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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थसर्जन, गाइनकॉलजिस्ट, बाल रोग विशेषज्ञ—ग्रामीण स्वास्थ्य रिपोर्ट ने बताया विशेषज्ञों की भारी कमी है

सर्जन, गाइनकॉलजिस्ट, बाल रोग विशेषज्ञ—ग्रामीण स्वास्थ्य रिपोर्ट ने बताया विशेषज्ञों की भारी कमी है

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सांख्यिकी संबंधी नवीनतम रिपोर्ट में सर्जन की 78.9%, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों की 69.7%, फिजीशियन की 78.2% और बाल रोग विशेषज्ञों की भी 78.2% कमी होने की बात सामने आई है.

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नई दिल्ली: विभिन्न सरकारों की तरफ से स्थिति में सुधार की लगातार बातें किए जाने के बावजूद ग्रामीण भारत को विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. यह बात बुधवार को ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी (आरएचएस) रिपोर्ट 2019-20 से सामने आई है.

देश में ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे और कार्यबल की स्थिति का जायजा लेने के हर साल की जाने वाली कवायद यानी आरएचएस के मुताबिक, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) शुरू होने के पंद्रह साल बाद भी देशभर के गांवों में विशेषज्ञों की संख्या लक्षित आवश्यकता से करीब 6,000 पीछे है.

आरएचएस बताती है, ‘इसके अलावा, अगर मौजूदा बुनियादी ढांचे की जरूरत के हिसाब से तुलना की जाए तो 78.9 प्रतिशत सर्जन, 69.7 प्रतिशत प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों, 78.2 प्रतिशत फिजीशियन और 78.2 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञों की कमी है.’

‘कुल मिलाकर, मौजूदा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) की जरूरतों की तुलना में सीएचसी में 76.1 प्रतिशत विशेषज्ञों की कमी है.’

कुछ राज्यों का डाटा तो यह दर्शाता है कि स्थिति वास्तव में गंभीर है.

उदाहरण के तौर पर गुजरात में 1,088 विशेषज्ञों की कुल आवश्यकता के मुकाबले 996 विशेषज्ञों की कमी है. मध्य प्रदेश में कुल जरूरत 916 विशेषज्ञों की है जिसमें 867 की कमी है. पश्चिम बंगाल में 380 विशेषज्ञों की आवश्यकता के मुकाबले 247 की कमी है. राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों की कुल आवश्यकता 13,384 है, जिसमें 6,110 की कमी है.

इसके बीच, आयुष विशेषज्ञों की स्थिति कुछ बेहतर है—5,183 की कुल आवश्यकता के मुकाबले 701 की ही कमी है. शायद यही वजह है कि कोविड-19 महामारी से देशभर में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा चरमरा जाने के बीच सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने हल्के लक्षणों वाले लोगों को आयुष चिकित्सकों के पास जाने की सलाह दी है.


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हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर

31 मार्च 2020 तक ग्रामीण भारत में 38,595 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर काम कर रहे थे.

मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत के तहत 2022 तक 1,53,000 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर खोलने का लक्ष्य रखा गया है.

डाटा बताता है कि सब-डिवीजनल और जिला अस्पतालों के स्तर पर क्रमश: 1,43,538 और 2,87,025 बेड उपलब्ध हैं.

आरएचएस में आगे बताया गया है कि अभी देश में एक स्वास्थ्य उप केंद्र औसतन 57,291 आबादी की जरूरतों को पूरा करता है, जबकि 30,35,730 की औसत आबादी पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 1,71,779 लोगों के औसत पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है

निर्धारित मानदंडों के मुताबिक अधिकतम 5,000 लोगों की आबादी पर एक स्वास्थ्य उपकेंद्र, 30,000 लोगों पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और अधिकतम 1,20,000 लोगों पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए. इससे पता चलता है कि एनआरएचएम शुरू होने के 15 साल बाद भी तीसरे स्तर के स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचे की स्थिति गंभीर बनी हुई है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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