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Tuesday, 18 June, 2024
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पुराने लेखक कभी मरते नहीं है, बल्कि अप्रचालित हो जाते हैं:90 वें जन्मदिन से पहले रस्किन बॉण्ड

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(तस्वीरों के साथ)

(माणिक गुप्ता)

लंढौर (उत्तराखंड), 18 मई (भाषा) जाने माने लेखक रस्किन बॉण्ड ने रविवार को अपने 90वें जन्मदिन से पहले कहा कि पुराने लेखक कभी मरते नहीं हैं, वे बस अप्रचलित हो जाते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बिरादरी के 99 प्रतिशत लोग लंबे समय में भुला दिए जाते हैं।

बॉण्ड की कुछ पसंदीदा चीज़ों में अपने परिवार के साथ लंढौर-मसूरी मार्ग पर गाड़ी चलाना, स्ट्रॉबेरी मिल्क शेक पीना, अखबार और किताबें पढ़ने और अपने दैनिक विचारों को लिखने के लिए नोटपैड रखना शामिल है।

वह अपना ज्यादातर वक्त लंढौर के आईवी कॉटेज में बिताते हैं जो मसूरी से कुछ दूरी पर स्थित है। उच्च रक्तचाप और कम होती आंखों की रोशनी के बावजूद उनका बच्चों जैसा उत्साह बरकरार है क्योंकि वह जीवन, बुढ़ापे, लेखन, भोजन पर चर्चा करते हैं।

बॉण्ड ने अपने घर में ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, “99 प्रतिशत लेखक लंबे समय में भुला दिए जाते हैं। हम भावी पीढ़ियों के लिए लिख रहे हैं लेकिन बाद में हमें कोई याद नहीं रखता…मुझे खुशी होगी अगर मेरा परिवार मुझे याद रखे और कुछ पाठकों को मेरे लेखन से कुछ खुशी मिले, लेकिन एक लेखक आसानी से विलुप्त हो जाता है, अप्रचलित हो जाता है।”

उन्हें भारत में बच्चों का पसंसदीदा लेखक माना जाता है। उन्होंने 500 से ज्यादा रचनाओं को कलमबद्ध किया है जिनमें लघु कथाएं, निबंध और उपन्यास शामिल हैं। उन्होंने 1956 में अपने उपन्यास ‘ द रूम द रूफ’ के साथ लेखन की शुरुआत की थी।

बॉण्ड ने हंसते हुए कहा, “पुराने लेखक भी कभी नहीं मरते, वे बस अप्रचलित हो जाते हैं।”

उनकी नयी किताब ‘हॉल्ड ऑन टू यॉर ड्रीम्स’ को पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ने प्रकाशित किया है। यह बॉण्ड के व्यक्तिगत और रोजमर्रा की जिंदगी में एक अनूठी झलक पेश करती है। इसमें लड़कपन की यादें, उनके दोस्त, खोया हुआ प्यार, खुशी के क्षण, पीड़ा, जीत और त्रासदियां शामिल हैं। वह लगभग संयोगवश ही लेखक बने।

बॉण्ड ने कहा कि कम से कम शुरुआत में लेखक बनने की कोई चाहत नहीं थी । उनकी पहली दो महत्वाकांक्षाएं थी और दोनों में वह बुरी तरह असफल रहे। वह अभिनेता या एक ‘टैप डांसर’ बनना चाहते थे।

लेखक ने कहा, “ मैं अभिनेता बनना चाहता था, लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सका। मैं एक ‘टैप डांसर’ बनना चाहता थी, लेकिन मेरा शरीर इसके उपयुक्त नहीं था। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं लिख सकता हूं। मैं किताबों के बीच बड़ा हुआ हूं। एक किताब से बेहतर कुछ नहीं, तो फिर कुछ लेखन क्यों न किया जाए और लेखकों की ब्रिगेड में शामिल हो गया।”

नब्बे साल की उम्र में दृष्टि संबंधी समस्या के बावजूद बॉण्ड की किताबें और अखबारों में दिलचस्पी कम नहीं हुई है।

उन्होंने कहा, “मैं अखबार का आदी हूं। जब मुझे सुबह में अखबार नहीं मिलता तो मैं परेशान हो जाता हूं। मैं एक दिन में चार अखबार पढ़ता हूं। मैं हफ्ते में दो-तीन किताबें आसानी से पूरी पढ़ लेता हूं। मैं जीवनियां पढ़ता हूं, इतिहास पढ़ता हूं। अगर यह दिलचस्प है तो, मनोरंजन के लिए ‘क्राइम थ्रिलर’ भी पढ़ता हूं।”

बॉण्ड का जन्म 1934 में कसौली में ब्रिटिश माता-पिता एडिथ क्लार्क और ऑब्रे बॉण्ड के घर हुआ था और वह तब चार साल के थे जब उनकी मां उनके पिता से अलग हो गईं और एक भारतीय से शादी कर ली।

हालांकि बॉण्ड का संरक्षण उनके पिता को मिला, लेकिन पीलिया के कारण उनके पिता की मृत्यु हो जाने के बाद वह देहरादून में अपनी दादी के घर में स्थानांतरित हो गए।

बॉण्ड जामनगर, शिमला, दिल्ली और देहरादून में पले-बढ़े। आखिरकार उन्होंने 1963 में लंढौर को अपना घर बना लिया।

बॉण्ड को कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें 1992 में अंग्रेजी लेखन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1999 में पद्म श्री, 2014 में पद्म भूषण और 2021 में साहित्य अकादमी फैलोशिप शामिल हैं।

बॉण्ड भारतीय हैं लेकिन कहते हैं कि कुछ लोग उन्हें विदेश समझते हैं और इसे लेकर उन्होंने ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर का एक मजेदार किस्सा सुनाया।

बॉण्ड ने बताया कि मंदिर में कर्मचारी उनसे अतिरिक्त शुल्क लेना चाहते थे, क्योंकि उनका कहना था कि “मैं विदेश हूं और वे प्रवेश के लिए विदेशियों से अतिरिक्त शुल्क लेते हैं। मैंने कहा ‘मैं विदेशी नहीं हूं, मैं एक भारतीय हूं’, लेकिन फिर बहस से बचने के लिए मैंने अतिरिक्त भुगतान कर दिया। और मेरे पीछे एक सरदार जी आये, उनके पास ब्रिटिश पासपोर्ट था लेकिन उन्होंने उन्हें अंदर जाने दिया। उनसे कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया गया क्योंकि वह विदेशी की तरह नहीं दिखते थे।”

भाषा नोमान माधव

माधव

नोमान

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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