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Friday, 19 April, 2024
होमहेल्थवायरस के स्पाइक प्रोटीन और इंसानी शरीर के ACE2 के बीच क्या रिश्ता है, इस बारे में क्या कहती है IIT मद्रास की स्टडी

वायरस के स्पाइक प्रोटीन और इंसानी शरीर के ACE2 के बीच क्या रिश्ता है, इस बारे में क्या कहती है IIT मद्रास की स्टडी

स्टडी के मुताबिक, इंसानों के अंदर ACE2 रिसेप्टर साइट पर, स्पाइक प्रोटीन की पारस्परिक क्रिया को समझने से कोरोनावायरस की गंभीरता को कम करने और इलाज के विकल्प तलाशने में मदद मिलेगी.

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नई दिल्ली: कॉमन कोल्ड फैलाने वाले कोरोनावायरसों की तुलना में कोविड-19 के विनाशकारी संचारण और संक्रमण का कारण, ऊंची ऊर्जा की पारस्परिक क्रिया और सार्स-सीओवी-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन तथा इंसानी एसीई2 रिसेप्टर प्रोटीन के बीच का एरिया होता है, जहां से अंदर घुसकर कोरोनावायरस, इंसानी सेल्स की एक व्यापक रेंज को संक्रमित कर देता है. ये आईआईटी मद्रास की एक स्टडी में पता चला है.

टीम ने तीन वायरसों के बीच एक विश्लेषणात्मक अध्ययन किया, जिन्होंने इंसानों को प्रभावित किया है- सार्स-सीओवी, जो 2002 में चीन में सामने आया था, कॉमन कोल्ड फैलाने वाले कोरोनावायरस का स्ट्रेन, एनएल63, जिसका सबसे पहले 2004 में नीदरलैंड्स में पता चला था और सार्स-सीओवी-2, जो मौजूदा कोविड-19 महामारी का कारण है.

शोधकर्त्ताओं को पता चला है कि वायरसों के स्पाइक प्रोटीन और इंसानी शरीर के एसीई2 के बीच क्रियाकलाप का एरिया, कोरोनावायरसों की गंभीरता और संचारण संभावना तय करने में अहम भूमिका अदा करता है.

एसीई2 का बांधने वाला प्रोटीन, जिसे एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंज़ाइम 2 भी कहा जाता है, कोरोनावायरस को अंदर घुसने का रास्ता देता है, जहां से आकर वो इंसानी सेल्स की एक व्यापक रेंज को संक्रमित कर देता है. सरल रूप से कहें तो ये प्रोटीन, कोरोनावायरस के इंसानी शरीर में घुसने के लिए रास्ते का काम करता है. एसीई 2 बहुत तरह के सेल और टिश्यूज़ की लाइनिंग्स पर मौजूद रहता है, जिनमें फेफड़े, दिल, खून की धमनियां, गुर्दे, जिगर और पाचन नलिका आदि शामिल हैं.

ये स्टडी जिसका शीर्षक है ‘एसीई 2 को बांधने वाले कोरोनावायरस स्ट्रेन्स सार्स-सीओवी/सार्स-सीओवी 2 प्रचंड, और एनएल 63 हल्के क्यों होते हैं?’ 16 नवंबर 2020 को वैज्ञानिक पत्रिका प्रोटीन्स: स्ट्रक्चर, फंक्शन, बायोइनफोर्मेटिक्स में प्रकाशित हुई थी. आईआईटी रिसर्चर्स ने अपने निष्कर्ष इस सोमवार को साझा किए.

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रिसर्च टीम की अगुवाई कर रहे थे, आईआईटी मद्रास में बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एम माइकल ग्रोमिहा, आईआईटी मद्रास में स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज़ के भूपत और ज्योति मेहता, आईआईटी मद्रास से ही रिसर्च स्कॉलर्स डॉ पुनीत रावत और डॉ शर्लिन जेमिमा. टीम ने मद्रास यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस-चांसलर प्रो. पीके पोन्नुस्वामी के साथ मिलकर काम किया.


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‘सार्स-सीओवी 2 संक्रमण सबसे गंभीर’

शोधकर्त्ता समझना चाहते थे कि हाल ही में महामारी फैलाने वाले, सार्स-सीओवी और सार्स-सीओवी 2 जैसे कोरोनावायरस, एनएल 63 जैसे कॉमन कोल्ड फैलाने वाले कोरोनावायरसों से अधिक घातक क्यों हैं.

ऐसा करने के लिए, उन्होंने अध्ययन किया कि विभिन्न वायरस स्ट्रेन्स के स्पाइक प्रोटीन्स, इंसानी सेल्स के एसीई2 रिसेप्टर्स से कैसे मिलते हैं और ये इंटरेक्शन उनकी संचारण क्षमता तथा बीमारी की गंभीरता को कैसे प्रभावित करता है.

उन्हें पता चला कि वायरसों के स्पाइक प्रोटीन और इंसानी शरीर के एसीई2 के बीच परस्पर इंटरेक्शन का एरिया, जो हाइड्रोफोबिसिटी तथा इंटरेक्शन एनर्जी के आसपास होता है, कोरोनावायरसों की गंभीरता और संचारण संभावना तय करने में एक अहम भूमिका अदा करता है. हाइड्रोफोबिसिटी पानी से पीछे हटने की विशेषता को कहा जाता है.

स्टडी के लीड रिसर्चर डॉ माइकल ग्रोमिहा ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसकी विशेषताओं का अध्ययन करने के बाद हमें पता चला कि सार्स-सीओवी-2 संक्रमण ज़्यादा गंभीर है. हमने पाया कि वायरस के इस ताज़ा तरीन म्यूटेशन में बहुत अधिक इंटरेक्शन एनर्जी है…इसका अर्थ है कि वायरस के स्पाइक प्रोटीन और एसीई2 के बीच एक बड़ा कॉमन एरिया और करीबी रिश्ता है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मसलन, जब दो बॉडीज़ संपर्क में आती हैं, तो उनके बीच ऊंची इंटरेक्शन इनर्जी का मतलब होगा कि उनके बीच बड़ा कॉमन एरिया हैं’. उन्होंने ये भी कहा, ‘जब दोनों सरफेस के बीच का जोड़ मज़बूत होता है तो बीमारी की गंभीरता भी ज़्यादा होती है’.

टीम ने ये भी पाया कि सार्स-सीओवी और सार्स-सीओवी-2 से तुलना करने पर एनएल 63 में एसीई 2 को बांधने वाली अनोखी साइट्स होती हैं.

शोधकर्त्ताओं के मुताबिक, होस्ट-पैथोजन को समझने से कोई ऐसे उपाय ढूंढ निकालने में मदद मिलेगी, जिससे गंभीर बीमारी पैदा करने वाले कोरोनावायरसों पर काबू पाया जा सके और उनके कारगर उपचार विकसित किए जा सकें.

स्टडी में लेखकों ने कहा, ‘इस स्टडी में इंगित किए गए तीन वायरसों के स्पाइक प्रोटीन्स में समानताओं और अंतर से शोधकर्त्ता, एसीई 2 बाइंडिंग के संरचनात्मक व्यवहार, बाइंडिंग साइट विशेषताओं और एटियोलॉजी को गहराई से समझ सकते हैं, संभावित लीड मॉलीक्यूल्स की स्क्रीनिंग को तेज़ कर सकते हैं और उपचार की दवाओं का विकास कर सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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