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Saturday, 20 April, 2024
होमडिफेंसलद्दाख में भारत-चीन के बीच पहले बड़े संघर्ष के साल भर बाद भी तनाव बरकरार, ऐसे हुई थी इसकी शुरुआत

लद्दाख में भारत-चीन के बीच पहले बड़े संघर्ष के साल भर बाद भी तनाव बरकरार, ऐसे हुई थी इसकी शुरुआत

चीन-भारत के बीच पिछले साल अप्रैल के अंत में तनाव बढ़ना शुरू हुआ, जब चीनियों ने गलवान घाटी में भारत के फुटब्रिज बनाने पर ऐतराज़ जताया लेकिन पहला बड़ा संघर्ष 18 मई 2020 को हुआ.

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नई दिल्ली: ठीक एक साल हो चुका है जब पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो (झील) के फिंगर 4 पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच एक बड़ा टकराव हुआ था जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के बीच 1962 युद्ध के बाद सबसे ज़्यादा तनाव पैदा हो गया था.

भिड़ंत में दोनों ओर के काफी सैनिक घायल हुए थे. एक साल के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास एक अस्वाभाविक शांति पसरी है लेकिन दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी बढ़ती जा रही है.

हालांकि गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो के दक्षिणी और उत्तरी किनारों से दोनों पक्ष पीछे हट गए हैं लेकिन पूर्वी लद्दाख की कम से कम चार जगहों पर गतिरोध और तनाव बना हुआ है- ये हैं देपसांग के मैदान, हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेमचोक.

चीनियों ने पैंगोंग त्सो से अपने सैनिकों को पीछे बुला लिया है लेकिन उन्होंने अपने सैनिकों को एलएसी से 70 किलोमीटर दूर रुतोग में तैनात कर दिया है.

इसका मतलब ये है कि हालांकि आमने-सामने डटे सैनिकों को पीछे कर लिया गया है लेकिन तनाव में कमी नहीं आई है और चीनी अभी भी ठीक उन्हीं जगहों पर लौटने में सक्षम हैं, जो उन्होंने पैंगोंग त्सो और दूसरी जगह खाली की थीं.

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इसी तरह, भारत ने भी अपने सैनिकों को झील के दक्षिणी किनारे से पीछे बुला लिया है लेकिन अभी भी वो काफी संख्या में सैनिकों को इलाके में रखे हुए है और रिज़र्व बल अलग से है.

नई दिल्ली ने लद्दाख में गर्मियों के लिए भी एक रणनीति बनाई हुई है, जिसमें तैनाती के पैटर्न, उपकरण और समग्र रणनीति में काफी बदलाव किए गए हैं.


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कोई त्वरित समाधान नहीं

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि हालांकि पीछे हटने की प्रक्रिया को लेकर कुछ सकारात्मक प्रगति हुई है लेकिन आगे का रास्ता बहुत लंबा है.

पूरे गतिरोध के दौरान एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘आपसी विश्वास की बहुत कमी है. चीन ने यथास्थिति को बदलकर, एक नई एलएसी बनाने की कोशिश की थी’. उन्होंने आगे कहा, ‘बढ़ी हुई तैनाती जारी रहेगी. पीछे हटने की पूरी प्रक्रिया में समय लगेगा. इसका कोई त्वरित समाधान नहीं है’.

एक सूत्र ने कहा कि देपसांग के मैदान और डेमचोक, जहां का तनाव पिछले साल अप्रैल में शुरू हुई मौजूदा तकरार से पहले का है, वो बाधाएं हैं जिन्हें पार करने में समय लगेगा.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘इस इलाके में समय-समय पर, ज़्यादा सैनिकों का जमावड़ा देखा जाएगा. विचार ये है कि वहां पर्याप्त संख्या में सैनिक रखे जाएं, ताकि तनाव बढ़ने की सूरत में ज़रूरत पड़ने पर हमारे अंदर अपने ऑपरेशंस लॉन्च करने की क्षमता हो, जैसा कि हमने दक्षिणी किनारों पर किया था’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमने ऐसे क्षेत्रों का कई बार मूल्यांकन किया है, जहां वो चढ़ाई कर सकते हैं और उसी हिसाब से अपनी तैयारियां की हैं’.


