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Wednesday, 6 November, 2024
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स्पूतनिक V जुलाई के बाद बन सकती है भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा

एनटीएजीआई के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के प्रमुख डॉ एन.के अरोड़ा का कहना है कि एक बार भारत में स्पूतनिक वी के पर्याप्त डोज़ निर्मित हो जाएं, तो फिर ये वैक्सीन सभी आयु वर्गों को दी जा सकती है.

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नई दिल्ली: स्पूतनिक वी, जुलाई के बाद राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बन सकती है, जब पर्याप्त संख्या में खुराकों का उत्पादन शुरू हो जाएगा. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

रूस में बनी वैक्सीन फिलहाल सिर्फ निजी क्षेत्र में उपलब्ध है और इसे रखने के लिए माइनस 18 से माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है, जो उस 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान से काफी कम होता है, जिसकी फिलहाल राष्ट्रीय कार्यक्रम में इस्तेमाल हो रहीं दो वैक्सीन्स- कोविशील्ड और कोवैक्सीन को ज़रूरत होती है.

लेकिन कार्यक्रम से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि भंडारण तापमान से कोई परेशानी पैदा नहीं होनी चाहिए.

‘फिलहाल भारत में करीब 1.5–2 लाख वैक्सीन्स हैं, जो देश में आयात की गई हैं, इसलिए वो ज़्यादातर निजी क्षेत्र में ही उपलब्ध होंगी. लेकिन जुलाई के बाद वो राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल हो सकती हैं, जब अपेक्षा की जा रही है कि देश के अंदर ही बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो जाएगा. तब इन्हें सभी आयु वर्गों को दिया जा सकेगा,’ ये कहना था डॉ एनके अरोड़ा का, जो टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष और इनक्लेन ट्रस्ट के डायरेक्टर हैं.

डॉ अरोड़ा ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस वैक्सीन को माइनस 18 से माइनस 20 डिग्री के तापमान पर रखना होता है लेकिन वो कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि ये वही टेम्प्रेचर है जिसपर पोलियो टीका भी रखा जाता है. इसलिए प्रोग्राम तैयार है. सवाल बस ये है कि इसके डोज़ पर्याप्त संख्या में कब उपलब्ध होंगे’.

कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच के अंतराल को बढ़ाकर 12-16 हफ्ते करने का हालिया फैसला अरोड़ा की अगुवाई में काम कर रहे वर्किंग ग्रुप की सिफारिश के आधार पर ही लिया गया था.

इस बीच कोविन प्लेटफॉर्म ने पहले ही स्पूतनिक को एक वैक्सीन विकल्प के रूप में दिखाना शुरू कर दिया है.


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‘भारत सरकार से इतर’ चैनलों से हो रही स्पूतनिक की खरीद

अगले तीन महीनों में भारत में रूस से स्पूतनिक वी वैक्सीन आनी शुरू हो जाएगी. भारत सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मई, जून और जुलाई में वैक्सीन की क्रमश: 60 लाख, 1 करोड़ और 2 करोड़ खुराकें (30 लाख, 50 लाख और 1 करोड़ लोगों के लिए) उपलब्ध हो जाएंगी.

ये वैक्सीन्स ‘भारत सरकार से इतर’ दूसरे खरीद चैनलों से उपलब्ध होंगी जिसका मतलब है कि राज्य या निजी अस्पताल उन्हें खरीद सकते हैं लेकिन भारत सरकार नहीं खरीदेगी.

डॉ रेड्डीज़ लैबोरेट्रीज़ ने, जो भारत में स्पूतनिक वी का आयात कर रही है, वैक्सीन लगाए जाने के लिए हाल ही में अपोलो हॉस्पिटल्स के साथ एक करार का ऐलान किया. कोवैक्सीन और कोविशील्ड की सप्लाई में आ रही गंभीर बाधाओं को देखते हुए कुछ राज्य सरकारें भी स्पूतनिक खरीदने की कोशिश कर रही हैं.

जुलाई 2021 तक रूस में निर्मित वैक्सीन का घरेलू उत्पादन 1.2 करोड़ डोज़ प्रति माह तक पहुंचने की उम्मीद है.


