में विशेष कर्तव्य अधिकारी (ओएसडी) हैं. शाह और भावसर दोनों गुजरात राज्य सेवा के अधिकारी थे और केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्हें आईएएस के पद पर पदोन्नत किया गया था.
केंद्र में सेवारत एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा, “यह जनता की धारणा के खिलाफ है, लेकिन सच में केंद्र सरकार में सेवारत अधिकारी अब अलग-अलग कैडर से हैं. गुजरात के अधिकारियों के प्रमुख पदों पर रहने का चलन अब बिल्कुल सही नहीं है.”
अधिकारी ने कहा, “यह रुझान तर्कसंगत है. गुजरात से संबंध कम करने के लिए दस साल एक लंबा समय है — दिल्ली में रहना और गुजरात से दूर रहना दोनों.”
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अन्य सेवाओं में भी यही ट्रेंड
सभी जांच एजेंसियों की कहानी एक जैसी है, जहां राकेश अस्थाना (सीबीआई) और वाई.सी. मोदी जैसे गुजरात-कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. कुछ साल पहले तक मोदी (एनआईए) शीर्ष पदों पर कार्यरत थे.
अस्थाना और मोदी के नेतृत्व में सीबीआई और एनआईए जैसी एजेंसियों में अन्य वरिष्ठ पदों पर भी गुजरात के अधिकारी काम कर रहे थे.
हालांकि, सीबीआई और एनआईए का नेतृत्व अब क्रमशः कर्नाटक और पंजाब कैडर के प्रवीण सूद और दिनकर गुप्ता कर रहे हैं.
जबकि एनआईए के पास वरिष्ठ स्तर पर गुजरात-कैडर का कोई अधिकारी नहीं है, वहीं सीबीआई के पास राज्य से एक अतिरिक्त महानिदेशक और एक संयुक्त-निदेशक स्तर का अधिकारी है.
सरकारी सूत्रों का कहना है कि सीबीआई ने हाल ही में केंद्र सरकार से गुजरात के अधिकारियों के लिए अनुरोध किया था, जहां एजेंसी बैंक धोखाधड़ी के कई मामलों से निपट रही है, लेकिन जांच की निगरानी के लिए राज्य के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भेजे गए.
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), जिसका नेतृत्व भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के दो अधिकारी करते थे, जिन्होंने पहले गुजरात में आयकर विभाग का नेतृत्व किया था – सुशील चंद्रा और पी.सी. मोदी – का नेतृत्व अब नितिन गुप्ता कर रहे हैं.
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) का नेतृत्व हिमाचल प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी तपन कुमार डेका करते हैं. गुजरात कैडर के एक संयुक्त निदेशक और दो उपनिदेशकों वाली एजेंसी में वरिष्ठ स्तर पर भी कैडर का कोई अधिकारी नहीं है.
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एक विविध नौकरशाही
केंद्र सरकार में सचिव स्तर के अधिकारियों में अब किसी एक कैडर का दबदबा नहीं रह गया है.
सचिव स्तर के अधिकारियों की संख्या सबसे अधिक सात-सात, बिहार और ओडिशा में है. उनके बाद तमिलनाडु (छह अधिकारी सचिव) और मध्य प्रदेश और झारखंड (पांच) हैं.
इन कैडर के वरिष्ठ अधिकारियों में झारखंड से कैबिनेट सचिव राजीव गौबा और पीएमओ में सलाहकार अमित खरे और तमिलनाडु से वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन शामिल हैं.
पीएमओ भी मिश्रित स्थिति में है. दो सलाहकार, खरे और तरुण कपूर, जो दोनों सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, क्रमशः झारखंड और हिमाचल प्रदेश कैडर से हैं.
चारों अतिरिक्त सचिव अलग-अलग कैडर से हैं — एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) से पुण्य सलिला श्रीवास्तव, कर्नाटक से अरविंद श्रीवास्तव, मध्य प्रदेश से हरि रंजन राव और बिहार से अतीश चंद्रा.
पीएम के तीन संयुक्त सचिवों में से दीपक मित्तल भारतीय विदेश सेवा से हैं, जबकि सी. श्रीधर और रोहित यादव क्रमशः बिहार और छत्तीसगढ़ कैडर से हैं.
हाल ही में सरकार से सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए एक अधिकारी ने कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर गुजरात के अधिकारियों का वर्चस्व कम होने की संभावना है क्योंकि सरकार नई दिल्ली में अधिक समय बिताती है.
उन्होंने कहा, “आप देख सकते हैं, शुरुआत में ही दिल्ली में गुजरात के अधिकारियों को लेकर बहुत कुछ किया गया था…हर सरकार जब सत्ता में आती है तो अपने भरोसेमंद अधिकारियों को लाती है. यह देश भर के अन्य अधिकारियों में भरोसा जगाता है, यह सरकार अब गुजरात से लोगों को नहीं ला रही है…ऐसा हमेशा होने वाला था.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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