scorecardresearch
Sunday, 5 May, 2024
होमदेशकॉमेडी की दुनिया में कैसे पहचान बना रहे भारत के दलित कॉमिडियन

कॉमेडी की दुनिया में कैसे पहचान बना रहे भारत के दलित कॉमिडियन

दलित कॉमेडियन अंकुर तंगाडे कहते हैं, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कॉमेडियन किसी और जाति का है या फिर दलित. चुटकुले सभी के लिए हैं. हमारा ध्यान सिर्फ लोगों को हंसाने पर है.’ तंगाडे महाराष्ट्र के बीड में थिएटर के छात्र भी हैं.

Text Size:

टिंडर डेटिंग, ब्रेक-अप, उबर ड्राइवर, बैंगलोर ट्रैफिक की मारा-मारी और इंजीनियरिंग करने के लिए मां-बाप का दबाव और उस पर बने जोक्स- भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडी में मानक गो-टू सेट होते हैं. ज्यादातर कॉमेडियन ऊंची जाति और शहरों से निकलकर आते हैं. वो मायावती, आरक्षण, घरेलू कामगारों और शहर के मॉल में आने वाले ग्रामीणों का मजाक उड़ाते नजर आएंगे. लेकिन दलित कॉमेडियन के माइक पकड़ते ही यह लेजी ट्रॉप बदल जाता है.

‘आप सभी सोच रहे होंगे कि मैं एक वेटर हूं, ऐसा नहीं है?’ छत्तीसगढ़ के बस्तर के 24 साल के दलित कॉमेडियन मंजीत सरकार ने बेंगलुरु में प्लूटो बार और किचन में अपनी एंट्री कुछ इसी अंदाज में की. वह शुरुआत करते हुए कहते हैं, ‘हाय, मैं मनजीत हूं और मैं अपने दायरे से बाहर आना चाहता हूं. मैं एक दलित हूं लेकिन एक ब्राह्मण के रूप में पहचान रखता हूं’ पूरा हॉल हंसी और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है.

हालांकि दलित कॉमेडियन भी भारतीय पेरेंट्स से लेकर डेटिंग ऐप्स और इंजीनियरिंग तक हर चीज के बारे में हल्के-फुल्के अंदाज में चुटकुले सुनाते हैं, लेकिन उनकी पंचलाइन बदली हुई हैं. दलित कॉमेडियन होने की पहचान उन्हें पंच डाउन करने से नहीं रोकती है.

जोक्स तो सभी के लिए हैं

दलित कॉमेडियन अंकुर तंगाडे कहते हैं, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कॉमेडियन किसी और जाति का है या फिर दलित. चुटकुले सभी के लिए हैं. हमारा ध्यान सिर्फ लोगों को हंसाने पर है.’ तंगाडे महाराष्ट्र के बीड में थिएटर के छात्र भी हैं.

जब कोई शो दावा करता है कि उसके पास ‘ऑल दलित लाइन-अप’ है, तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि गुप्ता या मलिकों को यहां आने का निमंत्रण नहीं मिलता है. दलित कॉमेडियन के शो का पूरा मकसद अन्य सभी कॉमेडियनंस की तरह ही मज़ेदार कहानियों को गढ़ना और लोगों को हंसाना है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

हैदराबाद में रहने वाले 25 साल के विज्ञापन पेशेवर मनाल पाटिल ने मुंबई से अपनी स्टैंड-अप यात्रा शुरू की थी. वह बताते हैं, ‘कॉमेडी तो थी ही. इसके अलावा उन्होंने ऑल-दलित लाइन-अप के साथ ‘ब्लू मटेरियल’ नामक एक शो का आयोजन किया. वह कहते हैं, ‘शो में बहुत से उच्च जाति के लोग आए थे.’

किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे कॉमेडियन और निर्माताओं ने ‘आप कब तक जाति पर अटके रहेंगे?’ के बहाने मंच से वंचित कर दिया गया था, उसका कंटेंट अन्य जातियों के लिए अपने आपको सही साबित करने के लिए नहीं है, बल्कि अपनी पहचान को लेकर बनाए गए काफी सारे जोक्स पर है. ट्विटर पर वायरल हुए पाटिल के एक शो की एक क्लिप में वह आरक्षण को लेकर मजाक करते हुए नजर आ रहे हैं. वह बताते है कि कैसे इस वजह से उन्हें एक ‘सुपर पॉवर’ मिल गई है. कॉलेज में एडमिशन से लेकर पिज्जा ऑर्डर तक, अब सब कुछ आरक्षण की वजह से उन्हें बाकी की तुलना सब कुछ जल्दी मिल जाता है. और इसके बाद बड़े पैमाने पर सवर्ण दर्शकों की आवाजों से शो गूंज उठता है.

