कोविड-19 की महामारी की दूसरी लहर से मुसीबत में फंसे सेक्टरों को राहत देने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने कुछ उपायों की घोषणा की है. राहत का ढांचा बताता है कि इसे तैयार करते वक़्त सरकार की नज़र वित्तीय घाटे पर भी थी.
साल का यह वह समय है जब क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां इन चार अहम आंकड़ों पर खास तौर पर ध्यान दे रही हैं— सरकार के ऊपर कर्ज कितना है; जीडीपी में कितनी वृद्धि हुई है; ब्याज दरें क्या हैं, और मुद्रास्फीति कितनी है. सरकार की सीधी पकड़ जिस आंकड़े पर है वह है वित्तीय घाटे का आंकड़ा. जीडीपी में वृद्धि को गति देने के साथ वित्तीय घाटे पर नियंत्रण रखना काफी बाजीगरी का काम होता है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस सप्ताह ने जिस राहत पैकेज की घोषणा की उसने वित्तीय घाटे में जीडीपी के एक प्रतिशत से कम के बराबर का इजाफा कर दिया और इसके साथ सरकार की देनदारियों में भी वृद्धि कर दी यानी केंद्र को उस क्रेडिट का भुगतान करने की गारंटी देनी होगी जिसका भुगतान कर्जदार नहीं करते.
राहत पैकेज का बड़ा हिस्सा क्रेडिट गारंटी के रूप में है, किसानों और गरीबों को समर्थन देने के लिए भी कुछ उपायों की घोषणा की गई.
सरकार ने 14,775 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सबसीडी देने का भी फैसला किया है, जो किसानों की आय में तब समर्थन देगा जब खेती की लागत में वृद्धि हो रही हो. गरीबों को मुफ्त अनाज देने की योजना नवंबर तक के लिए बढ़ा दी गई है. इन दो योजनाओं के अलावा सार्वजनिक स्वास्थ्यसेवा पर खर्च करने के फैसले से वित्तीय घाटे पर थोड़ा असर पड़ेगा.
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राहत पैकेज
जिन उपायों की घोषणा की गई है उनमें से अधिकतर गारंटीशुदा क्रेडिट के रूप में हैं. देश में स्वास्थ्यसेवा के इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार पर सबसे ज्यादा ज़ोर दिया गया है. सरकार ने कोविड से प्रभावित सेक्टरों के लिए 1.1 ट्रिलियन रु. के बराबर कर्ज की गारंटी की घोषणा की है. इसके तहत स्वास्थ्य सेक्टर को 50,000 करोड़ की कर्ज गारंटी दी जाएगी. इसके अलावा छोटे शहरों में स्वास्थ्य के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश पर ब्याज दर स्थिर रखी जाएगी.
बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त आवंटन की घोषणा की गई है. शेष 60,000 करोड़ रु. का इस्तेमाल ट्रैवल एजेंसियां और टूरिस्ट गाइड कर सकेंगे. यह टूरिज़म सेक्टर को राहत देगा.
सरकार ने लघु उद्योगों के लिए गारंटीड क्रेडिट स्कीम (ईसीएलजीएस) में 1.5 ट्रिलियन रु. की वृद्धि कर दी है. इससे उन लघु व्यवसायों को मदद मिलेगी, जो महामारी के कारण बंदी आदि के चलते नकदी की कमी का सामना कर रहे हैं.
बैंक क्रेडिट के आंकड़े बताते हैं कि गारंटीड क्रेडिट के लिए योजना शुरू होने के बाद से लघु और मझोले उद्योगों के लिए क्रेडिट की उपलब्धता में सुधार हुआ है. इस कदम के कारण बैंकों की बैलेंसशीट पर उलटा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि कर्ज पूरी तरह गारंटीशुदा हैं.
माइक्रो फाइनान्स संस्थाओं (एमएफआइ) के लिए कर्ज गारंटी योजना से निचले स्तर के कर्जदारों को ज्यादा कर्ज उपलब्ध होगा. कर्ज चूंकि गारंटीशुदा होंगे इसलिए बैंक आसानी से एमएफआइ को उधार दे सकेंगे, और वे छोटे कर्जदारों को उधार दे सकेंगे.
वित्तीय घाटे की चिंता
31 मार्च को समाप्त हुए वित्त वर्ष के लिए वित्तीय घाटा जीडीपी के 3 प्रतिशत के बराबर था (9.5 प्रतिशत के संशोधित अनुमान के विपरीत). यह महामारी के कारण हुए ऊंचे खर्चों के कारण था. सरकार ने वित्तीय मजबूती की पंचवर्षीय योजना के तहत, इस घाटे को 2020-21 में जीडीपी के 9.5 प्रतिशत से 2025-26 में घटाकर 4.5 प्रतिशत पर लाने का रोडमैप तैयार किया है.
केंद्र सरकार पर मार्च 2021 में जीडीपी के 58.8 प्रतिशत के बराबर कर्ज था, जबकि इससे एक पहले या 51.6 प्रतिशत के बराबर महामारी के कारण घटती आमदनी के बीच सरकार को खर्चों को पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ा.
सरकार का आम कर्ज जीडीपी के 90 प्रतिशत के बराबर पहुंच गया. इस वृद्धि ने यह चिंता पैदा कर दी कि इस कर्ज का बोझ उठा पाएगी कि नहीं.
रेटिंग का हाल
दूसरी लहर ने कई रेटिंग एजेंसियों को आर्थिक वृद्धि की अपनी भविष्यवाणियों को नीचे लाना पड़ा है. उदाहरण के लिए, एस-ऐंड-पी ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपनी यह भविष्यवाणी 11 प्रतिशत से घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दी. रेटिंग एजेंसियां आम तौर पर मध्यावधि वित्त फाइनान्स पर ज़ोर देती हैं. कुछ एजेंसियों ने सरकार के वित्तीय रोडमैप पर चिंता जताई है. उन्हें लगता है कि यह उम्मीद से ज्यादा सुस्त चाल से चलेगा. हाल में एस-ऐंड-पी ने भारत की रेटिंग बढ़ाने या घटाने की शर्तें तय की है, जबकि भविष्य को मजबूत बताया है.
भारत का मजबूत बाहरी सेक्टर बचाव करेगा लेकिन एजेंसी ने चेतावनी दी कि अगर अर्थव्यवस्था में सुधार धीमा रहा और सरकार का घाटा और कर्ज अनुमान से ज्यादा हो गया तो वह भारत की रेटिंग घटा सकती है. रेटिंग में गिरावट देश में विदेशी निवेश को प्रभावित कर सकती है. इससे कर्ज की लागत बढ़ जाएगी और सरकार के उत्पादक खर्चों के लिए गुंजाइश कम होगी.
(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं.)
(राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. )
व्यक्त विचार निजी हैं
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