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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थUP के खस्ताहाल हेल्थकेयर सिस्टम की कहानी- शहरों के अस्पतालों में भारी भीड़, गांवों में सुविधाएं नदारद

UP के खस्ताहाल हेल्थकेयर सिस्टम की कहानी- शहरों के अस्पतालों में भारी भीड़, गांवों में सुविधाएं नदारद

ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसीज़) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसीज़) पर खस्ताहाल सुविधाओं के चलते ज़्यादातर गांव वालों को छोटी-मोटी बीमारियों के लिए झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है.

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इलाहाबाद, फतेहपुर, कौशांबी: सोमवार (26 अप्रैल) की दोपहर है और स्वरूप रानी नेहरू सरकारी अस्पताल के कोविड-19 वॉर्ड 2 का गलियारा, जो प्रयागराज का सबसे बड़ा ज़िला अस्पताल है, किसी रेलवे प्लेटफॉर्म जैसा नज़र आ रहा है.

कोविड मरीज़ों के बेचैन रिश्तेदार, जो ज़्यादातर ज़िले के छोटे कस्बों और गांवों से आए हैं, सामान समेत वॉर्ड के अंदर बरामदे में एक साथ जमा हैं.

सोशल डिस्टेंसिंग जैसे कोविड-19 प्रोटोकॉल का बिल्कुल भी पालन नहीं हो रहा है और रिश्तेदार बस बेडशीट्स बिछाकर डेरा जमाए हुए हैं- कुछ लंच कर रहे हैं जबकि दूसरे इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में भर्ती, अपने प्रियजनों की हालत के बारे में जानकारी लेने के लिए अस्पताल के स्टाफ की बाट जोह रहे हैं.

गलियारे में बैठे हुए लोगों में एक है पुष्पेंद्र दूबे, जो अपनी मां और छोटे भाई के साथ पास के नैनी कस्बे से आया है. इस 18 वर्षीय युवक के पिता आशीष, जो एक प्राइमरी स्कूल टीचर हैं और दमे के रोगी हैं, कोविड पॉज़िटिव हो गए हैं और अब पिछले तीन दिन से यहां एक वॉर्ड में ज़िंदगी के लिए जूझ रहे हैं.

वो पूछता है, ‘हम जानते हैं यहां बैठने में खतरा है लेकिन ऐसी हालत में हम कहां जाएं? कौन रखेगा हमें? मेरे पिता यहां गंभीर हैं और हम उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाहते. इसीलिए हम यहां जमे हुए हैं’.

दूबे, जो एक सिविल इंजीनियरिंग डिप्लोमा छात्र हैं, अकेले ऐसे नहीं है. रविवार और सोमवार को दिप्रिंट ने कॉरीडोर में बैठे ऐसे बहुत से परिवारों से मुलाकात की, जो इलाज करा रहे अपने परिजनों पर नज़र बनाए हुए हैं.

इस कॉरीडोर का इस्तेमाल अस्पताल कर्मी, बाहर से कोविड मरीज़ों को लाने और गंभीर मरीज़ों को एक वॉर्ड से दूसरे वॉर्ड में शिफ्ट करने के लिए भी करते हैं.

Pushpendra Dubey with his mother and younger brother | Photo: Moushumi Das Gupta
अपनी मां और छोटे भाई के साथ पुष्पेंद्र दुबे | फोटो: मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

स्वरूप रानी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ अजय सक्सेना ने दिप्रिंट को फोन पर बताया कि उन्हें मालूम है कि मरीज़ों के तीमारदार बरामदे में ठहरे हुए हैं.

उन्होंने कहा, ‘ये बहुत कठिन समय है, हम परिवारों को बाहर नहीं फेंक सकते. उनमें बहुत से आसपास के कस्बों और गांवों से आए हैं और उनके पास कोई दूसरा ठिकाना नहीं है. हम इन परिवारों के लिए बाहर कोई कामचलाऊ आश्रय बनाने की सोच रहे हैं’.

