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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशएक राज्यसभा सीट, दो दावेदार-मुकल रॉय, यशवंत सिन्हा उपचुनाव के लिए TMC की संभावित पसंद बनकर उभरे

एक राज्यसभा सीट, दो दावेदार-मुकल रॉय, यशवंत सिन्हा उपचुनाव के लिए TMC की संभावित पसंद बनकर उभरे

इस सीट पर 9 अगस्त को उपचुनाव होना है और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने अभी तक उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. तृणमूल कांग्रेस ने इस शुक्रवार को अचरज में डालने वाले और एक अनपेक्षित फैसले में घोषणा की कि ममता बनर्जी, जो सांसद नहीं हैं, तृणमूल कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष होंगी.

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नई दिल्ली: एक विवादास्पद बयान, एक निलंबित सांसद और सदन के कामकाज में लगातार व्यवधान-मानसून सत्र के पहले हफ्ते में राज्यसभा में विपक्षी दलों में तृणमूल कांग्रेस ने सबसे आगे मोर्चा संभाल रखा था. पश्चिम बंगाल के हालिया विधानसभा चुनावों में तीसरी बड़ी जीत के बाद पार्टी ने आक्रामक रुख अपना लिया है और राष्ट्रीय स्तर पर पैठ बढ़ाने की उसकी महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ गई हैं.

लेकिन पार्टी के भीतर सभी की निगाहें इस ऐलान पर टिकी हैं कि पूर्व केंद्रीय मंत्री दिनेश त्रिवेदी, जो अब भाजपा में चले गए हैं, के कारण खाली हुई राज्यसभा सीट किसके पास आएगी?

इस सीट पर 9 अगस्त को उपचुनाव होना है और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने अभी तक उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. तृणमूल कांग्रेस ने इस शुक्रवार को अचरज में डालने वाले और एक अनपेक्षित फैसले में घोषणा की कि ममता बनर्जी, जो सांसद नहीं हैं, तृणमूल कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष होंगी.

इस बीच, तृणमूल में राज्यसभा सीट को लेकर कयासों का दौर जारी है. ऐसा माना जा रहा है कि दो नाम सबसे आगे चल रहे हैं, और ये दोनों ही भाजपा से जुड़े रहे हैं. ये हैं, कभी तृणमूल में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले मुकुल रॉय, जो चार साल तक भाजपा में रहने के बाद इस बार विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी में वापस लौट आए हैं, और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, जो कि आश्चर्यजनक ढंग से राज्य चुनावों से ऐन पहले पार्टी में शामिल हुए थे.

पार्टी नेताओं का कहना है कि राज्यसभा चुनाव के लिए नाम तय करना तृणमूल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं प्रतिबिंबित करेगा और इस पर निर्भर भी करेगा कि किसे नवनियुक्त महासचिव अभिषेक बनर्जी- ममता के भतीजे और लोकसभा सांसद-के हाथ ‘मजबूत’ करने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 26 जुलाई को राजधानी पहुंचने वाली हैं और उनके इस यात्रा कार्यक्रम में न केवल प्रधानमंत्री के साथ संभावित बैठक शामिल है, बल्कि कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार के साथ बातचीत करना भी शामिल है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वह अपने दिल्ली प्रवास के दौरान राज्यसभा उम्मीदवार के नाम की घोषणा भी कर सकती हैं.

पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने 12 फरवरी को तृणमूल कांग्रेस- और उसकी राज्यसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे. उनका कार्यकाल 2 अप्रैल 2026 को समाप्त होना था. नियमों के मुताबिक, किसी खाली राज्यसभा सीट के लिए उपचुनाव उसके खाली होने के छह महीने के भीतर होने होते हैं. इस सीट के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 29 जुलाई है.

प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किए जाने पर तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, ‘29 जुलाई तक अभी समय बाकी है. अध्यक्ष और पार्टी की तरफ से उचित समय पर (उम्मीदवार की) घोषणा की जाएगी.’

मुकुल रॉय-दोस्त से दुश्मन और फिर दोस्त बने

रॉय कभी तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी के बाद दूसरे नंबर की हैसियत रखते थे- वह इसके संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और राष्ट्रीय स्तर पर पैठ बनाने के पार्टी के प्रयासों में उनकी भूमिका अहम रही है.

लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी के बढ़ते राजनीतिक ग्राफ के मद्देनजर अपनी अक्षमताओं और अन्य वजहों का हवाला देते हुए 2017 में पद छोड़ने से पहले वह राज्यसभा में पार्टी के नेता और विपक्षी दलों के साथ बातचीत में तृणमूल के प्रतिनिधि के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे थे.

स्पष्टतय: ममता के उत्तराधिकारी माने जाने वाले अभिषेक बनर्जी राज्य में इस साल विधानसभा चुनावों के दौरान भाई-भतीजावाद को लेकर भाजपा के आक्रामक अभियान में खास तौर पर निशाने पर रहे हैं.

