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Monday, 17 June, 2024
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वाराणसी के कैंट रोडवेज परिसर में शौचालय निर्माण रोकने पर जवाब तलब

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प्रयागराज, छह मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) के प्रबंध निदेशक को स्वच्छ भारत अभियान के तहत वाराणसी के कैंट रोडवेज परिसर में शौचालय के निर्माण के मुद्दे को अपने स्तर पर देखने और इस मामले में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की पीठ ने मेसर्स अजय प्रताप एवं अन्य की याचिका पर यह आदेश पारित किया।

वाराणसी के नगर निगम द्वारा ‘बनाओ, चलाओ, सौंपो’ (बीओटी) आधार पर याचिकाकर्ता को शौचालय निर्माण का ठेका दिया गया था जिसके लिए 21 नवंबर, 2016 को समझौता किया गया। ये शौचालय विभिन्न स्थानों पर बनाए जाने थे और याचिकाकर्ता को 30 वर्षों तक इनका निर्माण कर इनका संचालन और रखरखाव करना था।

नगर निगम के अपर आयुक्त ने 27 दिसंबर, 2016 को रोडवेज के क्षेत्रीय प्रबंधक से उक्त बस स्टैंड पर शौचालयों के निर्माण की अनुमति मांगी। इसके बाद क्षेत्रीय प्रबंधक ने इस शर्त के साथ अनुमति दी कि निर्माण मंजूर नक्शे के मुताबिक कराया जाएगा।

याचिकाकर्ता ने समझौते के तहत क्षेत्रीय प्रबंधक द्वारा उपलब्ध कराई गई जगह पर शौचालय का निर्माण शुरू कर दिया और 90 प्रतिशत कार्य पूर्ण हो गया। 31 मई, 2017 को क्षेत्रीय प्रबंधक के मौखिक निर्देश पर निर्माण कार्य रोक दिया गया।

इस तथ्य को नगर निगम के संज्ञान में लाने पर नगर आयुक्त ने 23 जून, 2017 को पत्र लिखकर यूपीएसआरटीसी के प्रबंध निदेशक से इस योजना को मंजूरी देने का आग्रह किया। इसके बाद, नगर निगम द्वारा 4 अक्टूबर, 2017 को एक दूसरा पत्र क्षेत्रीय प्रबंधक को भेजा गया और बताया गया कि शौचालय निर्माण में 20 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, इसलिए इसे ध्वस्त करने का कोई औचित्य नहीं।

हालांकि, यूपीएसआरटीसी ने इन पत्रों पर ध्यान नहीं दिया और याचिकाकर्ता को अदालत का रुख करना पड़ा।

याचिकाकर्ता के वकील संजय कुमार यादव, नगर निगम के वकील बिपिन बिहारी पांडेय और यूपीएसआरटीसी के वकील विवेक सरण की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने प्रबंध निदेशक को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और सुनवाई की अगली तारीख 25 मई निर्धारित की।

भाषा राजेंद्र अर्पणा

अर्पणा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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