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Monday, 23 December, 2024
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ब्याज दर पर RBI की यथास्थिति अभी भारत के लिए सबसे अच्छी नीति क्यों है

दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े उम्मीद से बेहतर रहे, लेकिन अब भी कोविड के मामले बढ़ने से विकास पर असर पड़ सकता है. लगातार आपूर्ति-पक्षीय मुद्रास्फीति भी एक समस्या है.

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आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करने का फैसला किया है क्योंकि मुद्रास्फीति लगातार उच्च स्तर पर बनी हुई है और निर्धारित दायरे से 2 से 6 प्रतिशत ऊपर है. एमपीसी ने कोविड-19 संकट शुरू होने के बाद से नीतिगत दरों में 115 आधार अंकों की कटौती की है, लेकिन मई से इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. विकास और मुद्रास्फीति पर अनुमानों की तस्वीर अभी साफ न होने को देखते हुए यही सबसे उपयुक्त कदम लगता है.

एमपीसी से शायद ऐसी उम्मीदें रही होंगी कि दरें बढ़ाकर उच्च मुद्रास्फीति का जवाब दिया जाए, लेकिन दो फैक्टर ने ऐसा नहीं होने दिया. पहली बात, कोविड और लॉकडाउन के कारण बिगड़ी अर्थव्यवस्था ने मांग बढ़ने नहीं दी है. दूसरा, घटी मांग के बावजूद बाधित रहने वाले आपूर्ति पक्ष, जो काफी हद तक मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर रहने की वजह है, को उच्च दरों के जरिये सुधारा नहीं जा सकता है.

एमपीसी ने अपनी अक्टूबर की सलाह को दोहराते हुए कहा कि विकास को गति देने और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को घटाने के लिए नीतिगत रुख चालू वित्त वर्ष के दौरान और यदि जरूरी हुआ तो अगले वित्तीय वर्ष में भी अपरिवर्तित रखा जाएगा. यह उचित रणनीति भी लगती है.

यद्यपि दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े उम्मीद से बेहतर हैं, लेकिन विकास के लिए नकारात्मक जोखिम हैं. इस स्तर पर नीति में किसी बदलाव से अर्थव्यवस्था पटरी पर आने की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.


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अपेक्षा से ज्यादा तेजी से सुधार

दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में जीडीपी शून्य से नीचे 7.5 फीसदी रही है. आंकड़ा बताता है कि दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था आरबीआई की अक्टूबर पॉलिसी के लिए अनुमान -9.8 प्रतिशत की तुलना में तेजी से सुधरी है. विनिर्माण क्षेत्र में सकारात्मक वृद्धि एक सुखद आश्चर्य रहा है. कृषि क्षेत्र में 3.4 प्रतिशत का अच्छा प्रदर्शन जारी रहा और रबी फसल की बेहतर बुवाई के कारण इसका अनुमान बेहतर बना हुआ है.

सेवा क्षेत्र में दबाव की स्थिति कायम रही, इसकी वजह ट्रेड, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण संबंधी सेवाओं में संकुचन अपेक्षा के विपरीत घटकर 15.6 प्रतिशत रहने में निहित थी.

यद्यपि दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद आंकड़े दर्शाते हैं कि अर्थव्यवस्था मजबूती की राह पर है, लेकिन देखने की जरूरत है कि क्या यह गति बाद की तिमाहियों में टिकाऊ तौर पर जारी रखी जा सकती है.

जीडीपी के आंकड़े उम्मीद से बेहतर रहने का एक कारण मांग बढ़ना और त्यौहार के कारण भंडारण होना भी रहा है. विनिर्माण क्षेत्र के जीवीए में सकारात्मक वृद्धि को आम तौर पर लागत में कटौती के उपायों का नतीजा माना जाता है, न कि उत्पादन में वृद्धि को. इसलिए यदि कंपनियों ने अभी अधिक बिक्री के बजाय कर्मचारियों की छंटनी करके ज्यादा लाभ कमाया है तो यह बाद की तिमाहियों में मांग पर एक दबाव के तौर पर सामने आ सकता है.

