नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) भारत ने मिस्र में जारी संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में विकासशील देशों के लिए लक्ष्य बढ़ाने के आह्वान का सोमवार को दृढ़ता से विरोध करते हुए कहा कि ‘‘लक्ष्यों को लगातार बदला जा रहा है’’ जबकि अमीर देश कम कार्बन उत्सर्जन के लिए जरूरी प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय संसाधन मुहैया कराने में ‘बेहद’ विफल रहे हैं।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने ‘‘2030 पूर्व लक्ष्य पर मंत्री स्तरीय गोल मेज बैठक’’ में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि विकसित देशों को लक्ष्यों को बढ़ाने का नेतृत्व करना चाहिए क्योंकि उनके पास वित्त और प्रौद्योगिकी का बड़ा हिस्सा उपलब्ध है।
उन्होंने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) और पेरिस समझौता दोनों इसे मानते हैं, लेकिन हमने पर्याप्त कार्रवाई नहीं की है।’’
यादव ने कहा कि देशों का ऐतिहासिक संचयी उत्सर्जन लक्ष्यों को बढ़ाने के लिए उनकी जिम्मेदारी का पैमाना होना चाहिए और कुछ विकसित देशों को ‘‘2030 से पहले भी शून्य उत्सर्जन तक पहुंचना चाहिए’’ क्योंकि 2050 तक ‘कार्बन न्यूट्रल’ बनने का उनका लक्ष्य ‘बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है।’’
भारत ने कहा कि विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन नहीं देना एक ‘बहुत बड़ी विफलता’ है और विकासशील देशों से लक्ष्यों का आह्वान करना ‘‘अर्थपूर्ण नहीं है यदि कम कार्बन उत्सर्जन के लिए आवश्यक समय को मान्यता नहीं दी जाती है।’’
यादव ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से, हर दशक के साथ, हर नए समझौते के साथ, हर नयी वैज्ञानिक रिपोर्ट के साथ, विकासशील देशों से अधिक से अधिक कदमों की मांग की जाती है। यदि लक्ष्य को लगातार बदला जाएगा, तो यह परिणाम नहीं बल्कि केवल वादे देगा।’’
मंत्री ने कहा कि यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि लक्ष्य के लिए अवसर हर पक्ष में अलग-अलग होते हैं। उन्होंने कहा कि यदि नहीं, तो उन लोगों से लक्ष्य बढ़ाने के प्रयास का परिणाम केवल निष्क्रियता होगा जिनके पास देने के लिए बहुत कम है।
भाषा अमित माधव
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