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सबसे पहले अप्रैल में शुरू हुआ था गलवान घाटी में तनाव

सूत्रों ने बताया कि तनाव की शुरूआत सबसे पहले पिछले साल अप्रैल के आखिर में गलवान घाटी में हुई, जब चीनियों ने चार-पांच छोटे क्रासिंग्स पर ऐतराज़ किया, जो भारत वाई जंकशन के पास बना रहा था.

दिप्रिंट ने पिछले साल खबर दी थी कि हालांकि चीनी, श्योक नदी पर बनाए जा रहे 60 मीटर लंबे पुल पर ऐतराज़ करते रहे हैं, जिसे भारत ने गतिरोध के दौरान पूरा किया था लेकिन असल समस्या ये थी कि भारत कंफ्लुएंस प्वाइंट से आगे भी ‘कुछ निर्माण’ कर रहा था, ताकि उसके गश्ती सैनिकों को पानी में न उतरना पड़े.

सूत्रों ने समझाया कि चीनियों को 60 मीटर लंबे पुल पर बहुत ज़्यादा ऐतराज़ नहीं था लेकिन वो वाई जंक्शन के पास निर्माण के खिलाफ अड़े हुए थे, जो पेट्रोल प्वाइंट (पीपी) 14 से करीब 800-900 मीटर दूर है, जबकि पीपी 14 खुद एलएसी से सिर्फ 500 मीटर दूर है.

एक तीसरे सूत्र ने जो गतिरोध में शामिल थे, समझाया कि ‘हमने गश्ती टीमों के लिए 4-5 छोटे पुल बना लिए थे. इसका कारण ये था कि पीपी 14 तक पहुंचने के लिए पांच जगहों पर सैनिकों को पानी से गुज़रकर जाना पड़ता था. चीनियों ने इसे देखा तो स्थानीय स्तर पर हॉटलाइन के ज़रिए आपत्ति ज़ाहिर की’. उन्होंने आगे कहा, ‘निर्माण जारी रहा और हमने उनसे कहा कि ये हमारे इलाके के अंदर है और सिर्फ गश्त के लिए बनाए जा रहे हैं’.

सूत्र ने बताया कि चीन जून के शुरू तक भारत के क्षेत्र में दाखिल नहीं हुआ था, जिसके बाद उन्होंने अंदर आकर पीपी 14 के पास एक निगरानी चौकी बना ली.

इसके बाद वाई जंक्शन के पास एक और शिविर लग गया और अंत में 15 जून को संघर्ष हुआ जिसमें कई सैनिक हताहत हुए.

टकराव के बाद बड़ी संख्या में आकर चीनियों ने वाई जंक्शन एरिया में शिविर स्थापित कर लिए और भारतीयों ने भी अपनी सुविधाएं निर्मित कर लीं और दोनों पक्षों के बीच सिर्फ नदी का फासला रह गया.

वो जुलाई के शुरू में ही पीछे हटे, जब दोनों पक्ष पीछे हटने और एक तरह का बफर ज़ोन बनाने पर सहमत हो गए.


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लद्दाख संघर्ष

पिछले साल 10 मई को भारत और चीन के बीच सीमा पर फिर तनाव भड़क गया, जब एक सप्ताह के अंदर लद्दाख और उत्तरी सिक्किम क्षेत्रों में दोनों ओर के सैनिकों के बीच हाथा-पाई और पथराव में कई सैनिक घायल हो गए.

लद्दाख में ये झड़प 5 मई की शाम को हुई थी.

एक चौथे सूत्र ने बताया, ‘5 मई की झड़प, कुछ सीमित संख्या में सैनिकों के बीच एक झगड़ा मात्र थी. पीएलए ने भारतीय सैनिकों की गश्त पर आपत्ति जताई थी’. सूत्र ने आगे कहा, ‘तनाव कम करने के लिए निर्धारित प्रोटोकॉल्स का पालन किया गया. लेकिन जब चीनी भारतीय गश्त को लगातार रोकते रहे, तो कुछ अतिरिक्त सैनिकों को वहां लाया गया’.

सूत्रों ने कहा कि 5 मई को चीनी सैनिकों की संख्या भारतीय सैनिकों से ज़्यादा हो गई.