डॉ सक्सेना, जिनका खुद का टेस्ट भी पॉज़िटिव आया है, ने आगे कहा कि प्रयागराज ज़िला मजिस्ट्रेट भी इस स्थिति से अवगत हैं और इससे निपटने की कोशिश कर रहे हैं. डॉ सक्सेना ने आगे कहा, ‘मरीज़ों की भारी संख्या ने अस्पताल के ढांचे पर ज़बरदस्त बोझ डाल दिया है. हमारे पास 650 कोविड बिस्तर हैं और फिलहाल वो सब भरे हुए हैं’.

अस्पताल की स्थिति उत्तर प्रदेश में कोविड-19 से चल रहे संघर्ष का एक छोटा सा नमूना है, जहां मामलों में आए भयानक उछाल ने राज्य के खस्ताहाल स्वास्थ्य सिस्टम को बेनकाब कर दिया है.

यूपी में सोमवार को 33,574 नए मामले और 249 मौतें दर्ज की गईं लेकिन राज्य के आंकड़ों पर सवाल उठाए जा रहे हैं.


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ब्लॉक्स व गांवों में जर्जर स्वास्थ्य प्रणाली

यूपी के ज़िलों में जहां बड़े सरकारी अस्पताल मामलों में आई तेजी से जूझ रहे हैं, वहीं ब्लॉक्स और गांवों में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं या तो नाम-मात्र की हैं या बिल्कुल नदारत हैं.

दिप्रिंट ने तीन ज़िलों- प्रयागराज, फतेहपुर और कौशांबी का दौरा किया और पाया कि उन सभी में गैर-हाज़िर डॉक्टर्स, बंद पड़े प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसीज़) और स्टाफ की कमी से जूझ रहे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) एक आम बात हैं.

शंकरगढ़ सीएचसी पर, जो प्रयागराज से बमुश्किल 50 किलोमीटर दूर है, इंचार्ज डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह ने सीएचसी परिसर के अंदर ही अपनी निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी है. रविवार को जब दिप्रिंट ने सीएचसी का दौरा किया, तो वो अपने घर पर मरीज़ देखने में व्यस्त थे.

सीएचसी में स्टाफ की कमी है और डॉक्टर सिंह समेत यहां केवल तीन एमबीबीएस डॉक्टर्स हैं. ब्लॉक में दो और पीएचसी हैं लेकिन वहां कोई डॉक्टर नहीं हैं. डॉ सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘यहां पर हमारे पास सीमित सुविधाएं हैं. गंभीर मरीज़ों को हम प्रयागराज के ज़िला अस्पताल में भेज देते हैं’.

Dr Shailendra Kumar Singh, incharge of community health centre at Shankargarh, attends to patients in his house | Photo: Moushumi Das Gupta/ThePrint
शंकरगढ़ स्थित सीएचसी के इनचार्ज डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह, मरीजों को अपने घर पर देखते हुए | फोटो: मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

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‘सिर्फ 25 आरटी-पीसीआर टेस्ट कीजिए’

शंकरगढ़ सीएचसी में कोविड-19 टेस्ट किए जा रहे हैं लेकिन सीमित सुविधाओं की वजह से यहां हर रोज़ सिर्फ 70-100 टेस्ट किए जाते हैं.

सिंह ने कहा कि वो ज़्यादातर रैपिड एंटिजन टेस्ट ही कर रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘हमसे कहा गया है कि हर रोज़ आरटी-पीसीआर टेस्टों की संख्या 25 तक सीमित रखी जाए’.

सिंह ने कहा कि कारण ये था कि आरटी-पीसीआर नमूने, प्रयागराज के स्वरूप रानी अस्पताल को भेजे जाते हैं, जो बकाया नमूनों से जूझ रहा है.

डॉ सिंह ने कहा, ‘यहां हमारे पास सैंपल्स के विश्लेषण की सुविधा नहीं है. लेकिन फिलहाल अस्पताल के पास टेस्ट के लिए नमूनों की भरमार है और इतने अधिक नमूनों को प्रोसेस करना मुश्किल हो रहा है’.

