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Friday, 26 April, 2024
होमहेल्थCovid ग्रस्त भारतीय बच्चों की स्टडी में खुलासा- संक्रमण ज्यादातर या तो हल्का है या बिना लक्षण का

Covid ग्रस्त भारतीय बच्चों की स्टडी में खुलासा- संक्रमण ज्यादातर या तो हल्का है या बिना लक्षण का

इंडियन पीडियाट्रिक कोविड स्टडी ग्रुप ने पिछले साल, मार्च और नवंबर के बीच, 402 कोविड ग्रस्त बच्चों पर नज़र रखी, और पाया कि केवल 9.7% मामले गंभीर थे, जबकि 13% बच्चे बीमारी से मौत का शिकार हो गए.

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नई दिल्ली: एक नई स्टडी में पता चला है कि कोविड-19 से संक्रमित बच्चों की एक बड़ी संख्या के संभावित रूप से बिना-लक्षण का होने की संभावना है या उनकी बीमारी हल्की हो सकती है. इसके अपवाद केवल वो बच्चे होंगे, जिन्हें दूसरी बीमारियां भी हैं. स्टडी में जिन 402 बच्चों पर नज़र रखी गई, उनमें से केवल 13 प्रतिशत मौत का शिकार हुए.

ये स्टडी इंडियन पीडियाट्रिक कोविड स्टडी ग्रुप द्वारा की गई, जिसमें देशभर के चिकित्सा संस्थानों के अग्रणी डॉक्टर्स शामिल हैं. दिप्रिंट को उस स्टडी की एक कॉपी मिल गई है.

मार्च और नवंबर के बीच शोधकर्ताओं ने 402 बच्चों पर नज़र रखी, जो कोविड से ग्रस्त थे- जन्म से ही संक्रमित शिशुओं से लेकर 12 साल के मरीज़ों तक. ये स्टडी भारत के पांच चिकित्सा केंद्रों पर की गई- दिल्ली, भुवनेश्वर और जोधपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), हुबली का कर्नाटक चिकित्सा विज्ञान संस्थान (किम्स) और श्रीनगर का शेर-ए-कश्मीर चिकित्सा विज्ञान संस्थान (स्किम्स). इन अस्पतालों का चयन देश के पांचों जोन्स का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया था- उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और केंद्र.

स्टडी में कई निष्कर्ष निकाले गए: प्रमुख लेखकों में से एक, डॉ काना राम जाट ने बताया कि सबसे आम लक्षण जो देखा गया वो था बुख़ार, जिससे 38 प्रतिशत मरीज़ प्रभावित थे; अधिकतर मरीज़ों (54 प्रतिशत) में हल्के लक्षण थे; और केवल 9.7 प्रतिशत मामले मध्यम से गंभीर की श्रेणी में थे.

हाल ही में बच्चों के बीच कोविड, एक चिंता का विषय रहा है, ख़ासकर जब पिछले वर्ष के मुक़ाबले, इस साल दूसरी लहर में ज़्यादा बच्चे इसकी चपेट में आए. आईसीएमआर महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव के अनुसार पहली लहर में क़रीब 3.4 प्रतिशत और दूसरी लहर में क़रीब 4.4 प्रतिशत मरीज़ बच्चे थे.

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संभावित रूप से तीसरी लहर आने की चर्चा के बीच, एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि बच्चों के लिए कोविड वैक्सीन्स, सितंबर-अक्टूबर में उपलब्ध हो जाने की संभावना है.

लेकिन, 22 मई को एक बयान में, इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने दोहराया कि बच्चों में क़रीब 90 प्रतिशत संक्रमण हल्के या बिना लक्षण के हैं और उनमें गंभीर संक्रमण के मामले बेहद कम हैं.


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44% मरीज़ों को अन्य बीमारियां थीं

402 मरीज़ों में 190 एम्स दिल्ली में भर्ती थे, 74 एम्स भुवनेश्वर में थे, 68 किम्स में थे, 60 एम्स जोधपुर में थे और 10 स्किम्स में थे.

