नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) ब्रिटिशकालीन फौजदारी कानूनों के स्थान पर सोमवार से लागू तीन नए आपराधिक कानूनों को लेकर विधि विशेषज्ञों ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है। कुछ ने इसे फौजदारी न्याय प्रणाली के आधुनिकीकरण की दिशा में ‘अहम कदम’ करार दिया है, जबकि कुछ ने इसे ‘कठोर’ और ‘दिखावटी’ बदलाव बताया है।
पूरे देश में एक जुलाई से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसएस) लागू हो गया। इन तीनों कानूनों ने क्रमश: भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लिया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वास्तविक सुधार करने के अवसर को गंवा दिया गया है और नए कानूनों में ‘‘दिखावटी बदलाव’’ किए गए हैं, जिसमें अदालतों, विशेष रूप से निचली अदालतों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या के महत्वपूर्ण पहलू की अनदेखी की गई है।
हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष आदिश सी अग्रवाल ने नए फौजदारी कानूनों को फौजदारी न्याय प्रदान करने की प्रणाली के आधुनिकीकरण और समयबद्ध न्याय प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।
इसी तरह के विचार वरिष्ठ अधिवक्ता एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद महेश जेठमलानी और विकास पाहवा ने भी व्यक्त किये।
पेशे से अधिवक्ता और कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने नए कानूनों को ‘‘घातक प्रकृति का’’ और क्रियान्वयन में ‘‘कठोर’’ बताया। अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने तिवारी से सहमति जताते हुए इन्हें ‘विनाशक’ करार दिया।
वकीलों की शीर्ष संस्था बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने इन कानूनों का समर्थन किया है और हाल ही में देशभर के सभी बार एसोसिएशनों से आग्रह किया है कि वे नए फौजदारी कानूनों के कार्यान्वयन के खिलाफ तत्काल कोई आंदोलन या विरोध प्रदर्शन न करें।
एससीबीए के पूर्व अध्यक्ष अग्रवाल ने कहा, ‘‘नए कानूनों के जरिये लाया गया एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि इसमें मुकदमों को चलाने और फैसले सुनाने के लिए खास समयसीमा तय की गई है।’’ उन्होंने ब्रिटिश कालीन फौजदारी कानूनों को बदलकर औपनिवेशिक प्रभाव को समाप्त करने की प्रक्रिया के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की प्रशंसा की।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को बहस पूरी होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाना होगा, जिसे लिखित रूप में दर्ज कारणों के जरिये 45 दिनों की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है।
जेठमलानी ने कहा कि विपक्षी दल यह नहीं समझ रहे कि ये कानून अभियोजन पक्ष, पीड़ितों और अपराधियों सभी के लिए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा है कि किन प्रावधानों से समस्या है। वे कुछ भी कह रहे हैं और प्रावधानों का विश्लेषण नहीं कर रहे हैं।’’
पाहवा ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि अगर समग्र रूप से इन कानूनों को पढ़ा जाया तो इसमें बहुत सी सकारात्मक बातें हैं। निश्चित तौर पर कुछ खामियां भी हैं। सबसे सकारात्मक पहलू प्रौद्योगिकी का क्रियान्वयन है। पूरी फौजदारी न्याय प्रणाली अब प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित होगी।’’ उन्होंने कहा कि अगर कानून को उसकी मूल भावना से लागू करें, तो सुनवाई में तेजी आएगी।
सिंघवी ने कहा, ‘‘यह वास्तविक सुधार करने का एक अवसर है। दुर्भाग्य से, जो हुआ है, वह दिखावटी बदलाव है, 90 प्रतिशत वही है, संख्याएं बदल गई हैं, यहां-वहां कुछ शब्द बदल गए हैं…।’’
उन्होंने कहा कि एक और बात जो पूरी तरह से भुला दी गई है, वह यह है कि न्यायाधीश पुराने लंबित मुकदमों से जूझ रहे हैं।
सिंघवी ने कहा, ‘‘हमारी निचली अदालतों में लगभग साढ़े तीन या चार करोड़ मुकदमे लंबित हैं। हमारे उच्च न्यायालयों में लगभग 60 लाख मुकदमे लंबित हैं जबकि उच्चतम न्यायालय में लगभग 75,000-80,000 मुदकमें लंबित हैं।’’
सिंघवी ने कहा, ‘जब आप कानून में एक अल्पविराम, पूर्ण विराम लगाकर छेड़छाड़ करते हैं, तो यह अभियोजन पक्ष या बचाव पक्ष के चतुर वकील को यह कहने का अवसर देता है कि उस प्रावधान पर 100 साल और 200 साल के ‘केस लॉ’ को अल्पविराम, पूर्ण विराम के परिवर्तन से बदल दिया गया है।’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए, यदि आप आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम जैसे तीन बुनियादी कानूनों में दिखावटी बदलाव करते हैं… तो आप लंबित मुकदमों में जबरदस्त वृद्धि करने का अवसर दे रहे हैं और यही वह चीज है, जिसे लेकर मैं चिंतित हूं।’’
अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह विनाशक है। मुझे समझ में नहीं आता कि इससे किसे लाभ मिलेगा, न आम आदमी को, न वकीलों को, न जांच एजेंसियों को, किसी को भी नहीं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सीआरपीसी में 2013 में संशोधन किया गया था। वे क्या दिखाना चाहते हैं? यह सिर्फ सत्ता का अहंकार है। जो लोग हिंदी नहीं जानते, उनका क्या होगा। न्यायाधीश कह रहे हैं कि वे पुरानी शब्दावली का ही इस्तेमाल करेंगे। स्थानीय अदालतों में स्थानीय भाषा का इस्तेमाल होता है। इससे न्याय में देरी होगी।’’
तिवारी ने कहा, ‘‘आज से दो समानांतर व्यवस्थाएं लागू होंगी। 30 जून 2024 की मध्य रात्रि से पहले दर्ज सभी मामलों पर पुरानी व्यवस्था के तहत मुकदमा चलाया जाएगा और 30 जून 2024 की मध्य रात्रि के बाद दर्ज सभी मामलों पर नयी व्यवस्था के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। 3.4 करोड़ मामले लंबित हैं और उनमें से अधिकांश फौजदारी हैं। इसलिए, बहुत भ्रम की स्थिति बनने जा रही है।’’
पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार ने कहा कि इन तीन नये कानूनों से देशव्यापी विवाद पैदा हो गया है।
भाषा धीरज नरेश दिलीप
दिलीप
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