विनिर्माण क्षेत्र के क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) और कोर सेक्टर की वृद्धि दर के माध्यम से नजर आने वाले प्रारंभिक संकेत बताते हैं कि विकास की यह गति क्रमिक है. देश के कुछ हिस्सों में संक्रमण फिर बढ़ने के कारण वृद्धि दर के अनुमान पर संशय के बादल छाए हैं.

मांग पक्ष में वृद्धि के सभी मानकों में संकुचन नजर आया है. निजी निवेश सुस्त है और इसमें तब तक सुधार नहीं होगा जब तक उपयोग क्षमता नहीं बढ़ती. निर्यात और आयात में भी सुस्ती है लेकिन निर्यात में गिरावट आयात में कमी की तुलना में ज्यादा है, जो अर्थव्यवस्था में कमजोर मांग को दर्शाती है. विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में कोविड-19 मामलों का फिर तेजी से बढ़ना वैश्विक वृद्धि को प्रभावित करने वाला है और साथ ही निर्यात के लिहाज से भारत के लिए कड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है.

महंगाई एक समस्या बनी हुई है

हालांकि, वृद्धि में सुधार की शुरुआत दिखने लगी है लेकिन मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर रहने के कारण दरों में कटौती के जरिये इसे और गति देने के उपाय करने में एमपीसी के हाथ बंधे थे. अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति बढ़कर 7.61 प्रतिशत रही. एमपीसी का मानना है कि सर्दियों के महीनों में मिली मामूली राहत के बावजूद मुद्रास्फीति में तेजी अभी जारी रहेगी.

मुद्रास्फीति बढ़ने के लिए मुख्य रूप से आपूर्ति-पक्षीय व्यवधान जिम्मेदार हैं, जैसा कि थोक और खुदरा मुद्रास्फीति के बीच अंतर से नजर आता है. हालांकि बम्पर खरीफ की आवक से अनाज की कीमतों में नरमी आ सकती है, और सब्जी की कीमतें भी मौसम की वजह से गिर सकती हैं, अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी बनी रहने के ही आसार हैं. कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता से भी महंगाई बढ़ने का खतरा है. आने वाले महीनों में एमपीसी बढ़ती महंगाई में खाद्य मुद्रास्फीति के असर को भी देखेगा.

एमपीसी ने वृद्धि पर अपना पूर्वानुमान बढ़ाया है. वास्तविक जीडीपी अब पहले के शून्य से 9.5 प्रतिशत नीचे रहने के अनुमान की तुलना में शून्य से 7.5 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद जताई गई है. एमपीसी ने तीसरी और चौथी तिमाही में सकारात्मक वृद्धि का अनुमान लगाया है. इन उम्मीदों का कारण ग्रामीण मांग में मजबूती और शहरी मांग में भी सुधार होना है. मुद्रास्फीति पर पूर्वानुमान को भी संशोधित किया गया है. तीसरी तिमाही में 6.8 प्रतिशत मुद्रास्फीति का अनुमान है.

आरबीआई और एमपीसी जटिल नीतिगत असंतुलन का सामना करते हैं. अन्य देश जहां कोविड के कारण आई आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहे हैं, भारत उच्च और लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति से जूझ रहा है. आपूर्ति पक्षीय व्यवधान, उच्च अप्रत्यक्ष कर और मूल्यों में अत्यधिक अंतर मुद्रास्फीति के प्रमुख कारणों में हैं. जब तक आपूर्ति संबंधी व्यवधानों के कारण बढ़ने वाली महंगाई को नियंत्रित नहीं किया जाएगा, मौद्रिक नीति बहुत कुछ बदलाव नहीं कर सकती. सबसे अच्छा विकल्प वही हो जो एमपीसी ने अभी अपनाया है कि इस स्तर पर यथास्थिति बनाए रखी जाए और वृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमानों पर तस्वीर और साफ होने की प्रतीक्षा की जाए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं और राधिका पांडेय एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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