सिंह ने कहा कि गांव वाले बीमार होने पर पीएचसी और और सीएचसी जाने में झिझकते हैं और ‘झोला छाप ‘ डॉक्टरों से इलाज कराना पसंद करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘लक्षण होने के बावजूद वो अपनी जांच कराने नहीं आते. हम उन्हें मजबूर नहीं कर सकते. वो तभी आते हैं जब उनकी हालत गंभीर हो जाती है. उस समय तक हम कुछ नहीं कर सकते’.

ये पूछने पर कि अगर किसी कोविड-19 पॉज़िटिव की हालत गंभीर हो जाए, तो क्या प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है, डॉ सिंह ने कहा, ‘यहां हमारे पास कोविड मरीज़ों के इलाज की सुविधा नहीं है. हल्के लक्षण वालों को हम घर पर अलग रहने के लिए कह देते हैं और गंभीर मरीज़ों को प्रयागराज के ज़िला अस्पताल भेज दिया जाता है’.

शंकरगढ़ सीएचसी से 25 कोलोमीटर दूर है, लालापुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी).

रविवार को जब दिप्रिंट ने वहां का दौरा किया, तो पीएचसी को बंद पाया. ‘पिछली बार जब कोई डॉक्टर पीएचसी आया था, तो वो करीब छह महीना पहले था. अब यहां सिर्फ एक फार्मेसिस्ट और एक वॉर्ड ब्वॉय है,’ ये कहना था एक ड्राइवर का, जो पीएचसी पर मौजूद था. वो अपना नाम नहीं बताना चाहता था.

The shut Lalapur primary health centre | Photo: Moushumi Das Gupta/ThePrint
लालापुर का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र | फोटो: मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

शंकरगढ़ की दूसरी पीएचसी भी, जो नारीबाड़ी गांव में स्थित है, उतने ही बुरे हाल में है. उसके डॉक्टर और फार्मासिस्ट दोनों को प्रयागराज के कोविड अस्पतालों में ड्यूटी पर भेज दिया गया है.

लालापुर गांव में रहने वाले एक रिटायर्ड सरकारी स्कूल प्रिंसिपल, वंसीधर द्विवेदी ने कहा कि आपात स्थिति में, गांववालों के पास इलाज के लिए कानपुर या इलाहबाद जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी तो वो रास्ते में ही मर जाते हैं. यहां पीएचसी में कोई सुविधा नहीं है, चाहे डॉक्टर हो या दवाएं. यहां सिर्फ झोलाछाप डॉक्टर राज कर रहे हैं’.


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16 स्टॉफ में से केवल 5 ही काम पर

यही स्थिति फतेहपुर जिले के खखरेरू गांव के सीएचसी का भी है.

यहां कुल स्टॉफ 16 हैं लेकिन अभी यहां केवल 2 डॉक्टर और तीन नर्स काम कर रही हैं.

The four staff members at the CHC in Khakhreru village of Fatehpur district | Photo: Moushumi Das Gupta/ThePrint
फतेहपुर जिले के खखरेरू गांव में स्थित सीएचसी के चार स्वास्थ्यकर्मी | फोटो: मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

सीएचसी के इनचार्ज डॉ राजू राव ने कहा, ‘हमारे पास यहां चार एमबीबीएस डॉक्टर्स हैं लेकिन अभी एक को कोविड ड्यूटी पर प्रयागराज भेजा गया है और दूसरा कोविड संक्रमित है.’

डॉ राव ने बताया कि इस सीएचसी में सिर्फ कोविड के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट की ही सुविधा है.

उन्होंने बताया, ‘हम दिन में करीब 26-27 टेस्ट करते हैं. हम हल्के मामलों को होम आइसोलेशन में भेज देते हैं जबकि गंभीर मामलों को जिला अस्पताल में रेफर करते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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