तृणमूल के एक सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘राज्य में- हमारी इस तीसरी- जीत के बाद पार्टी का कायाकल्प हो गया है और अब हम एक राष्ट्रीय एजेंडे के साथ एक नए रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इसका नेतृत्व अभिषेक बनर्जी कर रहे हैं, इसलिए अब जिस किसी को राज्यसभा भेजा जाएगा, वो इस आधार पर ही वहां पहुंचेगा कि वह राष्ट्रीय स्तर पर पैठ बढ़ाने के प्रयासों में उनके हाथ मजबूत करने में सक्षम है.’

सांसद ने कहा कि रॉय को राज्यसभा भेजने की अटकलें चल रही हैं. हालांकि, सांसद ने कहा कि नामांकन के बारे में फैसला ‘पार्टी में शीर्ष स्तर’ पर लिया जाएगा, ऐसे में निश्चित तौर पर कोई अनुमान लगाना अभी मुश्किल होगा.

सांसद ने कहा, ‘रॉय राज्यसभा में पार्टी के नेता रहे हैं, जो एक समय हमारी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं का आधार वही थे. इसके अलावा राज्य में लोक लेखा समिति (पीएसी) में उनकी नियुक्ति को लेकर भी विवाद जारी है, ऐसे में उन्हें कहीं और नियुक्त करने की जरूरत पड़ सकती है.’


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पश्चिम बंगाल विधानसभा में ऑडिट वॉचडॉग के तौर पर काम करने वाली पीएसी के अध्यक्ष के पद पर रॉय की नियुक्ति को लेकर विवाद इस तथ्य पर केंद्रित है कि उन्होंने चुनाव नतीजों के बाद तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद इस पद के लिए आवेदन भाजपा विधायक के तौर पर दिया था.

भाजपा दलबदल विरोधी कानून का हवाला देते हुए उनकी नियुक्ति का विरोध कर रही है और कह रही है कि उन्हें पार्टी का विधायक नहीं माना जा सकता क्योंकि वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके थे. भाजपा का कहना है कि परंपरा तो यही है कि विपक्षी विधायक को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है.

2014 में जब तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में उम्मीदवार उतारने के साथ पश्चिम बंगाल के बाहर कई सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे और समाजसेवी अन्ना हजारे के साथ गठबंधन का प्रयास किया था, तो वह रॉय ही थे जिन्होंने यह मोर्चा संभाल रखा था. रॉय के जाने के बाद डेरेक ओ’ब्रायन ने राज्यसभा में पार्टी के नेतृत्व के साथ-साथ अन्य राजनीतिक दलों के लिए तृणमूल के दूत के तौर पर जिम्मेदारी को संभाला.

रॉय के नाम को लेकर उठते सवाल इस पर केंद्रित हैं कि जून में महासचिव नियुक्त होने के साथ ही स्पष्ट तौर पर पार्टी में नंबर दो की हैसियत हासिल कर चुके अभिषेक बनर्जी के साथ उनके कामकाजी समीकरण कैसे हैं—पहले खुद रॉय ही यह पद संभाल चुके हैं.

यशवंत सिन्हा-तृणमूल के राष्ट्रीय चेहरे के रूप में उभर रहे

मार्च में यशवंत सिन्हा का पार्टी में शामिल होना हैरान करने वाला था. हालांकि, 2024 से पहले भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्षी मोर्चे के लिए जारी अटकलों के बीच वह तबसे ही तृणमूल कांग्रेस की ओर से विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं से बात कर रहे हैं. सिन्हा और पवार ने पिछले महीने अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की थी.

दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के तुरंत बाद अपने उस बयान से खासी सुर्खियां बटोरीं, जिसमें उन्होंने दावा किया कि ममता बनर्जी ने 1999 में उस समय कंधार जा रहे इंडियन एयरलाइंस के एक विमान का अपहरण होने के दौरान खुद को वार्ताकार नियुक्त करने की पेशकश की थी.

तृणमूल के एक नेता ने कहा, ‘निस्संदेह उनका कद बड़ा है, और यह महत्वपूर्ण भी है खासकर जब आप पवार और सोनिया गांधी जैसे नेताओं के साथ काम कर रहे हों. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि वह अभी ही पार्टी में शामिल हुए हैं और उन्हें राज्यसभा में लाने का निर्णय दूसरों के लिए निराशाजनक हो सकता है.’

नेता ने आगे कहा कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव ‘स्थानीय बनाम’ के मुद्दे पर लड़ा था, और भाजपा को बाहरी लोगों की पार्टी के तौर पर पेश किया था. ‘ऐसे में यशवंत सिन्हा (जो मूलत: बिहार के हैं, और जिन्होंने संसद में हजारीबाग, झारखंड का प्रतिनिधित्व किया है) को राज्यसभा में लाने का दांव उल्टा पड़ सकता है.’

आंतरिक सूत्रों का कहना है कि उच्च सदन के लिए सिन्हा की उम्मीदवारी को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का समर्थन हासिल है, जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि, सिन्हा के करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि राज्यसभा उपचुनाव के संबंध में पार्टी ने उनसे संपर्क नहीं किया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिया यहां क्लिक करें)

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