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Saturday, 2 November, 2024
होमहेल्थकेरल में Covid उछाल ‘गलतियों’ से नहीं आया, फैलाव नहीं रोक सकते- ‘रॉकस्टार’ मंत्री शैलजा

केरल में Covid उछाल ‘गलतियों’ से नहीं आया, फैलाव नहीं रोक सकते- ‘रॉकस्टार’ मंत्री शैलजा

दिप्रिंट को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा, कि जनसंख्या और महामारी विज्ञान से जुड़े कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से केरल कोविड की चपेट में आ जाता है.

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तिरुवनंतपुरम: कुछ ज़्यादा समय नहीं हुआ जब केके शैलजा को ‘केरल की रॉकस्टार स्वास्थ्य मंत्री’ कहकर बुलाया जा रहा था, चूंकि ऐसा लग रहा था कि उनका राज्य, कोविड-19 महामारी पर क़ाबू पाने में कामयाब हो रहा था. कुछ ही महीनों के बाद, शैलजा के सामने केरल में कोविड फिर से उभर रहा है. उन्होंने अभी अभी राजधानी तिरुवनंतपुरम में, डॉक्टरों की हड़ताल को शांत किया है, और अब उनके ऊपर एक्सपर्ट्स की बात न सुनने के आरोप लग रहे हैं.

लेकिन, दिप्रिंट को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, शैलजा ने कहा कि जनसंख्या और महामारी विज्ञान से जुड़े कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से केरल कोविड की चपेट में आया, और उन्होंने शुरू में एक्सपर्ट्स की बात सुनी- और सबसे ख़राब स्थिति के लिए तैयारी की- जिसके नतीजे में राज्य अपने यहां मौतों की संख्या कम रख पाया. उन्होंने कहा कि इस समय मुख्य लक्ष्य यही है.

उन्होंने आगे कहा, ‘केरल के सामने कुछ अनोखी चुनौतियां हैं, जिनका संबंध जनसंख्या के स्वरूप, महामारी विज्ञान और सामाजिक आर्थिक स्थिति से है. सामाजिक-आर्थिक स्थिति तो दरअसल केरल के पक्ष में है, चूंकि हमारा मानव विकास सूचकांक ऊंचा है, हमारा ग़रीबी उन्मूलन ऊंचा है, साक्षरता दर ऊंची है, और हम जागरूकता फैला सकते हैं’.

उन्होंने कहा, ‘बाक़ी दो हमारी कमज़ोरियां हैं. केरल में जनसंख्या घनत्व 856 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है. पूरे भारत में ये औसत 500 से कम है. वायरस के फैलने में ये बात सबसे महत्वपूर्ण है. हमारे यहां महामारी विज्ञान से जुड़ी कमज़ोरियां हैं, चूंकि लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां अधिक हैं’.

केरल की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी किस तरह एक चुनौती थी, ये समझाते हुए उन्होंने लोगों की अस्वस्थ जीवन शैली को भी ज़िम्मेदार ठहराया. 2015-16 के लिए किए गए आख़िरी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, गैर-संचारी रोग के मामले में, केरल भारत की राजधानी है.

शैलजा ने कहा, ‘सामाजिक-आर्थिक फैक्टर्स की वजह से जीवन शैली बदली और विकास के साथ व्यायाम कम होता है, जंक फूड की आदतें बढ़ गईं हैं. केरल जीवन शैली वाले रोगों का सबसे ज़्यादा शिकार होता है… एक्सपर्ट्स की भविष्यवाणी थी कि अगर कोविड-19 देश के सभी राज्यों में फैला, तो इसकी वजह से सबसे ज़्यादा मौतें केरल में होंगी. हम ये जानते थे, इसलिए हमने मेहनत की. दूसरे चरण में भी हमने अच्छे नतीजे दिए’.

केरल में कोविड के बढ़ने की रफ्तार, इस समय देश में सबसे अधिक है. पिछले दो दिनों में केरल में, 10,606 और 5,445 कोविड मामले दर्ज किए गए.

लेकिन, इसकी मृत्यु दर देश में सबसे कम है- 0.36 प्रतिशत, जबकि इसके मुक़ाबले राष्ट्रीय औसत 1.54 प्रतिशत है.

शैलजा ने कहा कि कोविड-19 के ख़िलाफ लड़ाई में, ‘सबसे बड़ा सवाल’ ये है, कि ‘इस निर्दयी बीमारी से आपने कितने जीवन बचाए?’

उन्होंने कहा, ‘हम मृत्यु दर घटाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. फैलाव को हम नहीं रोक सकते…हम ‘ब्रेक द चेन’ (राज्य सरकार का कोविड जागरूकता कार्यक्रम) वग़ैरह के ज़रिए कोशिश कर सकते हैं, लेकिन आप इसे पूरी तरह रोक नहीं सकते. (हम) ज़िंदगियां बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. ये कोई आसान काम नहीं है’.


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क्या केरल कोविड-19 के शिखर पर है?