जहां 11 मरीज़ नवजात थे, 45 मरीज़ एक साल से कम के थे, 118 एक से 5 साल के बीच के थे और 221 बच्चे 5-12 आयु वर्ग में थे.

ग्रुप में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे पुष्ट कोविड पॉज़िटिव मरीज़ों के संपर्क में आए थे और क़रीब 44 प्रतिशत में कुछ दूसरी बीमारियां थीं.

स्टडी के विषयों में सबसे आम अन्य बीमारी थी नुक़सानदेहता (जैसे लुकेमिया), जिसके बाद थी दिल की बीमारियां. जो 13 प्रतिशत बच्चे कोविड में मौत का शिकार हुए, उनमें पांच के सेंट्रल नर्वस सिस्टम में ख़राबी थी, तीन लुकेमिया से ग्रसित थे, तीन में जन्मजात हृदय रोग थे, एक में स्टेरॉयड-विरोधी नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम (गुर्दे की बीमारी) और टाइप-1 डायबिटीज़ थी.

स्टडी के सह-लेखक डॉ. झूमा शंकर ने कहा, ‘बुख़ार, लाल चकत्तों और उल्टी के अलावा, अंतर्निहित बीमारी, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया, अधिक यूरिया, कम टोटल सीरम प्रोटीन (जो कुपोषण या इनफ्लेमेटरी बाउल डिज़ीज़ेज़ का संकेत हो सकते हैं) और बढ़ा हुआ सी-रिएक्टिव प्रोटीन (जिसके ज़रिए ख़ून में लिवर से सी-रिएक्टिव प्रोटीन की सीमा का पता चलता है) ऐसे कारक थे, जिनका संबंध बच्चों में मध्यम से गंभीर बीमारियों से था’.

लेकिन, स्टडी में ये भी कहा गया कि ‘…लक्षणों की परिवर्तनशीलता, भौगोलिक अंतर और टेस्टिंग रणनीति के फ़र्क़ की वजह से भी अलग हो सकती है’.

25 पन्नों की स्टडी में ये भी कहा गया कि अधिकतर बच्चे जिनमें लक्षण थे, उन्हें ‘सहायक चिकित्सा’ (लक्षण-आधारित इलाज) दी गई, जबकि बिना लक्षण वालों को ऐसा कोई इलाज नहीं मिला. लेकिन, कुछ ख़ास मामलों, जैसे कि गंभीर संक्रमण वाले बच्चों को एंटीबायोटिक्स और एंटीवायरल उपचार दिए गए.

चूंकि स्टडी में ऐसे बच्चे शामिल नहीं किए गए, जो होम आइसोलेशन में थे, इसलिए अस्पताल में भर्ती और निगरानी किए जा रहे बच्चों के लिए स्टडी की औसत अवधि 10 दिन थी.

इस बीच, एक अन्य नई स्टडी के अनुसार, बच्चों में सार्स-सीओवी-2 से जुड़ी एक दुर्लभ बीमारी के लक्षण, जिन्हें मल्टी सिस्टम इनफ्लेमेटरी सिण्ड्रोम (वायरस की एक भड़काऊ प्रतिक्रिया, जो कोविड संक्रमण के समय या ठीक होने के एक या दो महीने के भीतर नज़र आ सकती है) भी कहते हैं, गंभीर बीमारी के बावजूद, आमतौर से छह महीने के भीतर ठीक हो जाते हैं.

मई में दि लांसेट चाइल्ड एंड एडोलिसेंट हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुई स्टडी में, यूके के ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट हॉस्पिटल में इलाज किए गए 46 बच्चों में, अस्थायी रूप से सार्स-सीओवी-2 से जुड़े पीडियाट्रिक इनफ्लेमेटरी मल्टी सिस्टम सिण्ड्रोम (पिम्स-टीएस) को देखा गया. ये 46 बच्चे जिन्हें पिम्स-टीएस था, एक विशेषज्ञ बाल चिकित्सा अस्पताल में 4 अप्रैल से 1 सितंबर के बीच भर्ती हुए थे. इन बच्चों की औसत उम्र 10 साल थी. केवल 8 बच्चों को पहले से अन्य बीमारियां थीं. किसी भी मरीज़ की मौत नहीं हुई.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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