नई दिल्ली: भारत के ‘मिसिंग मिडिल क्लास’- आबादी का वह हिस्सा जो सरकारी स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर किए जाने के लिए बहुत समृद्ध है और निजी बीमा खरीदने के लिए बहुत गरीब है- के स्वास्थ्य संबंधी खर्चे के लिए धनराशि का प्रबंध भारतीय स्वास्थ्य सेवा की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक रहा है. मुंबई की सिर्फ तीन साल पुरानी फिनटेक हेल्थ-टेक क्षेत्र की एक कंपनी अपने प्रीपेड हेल्थ कार्ड के साथ बस इसी चीज को बदलने की तैयारी कर रही है.
क्यूबहेल्थ ने जो योजना अपनायी है वह एकदम सरल है. आप क्रेडिट कार्ड की तरह ही पॉइंट-ऑफ-सेल मशीनों पर भुगतान करने के लिए इस प्रीपेड कार्ड का उपयोग कर सकते हैं लेकिन शर्त यह है कि इसका उपयोग केवल स्वास्थ्य सुविधाओं (हेल्थ फैसिलिटीज) और फार्मेसियों (दवाखानों) में ही किया जा सकता है.
वर्तमान में यह कार्ड केवल कंपनियां द्वारा अपने कर्मचारियों- विशेष रूप से उन्हें जो नियमित बीमा के लिए पात्र नहीं हैं- को देने के लिए उपलब्ध हैं. इस कार्ड की अधिकतम सीमा 10 लाख रुपये है और खर्च की गई राशि को 24 महीनों में ब्याज मुक्त ईएमआई (सामान मासिक किस्तों) में चुकाया जा सकता है.
क्यूबहेल्थ के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रिस जॉर्ज ने दिप्रिंट को बताया कि यह कार्ड अपने आप में अनोखा है क्योंकि उपयोगकर्ता इसका उपयोग न केवल अपने और अपने परिवार के लिए बल्कि अपने दोस्तों और लिव-इन पार्टनर के लिए भी कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस कार्ड का उपयोग करना ‘वाशिंग मशीन खरीदने के लिए अपने क्रेडिट कार्ड को स्वाइप करने’ जितना आसान है.
उन्होंने कहा, ‘यह रूपे या वीजा द्वारा संचालित किसी भी पीओएस मशीन में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसमें प्रक्रियाओं से जुड़ा कोई प्रतिबंध नहीं है और न ही इस बात की कोई रोक-टोक है कि आप अपने परिवार के कितने सदस्यों के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. आप इसका उपयोग अपने दोस्तों के लिए या सिर्फ दवाएं खरीदने के लिए भी कर सकते हैं- जिनमें से किसी की भी एक सामान्य स्वास्थ्य बीमा में अनुमति नहीं होती है. इसमें किसी के मनोनयन (इम्पैनल्मेंट) की भी कोई जरूरत नहीं है.’
इसकी एकमात्र शर्त यही है कि कार्ड का उपयोग सिर्फ किसी स्वास्थ्य सेवा संबंधी प्रतिष्ठान में ही किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘आप इसे शॉपर्स स्टॉप पर इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.’ साथ ही, उन्होंने बताया कि लगभग 30,000 ऐसे कार्ड पहले से ही उपयोग में हैं.
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यह कैसे काम करता है?
क्यूबहेल्थ एक ऐसी कंपनी है जिसके भारतीय और अंतरराष्ट्रीय एंजेल इन्वेस्टर में इन्फ्लेक्शन पॉइंट वेंचर्स, कीरेत्सु फोरम और डाबर के वाइस-चेयरमैन मोहित बर्मन भी शामिल हैं. एंजेल इन्वेस्टर ऐसे व्यक्ति या फर्म होते हैं जो कंपनियों या स्टार्टअप को समर्थन प्रदान करते हैं, आमतौर पर कंपनी में हिस्सेदारी के बदले.
इस कार्ड का लाभ उठाने का विकल्प चुनने वाली कंपनियों के लिए वार्षिक नामांकन शुल्क का भुगतान करना आवश्यक है.
जॉर्ज ने बताया, ‘(इसके अलावा) एक छोटा सा मार्जिन (कमीशन के रूप में मिली अतिरिक्त राशि) भी होता है जो अस्पताल हमें मरीजों द्वारा चुने गए पैकेज के आधार पर देते हैं. लेकिन मूल विचार भारत में स्वास्थ्य पर मरोजों की जेब से होने वाले खर्च को कम करना है.’