मंजीत एक दलित भारतीय के जीवन को एक बिल्कुल अलग अंदाज में पेश करते हैं. चूंकि वह एक नक्सली इलाके में पले-बढ़े हैं, वह बारूदी सुरंग से लेकर अपनी ब्राह्मण प्रेमिका तक हर चीज का मजाकिया अंदाज में पेश कर सकते हैं, क्योंकि वह दलित हैं.

वह दिप्रिंट को बताते हैं, ‘मैं ज्यादातर शहरी जीवन और ग्रामीण जीवन के बीच के अंतर को लेकर काफी सारी बातें करता हूं. मैं ऐसी जगह से आता हूं जहां सिर्फ 30 फीसदी लोग ऊंची जाति के हैं. लेकिन मेरा ध्यान मुख्य रूप से मेरे क्षेत्र में आदिवासी आबादी और व्यवस्था के खिलाफ हमारी समस्याओं पर है.’

मंजीत अपने एक शो में कॉमेडी करते हैं, ‘जब लोग मेरे चुटकुलों पर नहीं हंसते हैं, तो मैं उन्हें छू देता हूं. इसके बाद उन्हें गंगा स्नान करना पड़ता है. अनटचेबलिटी मेरी सुपरपॉवर है.’ वह अपने बचपन की कुछ यादों का बड़े ही हल्के-फुल्के अंदाज में बयां करते हैं. वह मजाक-मजाक में बताते हैं कि कैसे एक बार अपने गांव में एक हैंडपंप से पानी लेने के लिए उन्हें फटकार लगी थी. एक ब्राह्मण महिला ने हैंडपंप को ‘शुद्ध’ करने के लिए गंगाजल से साफ किया.

अपनी कहानियों को एक संपन्न कॉमेडी सीन के साथ बेंगलुरु जैसे महानगरीय शहर में लाते हुए मंजीत ने अपने काफी दर्शक बना लिए हैं. मनजीत कहते हैं, ‘जब रेंज रोवर्स वाले लोग मेरे शो में आते हैं, मेरे जोक्स पर हंसते हैं और यहां तक कि मुझे अपनी पार्टी के बाद भी बुलाते हैं, तो अच्छा लगता है.’

लेकिन मंजीत विक्टिम की भूमिका नहीं निभाना चाहते. वह बताते हैं, ‘मैं सहानुभूति पाने के लिए ये सब नहीं कर रहा हूं.’

महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव की एक YouTube सनसनी नेहा थोम्ब्रे, जो फिलहाल नागपुर में रह रही है, मुख्य रूप से मराठी में शो करती है. उन्होंने इस साल नागपुर में अपने एक स्टैंड-अप गिग्स में किए गए एक व्यंग्यपूर्ण मजाक को सुनाया, ‘कुछ दिन पहले, जब मैं विदेश में थी तो मुझे बड़ी हैरानी हुई कि वहां किसी ने मुझसे मेरी जाति नहीं पूछी. मुझे इसकी आदत नहीं है. इतनी समानता? इसे संभालना बड़ा मुश्किल था भाई. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं बेहोश हो जाऊंगी.’

हंसी-मजाक और पूर्वाग्रह 

हंसना एक बात है लेकिन भारत के कॉमेडी सीन में भेदभाव अभी भी बना हुआ है.

तंगाडे ने हमें बताया कि आज एक क्वीर, दलित कॉमिक होने का क्या मतलब है. वह एक सामाजिक कार्यकर्ता की बेटी होने के साथ-साथ खुद भी एक कार्यकर्ता है. वह एक प्रोडक्शन कंपनी की कहानी बताती है जिसने अपने शो के लिए दलित कॉमेडियन को काम पर रखने से इनकार कर दिया था.

अंकुर ने बताया,‘यह एक बहुत बड़ी कंपनी थी और हम उनके लिए काम करने वाले 10-12 दलित कॉमेडियन थे. उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के लिए हम में से किसी की बजाय एक ब्राह्मण को चुना. मैंने इसके बारे में तब तक ज्यादा नहीं सोचा जब तक कि किसी ने मुझे यह नहीं बताया कि कंपनी का सिर्फ ब्राह्मण कलाकारों को काम पर रखने का इतिहास रहा है.’

मंच पर अंकुर बेखौफ रहती हैं. वह कहती हैं ‘पंचिग डाउन का मतलब है कि आप उन लोगों का मज़ाक नहीं उड़ा सकते जो कमजोर या कम शक्तिशाली हैं. लेकिन मैं दलित, क्वीर और महिला हूं, मुझे किसी का भी मजाक उड़ाने की इजाजत है. मैं अल्पमत में अल्पसंख्यक हूं.’

मनाल को पता है कि उनका शो हिट होने पर उन्हें भी जातिवादी टिप्पणियों का सामना करना पड़ेगा.

कॉमेडियन याद करती हैं, ‘मुंबई में बूजी कैफे के मालिक मेरे चुटकुलों पर खूब हंसे थे और वहां मौजूद सभी लोगों ने ऐसा किया था. लेकिन फिर उन्होंने मुझ पर तंज कसा और कहा कि मुझे शो के बाद बर्तन धोने चाहिए.’