महामारी के पहले दौर में- जनवरी से जब केरल में कोविड का पहला केस दर्ज हुआ, मई तक- केरल में 500 से कम केस थे और सिर्फ दो मौतें थीं. 9 अक्तूबर तक यहां 2,58,850 दर्ज हो चुके हैं, जिनमें से 90,630 एक्टिव मामले हैं. राज्य में कोविड-19 से मौतों की संख्या 978 है.

ये पूछे जाने पर कि क्या ये केरल में कोविड का यह टॉप स्थिति है, शैलजा ने कहा: ‘हम उसका अनुमान नहीं लगा सकते. (लेकिन) पहले जिस शिखर की भविष्यवाणी की गई थी, तो लगभग ऐसा ही था. लॉकडाउन हटाए जाने के बाद, आईआईटी को लोगों और दूसरे एक्सपर्ट्स ने, सितंबर-अक्तूबर में हर रोज़ 10,000 से अधिक मामलों की भविष्यवाणी की थी. हुआ भी यही. मैंने भी पहले ये चेतावनी दी थी कि एक्सपर्ट्स की चेतावनी है कि रोज़ के मामले 5000 से 10,000 के बीच होंगे.

वो स्पष्ट हैं कि महामारी से किसी तत्कालिक राहत की अपेक्षा नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि अगर ये कुछ समय के लिए चली भी गई, तो ‘वापस आ जाएगी’. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यही वजह है कि केरल की प्राथमिकता ज़िंदगियां बचाना है’.

शैलजा ने कहा, ‘वैज्ञानिक कह रहे हैं कि ये अगले साल भी रहेगी, क्योंकि उनका कहना है कि हमें 2021 तक ही वैक्सीन मिल पाएगी. जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, हम नहीं कह सकते कि ये कितना लंबा चलेगी’.

उन्होंने ग्रेट ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां एक लाख मौतें हुईं और फिर ‘ग्राफ सपाट होता हुआ’ दिखा, लेकिन मामलों में ताज़ा उछाल को देखते हुए, अब वो लॉकडाउन की तैयारी कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘ये वायरस नहीं रुकेगा. जब ग्राफ सपाट होगा, तो हमें लगेगा कि ये ख़त्म हो गया लेकिन ये कहीं भी, कभी भी ज़ाहिर हो जाएगा, चूंकि ये समाज में मौजूद है. जब लोग कहीं जाएंगे तो ये भी सफर करेगा’.

उन्होंने ये भी कहा कि असली चुनौती बिना लक्षण वाला प्रसार है, जो कोविड को नीपा से अलग करता है, जिसके प्रकोप पर 2018 की गर्मियों में, केरल ने क़ाबू पा लिया था.

उन्होंने कहा, ‘नीपा में आप मरीज़ों की तकलीफ देख सकते हैं- खांसी, एंसिफिलाइटिस आदि और उसके बाद ही ये फैलता है. यहां पर, बिना लक्षण वाले लोग भी इसे दूसरों को लगा देते हैं. यही कारण है कि इसे दबाना या ठीक से रोकना आसान नहीं है’.

क्या केरल ने जल्दी ही जीत घोषित कर दी?

शैलजा ऐसे किसी भी सुझाव को ख़ारिज करती हैं कि राज्य ने कुछ ग़लतियां की होंगी, जिनसे ये हालिया प्रकोप हुआ है. ये पूछने पर कि क्या सूबे ने कुछ जल्दी ही अपनी जीत घोषित कर दी, उन्होंने कहा कि सूबे की मौजूदा केस मृत्यु दर (केएफआर)- कोविड मरीज़ों में मौतों का हिस्सा- पहले फेज़ की अपेक्षा कम है.

उन्होंने कहा, ‘हमारी रणनीति है ट्रैस करना, क्वारेंटाइन करना, टेस्ट करना, अलग करना और इलाज करना. वैज्ञानिक तरीक़ा यही है. हम लोगों को ट्रैस कर रहे हैं, लक्षण वाले लोगों को क्वारेंटाइन कर रहे हैं, उन्हें अलग कर रहे हैं, ठीक से टेस्टिंग कर रहे हैं और इलाज भी कर रहे हैं. पहले चरण में बहुत अच्छे नतीजे आए थे, ट्रांसमिशन दर 33 प्रतिशत थी, और सीएफआर 0.5 प्रतिशत थी…हम वापस नहीं जा रहे हैं’.

‘अनलॉकिंग चल रही है और हमें कारोबार को भी खुलने देना है. हमें लोगों का जीवन बचाना है, उनकी जीविका बचानी है…इस बार सीएफआर 0.3 प्रतिशत है, इसलिए आप ये कैसे कह सकते हैं कि हमने जल्दी ही जश्न मना लिया?’

शैलजा के अनुसार, राज्य के ‘ब्रेक द चेन अभियान’ ने, जिसमें लोगों से मास्क और सैनिटाइज़र इस्तेमाल करने का आग्रह किया गया, काम तो किया लेकिन केवल लगभग 80 प्रतिशत लोगों ने ही दिशा-निर्देशों का पालन किया’.

