नयी दिल्ली, 19 जुलाई (भाषा) बड़ी संख्या में चेक बाउंस के मामलों के लंबित होने पर ‘‘गंभीर चिंता’’ व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि पक्ष समझौता करने के इच्छुक हैं तो अदालतों को परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत समझौता योग्य अपराधों के निपटान को प्रोत्साहित करना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस मामले में पी कुमारसामी नाम के एक व्यक्ति की सजा को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया है और शिकायतकर्ता को 5.25 लाख रुपये का भुगतान किया गया है।
पीठ ने 11 जुलाई के अपने आदेश में कहा, ‘‘चेक बाउंस होने से जुड़े मामले बड़ी संख्या में अदालतों में लंबित हैं जो हमारी न्यायिक प्रणाली के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। यह ध्यान में रखते हुए कि उपाय के ‘प्रतिपूरक पहलू’ को ‘दंडात्मक पहलू’ पर प्राथमिकता दी जाएगी, अदालतों को परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत अपराधों के शमन को प्रोत्साहित करना चाहिए, यदि पक्ष ऐसा करने के इच्छुक हैं।’’
परक्राम्य लिखत अधिनियम सभी परक्राम्य लिखतों जैसे वचन पत्र, विनिमय पत्रों और चेक संबंधी मामलों के निपटान से संबंधित है।
समझौता योग्य अपराध वे होते हैं जिनमें प्रतिद्वंद्वी पक्षों द्वारा समझौता किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि यह याद रखना होगा कि चेक का बाउंस होना एक नियामक अपराध है जिसे केवल सार्वजनिक हित को देखते हुए अपराध की श्रेणी में लाया गया है ताकि संबंधित नियमों की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।
इसने अपने आदेश में कहा, ‘‘परिस्थितियों की समग्रता और पक्षों के बीच समझौते पर विचार करते हुए, हम इस अपील को स्वीकार करते हैं तथा एक अप्रैल 2019 के लागू आदेश के साथ-साथ निचली अदालत के 16 अक्टूबर 2012 के आदेश को रद्द करके अपीलकर्ताओं को बरी करते हैं। अपीलकर्ता नंबर 2 (पी) कुमारसामी), जिसे इस न्यायालय द्वारा आत्मसमर्पण करने से छूट दी गई थी, को आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है।’’
पीठ ने कहा कि 2006 में पी कुमारसामी उर्फ गणेश ने प्रतिवादी ए सुब्रमण्यम से 5,25,000 रुपये उधार लिए थे, लेकिन ऋण नहीं चुकाया।
इसने कहा कि कर्ज चुकाने के लिए कुमारसामी ने अपनी भागीदार फर्म मेसर्स न्यू विन एक्सपोर्ट के नाम पर 5.25 लाख रुपये का चेक दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि अपर्याप्त धनराशि के कारण चेक बाउंस हो गया था, इसलिए प्रतिवादी ने अपीलकर्ताओं के खिलाफ धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई। निचली अदालत ने 16 अक्टूबर 2012 के आदेश में अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराया और प्रत्येक को एक वर्ष के साधारण कारावास की सजा सुनाई।’’
इसने कहा कि कुमारसामी ने अपीलीय अदालत के समक्ष दोषसिद्धि को चुनौती दी, जिसने निचली अदलत के निष्कर्षों को पलट दिया और उसे तथा कंपनी को बरी कर दिया।
पीठ ने उल्लेख किया, ‘‘आखिरकार, जब प्रतिवादी/शिकायतकर्ता के कहने पर मामला उच्च न्यायालय में ले जाया गया, तो उच्च न्यायालय ने एक अप्रैल, 2019 के अपने आदेश में अपीलीय अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराने के निचली अदालत के आदेश को बहाल कर दिया।
इसके बाद फर्म और कुमारसामी ने उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।
पीठ ने कहा, ‘‘अब, जब आरोपी और शिकायतकर्ता कानून द्वारा स्वीकार्य समझौते पर पहुंच गए हैं और यह अदालत भी समझौते की वास्तविकता के बारे में संतुष्ट है, तो हम सोचते हैं कि अपीलकर्ताओं की सजा से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और इस प्रकार, इसे खारिज किया जाना आवश्यक है।’’
भाषा नेत्रपाल माधव
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