भेदभाव सिर्फ कॉमेडी क्लबों में ही नहीं है. भारत के कॉमेडियन एक चुस्त-दुरुस्त कुलीन समूह हैं. एक दलित महिला के रूप में जब वह इस इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रही थी, तो नेहा को अक्सर मेंटरशिप के मामले में उपेक्षा का सामना करना पड़ता था. वह कहती हैं, ‘उच्च जाति के लोगों के लिए अपने सेट को बढ़िया बनाने, और ज्यादा सीखने के लिए मदद मिलना आसान है.’

मंजीत उस समय के बारे में बात करते हैं जब एक दर्शक ने उनसे पूछा, ‘आप अपने शो में लगातार दलितों के बारे में बात करते रहते हैं. लेकिन दलितों की स्थिति तो अब ठीक हो रही है ना.?’

आम तौर पर दर्शक मंजीत के चुटकुलों को पसंद करते हैं और हंसते हैं, लेकिन कभी-कभार कमेंट्स भी आते हैं.

मनजीत कहते हैं, ‘बेंगलुरू में ऊंची जाति को लेकर की गई कॉमेडी में ब्राह्मणों का बहुत अपराध बोध होता है, यहां तक कि मेरे दोस्तों को भी.’

भाषा की राजनीति

बाबासाहेब अम्बेडकर ने भाषाई संस्कृति को बनाए रखने के बारे में बहुत बात की थी.

अंबेडकर ने 1955 में अपनी पुस्तक, थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स में लिखा था, ‘एक राज्य सहानुभूति की भावना पर बनाया गया है. यह सहानुभूति की भावना क्या है? संक्षेप में यह एकता की एक कॉर्पोरेट फीलिंग है जो उन लोगों को महसूस कराती है कि वे निकट संबंधी और रिश्तेदार हैं.’

नेहा, जो अपने YouTube चैनल को ‘एक आंदोलन’ कहती हैं, दर्शकों के सामने अपनी बात रखने के लिए मराठी भाषा की पावर का इस्तेमाल करती हैं. वह अपने काम को ‘सामाजिक चुटकी के साथ कॉमेडी’ कहती हैं. वह कहती हैं कि उनकी भाषा-मराठी-सफलता की सीढ़ी चढ़ने की बड़ी वजह है.

उन्होंने बताया, ‘मेरे हिसाब से कलाकारों की कोई जाति नहीं होती और न ही दर्शकों की.’ वह आगे कहती हैं, ‘लेकिन मेरे अपने समुदाय के लड़के मुझसे शादी नहीं करना चाहते हैं. क्योंकि मेरी कॉमेडी करना उन्हें ठीक नहीं लगता.’

लेकिन मराठी भाषा ने नेहा को अपनी एक अलग पहचान बनाने में मदद की है.

उन्होंने बताया, ‘सवर्ण भाषा या अच्छी हिंदी को एक साफ-सुथरी भाषा माना जाता है. भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को अशुद्ध माना जाता है. लेकिन अपनी बोली का इस्तेमाल करने से मुझे अपने समुदाय को मजबूत करने में मदद मिली है. मुझे अभी-अभी कतर के एक दलित परिवार का फोन आया कि वे मेरे वीडियो को इसी वजह से कितना पसंद करते हैं.’

मंजीत उस समय को याद करते हैं जब वह मुंबई में एक शो से पहले एक ग्रीन रूम में जाते थे, तब वह बहुत अच्छी तरह से अंग्रेजी नहीं जानते थे. वह जोक मारते हुए कहते हैं, ‘मैंने अपने एक अपमान के बाद अंग्रेजी बोलना सीखा था.’ वह हंसते हुए आगे बताते है कि किस तरह से भाषा न बोल पाने के कारण उनके साथ भेदभाव किया गया था. ‘मुझे अन्य कॉमेडियन बड़ी अजीब नजरों से देखा करते थे. जब मैंने उनसे बातचीत करने की कोशिश की थी तो उस समय उनकी नजरों में अपने लिए बेचारगी आज भी याद है. उच्च जाति या ब्राह्मण सोच अब जाति आधारित मुद्दा नहीं है, बल्कि सामाजिक स्थिति या मानसिकता है. मेरे जोक्स में वह टोन हमेशा से मौजूद रहा है.’

लोकप्रियता,संघर्ष और तकलीफों के साथ ये भारत में दलित कॉमेडियन के रूप में अपनी पहचान बनाने में लगे हैं, वे भी अन्य लोगों की तरह जोक बनाने और लोगों को हंसाने की कोशिश कर रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

यह भी पढ़ें : नए ‘जीजा-साला राज’ का उदय? तेज प्रताप के साथ बैठकों में उनके जीजा की मौजूदगी पर BJP ने साधा निशाना

share & View comments