बेरोजगारी पर बिप्लब देब द्वारा दिए गए आलोचनात्मक ’करियर सलाह’ के बयान पर दिल्ली के एक पान वाले ने दिप्रिंट से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। पान वाले को अपने काम पर गर्व है लेकिन वह चाहते हैं कि उनके बच्चे शिक्षित होकर अलग और अच्छा जीवन व्यतीत करें।
नई दिल्लीः दिल्ली के एक पान वाले बीरबल चौरसिया ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब को एक संदेश देते हुए कहा कि उन्होंने नौकरी को अपनी जरूरत से अलग कर लिया है लेकिन वह अपने बच्चों से ऐसा कभी नहीं चाहेंगे ।
पिछले सप्ताह अपने एक विवादित बयान में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने युवाओं को सलाह दी थी कि उनको नौकरी की तलाश करने में अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, बल्कि बैंक बैलेंस बनाने के लिए उनको पान की दुकान खोल लेनी चाहिए या पशु पालन कर लेना चाहिए। देब ने कहा था कि, “सरकारी नौकरी को पाने और अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय को बर्बाद करने के लिए राजनीतिक पार्टियों के पीछे दौड़ने के बजाय यदि वही युवा पान की दुकान खोल लेते तो उनके पास पाँच लाख का बैंक बैलेंस हो सकता था।“
एक पान वाले की कहानी
चौरसिया 12 साल की उम्र में ही अपने घर से भाग निकले थे, उनका घर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में था। वे दिल्ली आ गये और तभी से बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्टॉस लगाकर पान बेच रहें है।
एक्सप्रेस बिल्डिंग की ओर इशारा करते हुए चौरसिया ने कहा कि, “मेरे घर के पीछे रहने वाला रामकिशोर इन ऑफिसों के पीछे पान बेचा करता था।“ चौरसिया ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “उसने मुझे अपने साथ ले लिया। उस समय पान भी सस्ते थे और इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए अधिक पैसों की जरूरत नहीं पड़ती थी।“
हालांकि, जब पान बेचना ही उनका काम था। उन्होंने ठान लिया था कि उनके छोटा भाई और बच्चे पान नहीं बेचेंगे।
चौरसिया की सहायता से उनके छोटे भाई ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एलएलबी और फिर एलएलएम किया और अब वे उत्तर प्रदेश में पब्लिक प्रॉसीक्यूटर (सार्वजनिक अभियोक्ता) के रूप में कार्य कर रहे है। चौरसिया के तीन बच्चों में सबसे बड़ी बेटी एक चार्टर्ड एकाउंटेंट है। उनकी दूसरी बेटी एक कॉस्ट एकाउंटेंट है (लागत लेखाकार) जबकि बेटा स्नातक कर रहा है।
चौरसिया ने जो हासिल किया उस पर उनको गर्व है लेकिन वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी वही काम करें जो वे कर रहे हैं
“मेरे बच्चों को एक पान की दुकान क्यों चलानी चाहिए ? मेरे गृह नगर में, एक माता-पिता पान बेचते थे, उनके बच्चे आज न्यायाधीश बन गए हैं। उसने दिप्रिंट को बताया कि आपको हमेशा इस चीज का ध्यान रखना होता है कि आपकी पहुंच कहाँ तक हो सकती है।“
“मुझे पता है कि एक अनपढ़ व्यक्ति एक सरकारी नौकरी का हकदार नहीं होगा लेकिन मुझे अपने काम पर गर्व है, जो मैं कर रहा हूँ।“
“मोदी सरकार के ‘एक साल में दो करोड़ नौकरियां देने‘ के अपने पूर्व चुनाव के वादे को नाकाम बताते हुए देव ने मोदी सरकार के खिलाफ कई भद्दी और क्रूर टिप्पणियाँ की थीं।“
नौकरी में क्या रखा है?
चौरसिया उन लाखों लोगों में एक है, जो हर साल ग्रामीण क्षेत्रों से निकलकर दिल्ली में आके बस जाते हैं, घर में रोजगार के अवसरों की कमी कारण यहाँ अपना ठिकाना बना लेते हैं।
उन्होंने उस इमारत की तरफ इशारा करते हुए जो उसके स्टॉल के सामने खड़ी थी, कहा कि “मैं कई सालों तक इस एक्सप्रेस बिल्डिंग के बाहर गलियों में सोया हूं“ दिल्ली मेरे लिये एक विदेश जैसा था जहाँ मैंने बहुत संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया है।
हालांकि,अब वह कहते हैं कि वह अपना पसंदीदा काम करते हैं, जिससे उन्हें अपने दिन की योजना बनाने की आजादी मिलती है। “कार्यालयों में लोग दिन में 16 घंटे काम करते हैं। रोचक डिग्रियों और गुणवत्ता वाली शिक्षा के बावजूद, उन्हें अभी भी गधे की तरह काम करना पड़ता है, कभी-कभी रविवार को भी। उन्होंने आगे बताया कि मैं इतना स्वतंत्र हूं, मैं जब भी चाहूं अपनी दुकान बंद कर सकता हूं और जहाँ चाहूं वहाँ जा सकता हूँ।“
चौरासिया, जिसका नोएडा में अपना खुद का घर है, परिवार के साथ ऊटी, मुन्नार और कॉर्बेट के लिए यात्रा पर गए हैं । अगर उसे कभी विदेश जाने का मौका मिलता है, तो “मॉरीशस पहली जगह होगी जहाँ वो जाना चाहेंगे ।”
“मैंने अपने जीवन में बहुत कडी मेहनत की। उसने (मुख्य) मंत्री को यकीन दिलाते हुए कहा कि मैं अपने काम को लेकर काफी खुश हूं और आशा करता हूं कि सभी लोग आत्मनिर्भर बनें।“
पारिवारिक व्यवसाय (लेकिन केवल कुछ के लिए)
पानवाला इशारा करते हुए बताता है कि इस पेशे को चलाने के लिए कौशल की आवश्यकता होती है। उसने बताया, “कि आपको पता होना चाहिए कि ग्राहक के लिए आपको कैसा पान लगाना है, यही वजह है कि ग्राहक मेरी दुकान के सामने पान लग जाने तक प्रतीक्षा में खड़े रहते हैं।”
देब की टिप्पणियों को फिर से संदर्भित करते हुए, उसने पान लगाते हुए कहा – एक नौकरी जिसमें आप दूसरे के हाथ की कठपुतली होते हैं – भारत जैसे समाज में युवाओं के लिए विकल्प के रूप में एक डिफ़ॉल्ट करियर का सुझाव नहीं दिया जा सकता, जहाँ जाति भेदभाव बहुत वास्तविक है।
उन्होंने कहा, “अगर लोग उनके द्वारा रखे गए कपों से पानी नहीं पिएंगे, तो वे उनके द्वारा बनाए गए पान क्यों खाएंगे?”