सूत्र ने आगे कहा, ‘पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पहला बड़ा संघर्ष 18 मई 2020 की दोपहर में हुआ. इस बार काफी पथराव हुआ और लाठियों व डंडों का इस्तेमाल किया गया’. शुरू में भारतीय सैनिकों की संख्या पर्याप्त थी और उन्होंने मज़बूती से विरोध किया. जल्द ही वहां छह चीनी वाहन आए जिन्होंने और सैनिकों को वहां उतार दिया. ये वाहन चक्कर लगाकर और अधिक सैनिकों को लाते रहे. 18 मई की शाम तक चीनियों ने फिंगर 4 क्षेत्र में करीब 700-800 सैनिकों को तैनात कर दिया था’.

सूत्र ने बताया कि भारत की अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती, वहां पर चीनियों की रफ्तार की बराबरी नहीं कर सकी क्योंकि फिंगर 4 तक पहुंचने के लिए भारतीय सैनिकों को फिंगर 3 से एक तंग रास्ते से चलकर जाना पड़ा था.

चीनी अपने साथ अर्थ मूवर्स लेकर आए थे और उन्होंने कई चौकियां कायम कर दीं. अगले कुछ दिनों में चीनियों ने फिंगर 4 की ऊंचाइयों पर कई शिविर और चौकियां भी स्थापित कर लीं, जैसा कि उस समय सेटेलाइट तस्वीरों से पता चला था.


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18 मई के बाद चीनियों ने घुसकर निर्माण कर लिए

सूत्रों ने कहा कि पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर कदम उठाने के बाद चीनियों ने कुछ दूसरे क्षेत्रों में भी निर्माण कर लिए जिनमें हॉट स्प्रिंग्स एरिया और गोगरा शामिल थे.

सूत्रों ने स्वीकार किया कि चीनियों ने जिस पैमाने पर हरकत की, उससे लगता था कि उसके लिए पूरी तैयारी की गई थी और उसे पैंगोंग त्सो में हुई घटना की प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता.

ज़मीनी स्तर पर विवाद कैसे बढ़ा, ये समझाते हुए एक पांचवें सूत्र ने कहा, ‘हमने भी मिरर डिप्‍लॉयमेंट करना शुरू कर दिया. एक-एक करके चीज़ें बढ़ती गईं और अंत में कई जगहों पर वास्तविक गतिरोध पैदा हो गया’.

दिप्रिंट ने पिछले साल 25 मई को खबर दी थी कि भारत पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास कई जगहों पर ‘सक्रिय रूप से स्थानीयकृत निवारक तैनाती’ कर रहा था और साथ ही उन क्षेत्रों में ‘मिरर डिप्‍लॉयमेंट’ भी कर रहा था, जहां उसे चीनी सैनिकों से चुनौती मिल रही थी.


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गलवान और दक्षिणी किनारे थे निर्णायक मोड़

सूत्रों ने कहा कि जहां चीनी आक्रामकता ने शुरू में भारतीयों को अचंभित किया था, वहीं भारतीय सैनिकों ने भी दक्षिणी और उत्तरी किनारों पर जवाबी हमला करके पीएलए को हैरत में डाल दिया था.

पांचवें सूत्र ने कहा, ‘पीछे मुड़कर देखें तो समझ में आता है कि गलवान संघर्ष तथा भारत का दक्षिणी किनारे की ऊंचाइयों पर कब्ज़ा करना और चीनियों के खिलाफ उत्तरी किनारों पर एक टीम को भेजना निर्णायक मोड़ साबित हुए’.

इसका मतलब पूछे जाने पर सूत्र ने कहा, ‘गलवान ने चीनियों को दिखा दिया कि अगर उन्होंने अपनी आक्रामकता जारी रखी, तो उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. हां, 20 भारतीयों की जान गई, जिनमें ज़्यादातर हाइपोथर्मिया से थीं लेकिन चीनियों को भी घातक हताहतों को झेलना पड़ा’.

दक्षिणी किनारों की बात करते हुए सूत्र ने कहा, ‘29 अगस्त की रात, दक्षिणी और उत्तरी किनारों पर की गई कार्रवाई ने साबित कर दिया कि भारतीय भी चीनियों को अचंभित कर सकते थे और वो काम अंजाम दे सकते हैं जिसे हम क्विड प्रो क्यो (QPQ) कहते हैं’.

‘हमारे इस कदम से चीनी असहज हो गए और मजबूरन उन्हें कठोर सर्दियां, खुले में गुज़ारनी पड़ीं. सिर्फ इसी कारण वो उत्तरी किनारों से पीछे हटने को सहमत हुए. वरना तो वो वहीं डटे रहकर एक नई फिज़िकल एलएसी चिन्हित करने के लिए तैयार थे’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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