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दो खुराकों के लिए स्पूतनिक में इस्तेमाल होते हैं दो अलग-अलग एडिनो वेक्टर्स

स्पूतनिक वैक्सीन के दो डोज़ तीन हफ्ते के अंतराल से दिए जाने हैं. कोविशील्ड की तरह इसमें भी एक एडिनोवायरस (कमज़ोर किया गया कॉमन कोल्ड वायरस) का वेक्टर की तरह इस्तेमाल होता है जिससे सार्स-सीओवी-2 वायरस के कुछ तत्व शरीर में भेजे जाते हैं, जो वायरल इनफेक्शन की चढ़ाई होने पर इम्यून सिस्टम को उसे पहचानना सिखाते हैं.

लेकिन जो चीज़ इस वैक्सीन को कोविशील्ड से अलग करती है, वो ये कि इसमें दो खुराकों के लिए दो अलग-अलग एडिनोवायरसों का बतौर वैक्टर्स इस्तेमाल किया जाता है.

द बीएमजे पत्रिका में छपे एक लेख में नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी बांग्लादेश के फार्मास्यूटिकल साइंसेज़ विभाग के प्रोफेसर, हसन महमूद रज़ा ने समझाया कि भारत में कोविशील्ड के नाम से निर्मित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन और स्पूतनिक वी में क्या अंतर है.

प्रोफेसर रज़ा ने कहा, ‘स्पूतनिक वी के विकास में इस्तेमाल तकनीक बहुत हद तक वही है, जो ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कोविड-19 वेक्टर्ड वैक्सीन में होती है, सिवाय इसके कि स्पूतनिक वी को विकसित करने में दो इंसानी एडिनोवायरल वेक्टर्स इस्तेमाल किए गए जबकि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन विकसित करने में चिंपैंज़ी का एडिनोवायरल वेक्टर इस्तेमाल किया गया. एडिनोवायरस (एडी5) के पहले से संक्रमण या वेक्टर (5,6) के तौर पर एडी5 के पहले से इस्तेमाल के कारण पहले से मौजूद एडिनोवायरस एंटीबॉडी और टी हेल्पर सेल के रेस्पॉन्स के निष्प्रभावी असर से बचने के लिए दो इंसानी एडिनोवायरल वेक्टर्स (एडी5 और एडी26) के मुकाबले चिंपैंज़ी के एडिनोवायरल वेक्टर का इस्तेमाल ज़्यादा तर्कसंगत लगता है’.

लेकिन उन्होंने आगे कहा कि दो अलग-अलग वायरल वेक्टर्स के साथ वैक्सीन की दो खुराकों ने बेहतर इम्यूनिटी दिखाई है.

रज़ा ने कहा, ‘बहरहाल, दो अलग-अलग वायरल वेक्टर्स के साथ वैक्सीन की दो खुराकों ने बेहतर इम्यूनिटी दिखाई है, जो इस धारणा पर आधारित है कि टीके के पहले डोज़ से पैदा हुए एंटीबॉडी, दूसरे डोज़ में मौजूद उसी एडिनोवायरस वेक्टर के अपनी नियत गतिविधि को अंजाम देने से पहले ही उसे बेअसर कर सकते हैं’.


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वैक्सीन ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म 

महामारी की दूसरी लहर का हमला देशभर में कोविड-19 मामलों तथा मौतों की बाढ़ सी ले आया जिसकी वजह से टीकाकरण बेहद महत्वपूर्ण हो गया.

लेकिन पिछले कुछ दिनों में दिल्ली के अंदर कई मेडिकल प्रोफेशनल्स की मौतों ने जिनमें बहुत से पूरे टीके लगवा चुके थे, इस संभावना को जन्म दिया है कि वैक्सीन से बच निकलने वाला एक वेरिएंट, राजधानी में हो सकता है.

डॉ अरोड़ा ने भी इस संभावना से इनकार नहीं किया और कहा कि आईसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद), एक वैक्सीन ट्रैकिंग सिस्टम लॉन्च करने जा रही है, जो टीकाकरण से बचने के प्रभाव, ब्रेकथ्रू इनफेक्शंस और टीकाकरण के बाद की विपरीत घटनाओं (एईएफआई) पर नज़र रखेगा.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘वैक्सीन एसकेप एक संभावना है, जिसपर हम नज़र रख रहे हैं, सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे देश में. हमें इसे एक सामान्य मुद्दे की तरह देखना होगा. यही कारण है कि ये वैक्सीन ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म बहुत महत्वपूर्ण होने वाला है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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