उन्होंने आगे कहा कि पड़ोसी कर्नाटक और तमिलनाडु से लोगों की आवाजाही और सीमाओं के आर-पार जाने की आज़ादी ने भी समस्याएं बढ़ाई हैं. उन्होंने ये भी कहा, ‘आपको याद रखना चाहिए कि ये एक ख़ास तरह का वायरस है, एक नई चीज़ है. इसे कम समय या कम जगह में रोका नहीं जा सकता. ये फैल रहा है, ख़ूब फैल रहा है और लोगों की गतिशीलता की वजह से फैल रहा है’.

उन्होंने कहा, ‘केरल कोई चमत्कार नहीं कर सकता लेकिन हम मेहनत कर रहे हैं और इसीलिए सीएफआर नीची है. दूसरे राज्यों में, 10,000 से अधिक लोग मर चुके हैं. यहां, ये अभी भी 1,000 से नीचे है’.

‘सूबे ने बहुत ख़र्च किया है’

अधिकांश सरकारों के लिए कोविड-19 एक दोहरा झटका रहा है, जिसमें राजस्व के नुक़सान और अतिरिक्त ख़र्चों ने, उसे एक नाज़ुक स्थिति में ला दिया है.

मसलन, आरटी-पीसीआर टेस्ट को कोविड जांच का गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है, लेकिन 10,000 टेस्टों के लिए सिर्फ रीजेंट्स की लागत एक करोड़ रुपए से अधिक हो सकती है. केरल में केवल 15 प्रतिशत टेस्ट आरटी-पीसीआर होते हैं, लेकिन उसके सामने दूसरी वित्तीय चुनौतियां हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमने काफी ख़र्च किया है…मैंने हिसाब नहीं लगाया है लेकिन लॉजिस्टिक्स, कलेक्शन्स, दवाइयां, परिवहन…5,000-6,000 करोड़ से अधिक, या 8,000 करोड़ या उससे भी अधिक हो सकता है. हम पीपीई किट्स ख़रीद रहे हैं, आईसीयू बना रहे हैं, वेंटिलेटर्स ख़रीद रहे हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘भारत सरकार ने एनएचएम (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) के तहत हमें 350 करोड़ रुपए दिए थे, जो एक वरदान था. लेकिन हमें और चाहिए. 1,000 करोड़ रुपए मिल जाएं, तो बहुत अच्छा रहेगा’.

महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट से दो-चार ग्राहकों की सहायता के लिए क्या क़दम उठाए जा रहे हैं, इस बारे में पूछने पर शैलजा ने कहा कि राज्य पहले ही 20,000 करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान कर चुका है, भोजन के पैकेट्स बांटने का काम जारी रखा जा रहा है.

‘मौतें कम हुई हैं’

पूरे देश में, कोविड-19 पर फोकस किए जाने के परिणामस्वरूप, असावधानी वश टीबी जैसी दूसरी बीमारियों की अनदेखी हुई है. शैलजा ने कहा कि केरल में गैर-संचारी बीमारियों का प्रबंध करना एक चुनौती है. लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि एक सरकारी ऑडिट से पता चला है कि ‘अतिरिक्त मौतों’ की संख्या– वो अतिरिक्त मौतें जो पिछले सालों के औसत से ऊपर होती हैं- जनवरी से जुलाई के बीच कम हुई हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने जनवरी से जुलाई के बीच अतिरिक्त मौतों की गिनती की. हमने देखा कि मौतें कम हो गईं थीं. वो एक बहुत अनुकूल चीज़ थी, जिसे हम उत्सुकता से देख रहे थे. एनसीडीज़ (गैर-संचारी बीमारियों) वग़ैरह के लिए, हमने आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) वर्कर्स, जूनियर सार्वजनिक स्वास्थ्य नर्सों, और स्वास्थ्य निरीक्षकों की सहायता से, ज़मीनी स्तर पर अलग अलग कमेटियां बनाईं हैं’.

उन्होंने कहा, ‘वो घर-घर जाकर स्वास्थ्य की स्थिति की जांच कर रहे हैं, और घर पर ही दवाएं दे रहे हैं’. उन्होंने ये भी कहा, ‘यही वजह है कि दूसरी मौतें नहीं बढ़ रही हैं…डेंगू और एच1एन1 जैसी संक्रामक बीमारियां भी कम हैं. ये एक अच्छी बात है, जो एहतियात और तैयारी से हुई है’.

लेकिन उन्होंने इस बात को माना कि गैर-संचारी बीमारियों की अनदेखी हुई है, चूंकि राज्य के अधिकांश स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 को समर्पित हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘वो संतुलन बनाना बहुत आसान नहीं है. पिछले आठ-नौ महीनों से हमारा स्वास्थ्य स्टाफ बहुत मेहनत कर रहा है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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