चेन्नई, 26 अप्रैल (भाषा) मद्रास उच्च न्यायालय ने तीन चिकित्सकों की ओर से दाखिल उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें जनस्वास्थ्य एवं निवारक चिकित्सा निदेशक द्वारा प्रासंगिक नियमों के तहत एक बॉण्ड समझौते के आधार पर उन्हें सहायक सर्जन के रूप में नियुक्त करने की कार्यवाही को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने हाल में दिए आदेश में एस सहाना प्रियंका और दो अन्य की ओर से दायर याचिकाएं खारिज कर दीं।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किलों ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी सेवाएं दीं, इसलिए उक्त अवधि को बॉण्ड शर्तों के अनुसार प्रदान की जाने वाली दो साल की सेवा की कुल अवधि की गणना के लिए गिना जाना था।
वहीं, सरकार की ओर से पैरवी करने वाले वकील ने कहा कि ऐसे कई छात्रों के दावे पर विचार करते हुए, सरकार ने स्वयं 27 अक्टूबर, 2023 के सरकारी आदेश में बॉण्ड की अवधि को दो वर्ष से घटाकर एक वर्ष कर दिया है। उन्होंने कहा कि इसलिए याचिकाकर्ताओं को बॉण्ड शर्तों के अनुपालन में किसी भी सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पताल में एक वर्ष की सेवा की शर्त पूरी करनी होगी।
न्यायाधीश ने कहा कि यह स्वाभाविक है कि सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि बहुत कम शुल्क पर स्नातकोत्तर प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले ये डॉक्टर गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करें।
अदालत ने कहा कि जनता को यह अपेक्षा करने का अधिकार है कि विशेषज्ञ अपने प्रशिक्षण के दौरान अपनी सेवा का उपयोग बीमारों, गरीबों और जरूरतमंदों के लाभ के लिए करेंगे।
इसने कहा कि याचिकाकर्ता पर्याप्त ज्ञान के साथ योग्य पंजीकृत चिकित्सक हैं और उन्होंने बॉण्ड पर उसे ध्यान से पढ़ने तथा समझने के बाद और नियमों एवं शर्तों से पूरी तरह अवगत होने के बाद ही हस्ताक्षर किए थे।
अदालत ने कहा कि यदि चिकित्सकों के इस तरह के रवैये की अनुमति दी गई, तो उन गरीब लोगों पर ध्यान न देने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा, जिनके खर्च पर उन्होंने शिक्षा प्राप्त की है जो सार्वजनिक हित के विपरीत और अस्वीकार्य है।
भाषा धीरज नेत्रपाल
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