ब्याज मुक्त भुगतान और इसके उपयोग पर लगाए गए कम प्रतिबंध उन कारणों में से हैं, जिनकी वजह से रेस्तरां श्रृंखला ‘नंदो’ ने हाल ही में अपने कर्मचारियों के एक हिस्से के लिए क्यूबहेल्थ को चुना है.
नंदो की डायरेक्टर (पीपल) रुचिरा प्रियदर्शिनी ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी कंपनी पिछले दो महीनों से अपने ब्लू-कॉलर कर्मचारियों के लिए इस कार्ड का उपयोग कर रही थी. उन्होंने कहा कि ऐसे कर्मचारियों को स्वास्थ्य संबंधी कवर प्रदान करना चुनौतीपूर्ण होता है.
उन्होंने कहा, ‘पहला, तो इनके परिवार का आकार आमतौर पर बड़ा होता है और दूसरे, वे काफी कम कमा पाते हैं और इसलिए उनकी बचत भी कम होती है.’
हालांकि ऐसे कर्मचारी आमतौर पर कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के अंतर्गत आते हैं, मगर इसके लिए उन्हें ईएसआईसी अस्पतालों में जाना होता है, जो अक्सर उनके गांवों में मौजूद नहीं होते हैं.
रचिरा कहती हैं, ‘क्यूबहेल्थ कार्ड का उपयोग हर जगह किया जा सकता है और इसका उपयोग किसके लिए किया जाता है, इस पर कोई रोक नहीं है.’
क्यूबहेल्थ अपने कपड़ों के लिए प्रसिद्ध भारतीय ब्रांड रेमंड और को-वर्क स्पेस सॉल्यूशंस (एक साथ काम करने की जगह) प्रदाता स्मार्टवर्क्स सहित कई कंपनियों के साथ बातचीत के विभिन्न चरणों में है.
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भारत का ‘मिसिंग मिडिल’
स्वास्थ्य संबंधी देखभाल पर भारत का सार्वजनिक व्यय इसकी जीडीपी के एक प्रतिशत से थोड़ा ही अधिक है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य संबंधी खर्चे के भयावह रूप लेने पर आबादी का एक बड़ा हिस्सा दिवालियेपन की चपेट में आ जाता है.
इसी तरह की स्थिति को संभालने के लिए ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने 2018 में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई)- आयुष्मान भारत योजना की तृतीयक स्वास्थ्य संबधी देखभाल शाखा शुरू की थी. इस योजना का उद्देश्य 10 करोड़ से अधिक परिवारों को स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच से वंचित रहने- जैसा कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) में परिभाषित किया गया है- के मामले में मदद करना है.
इसके बावजूद, लगभग 80 करोड़ भारतीय (प्रति परिवार पांच लोगों के अनुमानित औसत परिवार आकार के साथ) इस योजना के दायरे से बाहर रह गए थे. भारत में स्वास्थ्य बीमा की पैठ 35 प्रतिशत पर आंकी गई है.
थिंक टैंक (स्वास्थ्य) के सदस्य डॉ वी.के. पॉल ने नीति आयोग के एक दस्तावेज की प्रस्तावना में लिखा है कि भारत की 30 प्रतिशत आबादी- 40,00,000,000 से अधिक व्यक्तियों के पास ‘अभी भी स्वास्थ्य के लिए किसी भी प्रकार की वित्तीय सुरक्षा की कमी है’.
पॉल ने लिखा है, ‘प्रतिकूल स्वास्थ्य संबंधी घटनाएं इनके लिए वित्तीय कठिनाइयों का कारण बन सकती हैं और यहां तक कि उन्हें गरीबी की ओर धकेल भी सकती हैं. (आबादी के) इसी हिस्से को ‘मिसिंग मिडिल’ कहा जाता है क्योंकि वे इतने गरीब नहीं हैं कि सरकारी-अनुदान वाली बीमा योजना द्वारा कवर किये जा सकें, मगर वे निजी रूप से बीमा पालिसी खरीदने के लिए पर्याप्त रूप से समृद्ध भी नहीं हैं. इस ‘मिसिंग मिडिल’ की पहचान अनौपचारिक रोजगार से है जिसमें अस्थिर आय और सामाजिक सुरक्षा संबंधी लाभों की कमी है.’
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