वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण वर्ष 2022-23 का केंद्रीय बजट ऐसे समय में पेश करेंगी जब अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के झटके से उबर रही है. आर्थिक कारोबार महामारी से पहले वाली स्थिति में पहुंच चुके हैं मगर ‘रिकवरी’ के स्वरूप को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है.
मुंबई की एक संस्था ‘पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज़ कंज़्यूमर इकोनॉमी’ (प्राइस) के ताजा सर्वे में कहा गया है कि महामारी से शहरी गरीबों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और उनकी आमदनी घट गई. इसके साथ ही ज्यादा समृद्ध औपचारिक क्षेत्रों ने तेज प्रगति की. इस तरह की आर्थिक वृद्धि को ‘k’ आकार का कहा जाता है.
कोविड की लहरों और लॉकडाउन की घोषणाओं ने कामगारों, खासकर ठेके पर काम करवाने वाले सेक्टरों के कामगारों की आमदनी को प्रभावित किया. ‘प्राइस’ के सर्वे के मुताबिक, 2021 में सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों की आमदनी सामान्य समय में होने वाली कमाई से आधी हो गई. इन उपक्रमों में रेस्तरां, दुकान, पार्लर, भवन निर्माण आदि आते हैं. इन सेक्टरों, खासकर लघु फ़र्मों और स्वरोजगार वाले उपक्रमों में रोजगार खत्म हुए जिससे इन क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों की आय घट गई.
उम्मीद की जाती है कि बजट 2022 में ‘रिकवरी’ के इस स्वरूप के प्रति अलग तरह से पहल की जाएगी. सबसे पहले तो इसमें व्यक्तियों और परिवारों को फौरी मदद की पेशकश की जा सकती है. दूसरे, रोजगार बढ़ाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश और उत्पादकता बढ़ाने वाले सुधारों को जारी रखा जा सकता है.
महामारी पीड़ित आबादी के विभिन्न तबकों की सीधी मदद करके परिवारों को राहत दी जा सकती है. यह मुफ्त भोजन, मनरेगा जैसे कई कार्यक्रमों के विस्तार के जरिए जन धन खातों में सीधे नकदी पहुंचाकर यह राहत दी जा सकती है. लेकिन इन कार्यक्रमों से उन सेक्टरों या फ़र्मों में जान नहीं लौटेगी, जो महामारी से प्रभावित हुई हैं. इससे उन व्यक्तियों को मदद मिलेगी जिनका रोजगार और कमाई छिनी है. भवन निर्माण, खुदरा, परिवहन जैसे सेक्टरों में कोविड के बाद रिकवरी हुई है और उम्मीद की जाती है कि उनमें पहले की तरह रोजगार दिया जाएगा.
इसके अलावा, उम्मीद की जाती है कि बजट इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च में वृद्धि करेगा. इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश से रोजगार में वृद्धि होने में समय लगता है, और इससे बीच की अवधि पर प्रभाव पड़ता है. इन्फ्रास्ट्रक्चर आर्थिक कारोबार को बढ़ावा देता है, निजी निवेश को प्रोत्स्शन देता है और उत्पादकता में सुधार लाता है. इसलिए सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह महामारी से पीड़ित लोगों को राहत देने के अलावा ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करेगी जिससे रोजगार के अवसर बढ़ें.
औपचारिक क्षेत्र में रोजगार बढ़ाएं
सबसे गरीब लोगों को फौरी सहायता देने की जरूरत तो है ही, सरकार से अर्थव्यवस्था में रोजगार पैदा करने और उत्पादकता बढ़ाने की उम्मीद की जाती है. इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश और निजी निवेश के लिए उपयुक्त माहौल बनाने पर ज़ोर जारी रहना चाहिए.
विभिन्न सेक्टरों में रिकवरी k आकार की हुई है. महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था में औपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ी है जबकि अनौपचारिक क्षेत्र की घटी है. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह औपचारिकरण जारी रहे या इसे पलटा जाए? भारत में नीति निर्माताओं ने अब तक अर्थव्यवस्था में औपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने पर ही ज़ोर दिया है, जिसमें उत्पादकता ऊंची होती है और कामगारों को काम करने की बेहतर स्थितियां मिलती हैं.
जीएसटी, डिजिटाइजेशन, और तकनीकी प्रगति के साथ जारी यह प्रक्रिया कोविड के दौरान और तेज हुई. भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव छोटी फर्मों की उत्पादकता बढ़ाने में है, न कि अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने में. महामारी से रिकवरी के दौरान अनौपचारिक क्षेत्र का आकार उम्मीद से ज्यादा तेजी से सिकुड़ा. इसलिए औपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर तेजी से बढ़ाने की जरूरत है ताकि रोजगार देने में अनौपचारिक क्षेत्र के उपक्रमों की असमर्थता के कारण बेरोजगार हुए कामगारों को रोजगार मिले. इस मामले में शिक्षा और हुनर अधिक महत्वपूर्ण हो जाएंगे.
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विनिवेश और बॉन्ड बाजार में सुधार
बजट का मकसद केवल विभिन्न मदों के लिए खर्च जुटाना नहीं होता. यह सरकार के लिए आर्थिक सुधारों को स्पष्ट करने का मौका भी देता है. सरकारी उपक्रमों में विनिवेश, बैंकों का निजीकरण, परिसंपत्तियों की बिक्री जारी रहनी चाहिए. इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए वित्त क्षेत्र में बड़ा सुधार करना जरूरी है. ऊंचे लाभ की उम्मीद करने वाले दीर्घकालिक फंड्स के लिए भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश एक बड़ा आकर्षण है.भारत ने गैसों के शून्य उत्सर्जन का जो वादा किया है उसके कारण भी विकसित अर्थव्यवस्थाओं से निवेश योग्य उन फंडों को भारतीय बॉन्ड और इक्विटी आकर्षक लगेंगे जो पर्यावरण अनुकूल परियोजनाओं में पैसा लगाना चाहते हैं.
भारत को ऐसा बॉन्ड बाजार बनाने की जरूरत है जिसमें पेंशन और बीमा कंपनियां अपना ‘ग्रीन’ वित्त दीर्घकालिक निवेश परियोजनाओं में निवेश कर सकें. इसलिए बॉन्ड बाजार में सुधारों की उतनी ही जरूरत है जितनी इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश की जरूरत है. ऋण बाजार में चिरप्रतीक्षित सुधारॉन से बाजार में गहराई और तरलता बढ़ती है.
इसके साथ ही रोजगार बढ़ाने पर ज़ोर डालने के लिए जरूरी है कि व्यवसाय शुरू करना और उसे फैलाना आसान और सुविधाजनक हो. टैक्स व्यवस्था को सरल बनाने, टैक्स दरों में कमी करने, भारत को ग्लोबल वैल्यू चेनों में शामिल करने और फर्मों पर से नियमन का दबाव घटाने से भारत में निवेश आएगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. केंद्रीय बजट 2022 इन सुधारों को आगे बढ़ाने का मौका दे रहा है.
(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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