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Sunday, 5 May, 2024
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जनपद न्यायाधीशों के लिए स्वतंत्र रूप से काम करना कठिन: उच्च न्यायालय

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प्रयागराज, 22 अप्रैल (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रशासनिक शिकायत और तबादला होने के भय से जनपद न्यायाधीशों के लिए स्वतंत्र रूप से अपने क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करना मुश्किल है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि जिला न्यायाधीश ‘‘पूर्वाग्रह के बेतुके आरोपों’’ को लेकर ‘‘तबादले के जोखिम’’ का सामना कर रहे हैं।

संपत्ति पर कब्जा लेने के लिए माया देवी नाम की एक महिला द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने यह बात कही।

उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को इस बात के लिए फटकार लगाई कि उसने दीवानी अदालत में याचिका दायर करने के बजाय पुलिस और अन्य अधिकारियों से संपर्क किया जिनका इस तरह के दीवानी विवादों में कोई भूमिका नहीं है।

उच्च न्यायालय ने कहा, “वैसे तो दीवानी अदालतों को लेकर नागरिकों का नजरिया स्वीकार नहीं किया जा सकता, लेकिन दीवानी अदालतें हड़तालों सहित विभिन्न कारणों से सुस्त बन गई हैं। जिला अदालतों में निर्धारित न्यायिक कार्यों के समय का पालन नहीं किया जा रहा है।”

उच्च न्यायालय ने कहा कि इन सभी कारकों से दीवानी अदालतें एक तरह से ऐसी जगहें बन गई हैं जहां त्वरित राहत की चाह रखने वाले व्यक्ति के लिए आशा की कोई उम्मीद नहीं है।

मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने कानपुर नगर में एक पंजीकृत विक्रय विलेख (सेल डीड) के जरिए वीर बहादुर सिंह नाम के एक व्यक्ति से एक भूखंड खरीदा था। उसका नाम राजस्व के रिकार्ड में दर्ज करा दिया गया था। हालांकि, याचिकाकर्ता का आरोप है कि जब उसने भूखंड का कब्जा लेने का प्रयास किया तो वीर बहादुर और उसके साथियों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। याचिकाकर्ता की शिकायत पर एसडीएम द्वारा कोई कार्रवाई न करने से उसने एससी-एसटी कानून के तहत एक प्राथमिकी दर्ज कराई।

याचिकाकर्ता का पति पीएसी, लखनऊ में हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात है। उसने अपने कमांडेंट को इस संबंध में पत्र लिखा जिसने कानपुर नगर के पुलिस आयुक्त को इस मामले से अवगत कराया। पुलिस अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई न करने से याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रूख किया।

रिट याचिका खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने आठ अप्रैल को दिए अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता ने दीवानी अदालत को छोड़कर हर जगह संपर्क किया, जबकि सामान्य रूप से ऐसे मामलों में दीवानी अदालतें निर्णय करती हैं।

भाषा राजेंद्र

राजकुमार

राजकुमार

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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