नई दिल्ली: हालांकि, कोविड वैक्सीन की एहतियाती ख़ुराकें कम मात्रा में ली जा रही है, और तीसरी ख़ुराक को केवल निजी क्षेत्र में उपलब्ध कराने के लिए केंद्र की आलोचना हो रही है, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सरकारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के सामान्य कामकाज पर लौटने के लिए ये शिफ्ट ज़रूरी था.
लेकिन, उन्होंने इस संभावना से इनकार नहीं किया कि अगर ज़रूरत पड़ती है तो सरकारी क्षेत्र को फिर इसमें लाया जा सकता है.
एहतियाती ख़ुराकें हेल्थकेयर, फ्रंटलाइन वर्कर्स और वरिष्ठ नागरिकों के लिए जनवरी में और अन्य वयस्कों के लिए 10 अप्रैल को खोली गईं थीं. सरकार ने शुक्रवार को ऐलान किया कि वैक्सीन की पहली दो ख़ुराकों के विपरीत – जो सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों में उपलब्ध थीं- एहतियाती ख़ुराकें केवल निजी अस्पतालों में 386 रुपए (कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों के लिए 225 रुपए तथा सेवा शुल्क) के भुगतान पर उपलब्ध होंगी.
विपक्षी कांग्रेस ने इस क़दम की भारी आलोचना की. 9 अप्रैल को दि हिंदू में छपी एक ख़बर के अनुसार, पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ‘बूस्टर टीके के निजीकरण का फैसला बहुत कड़वा है. ये एक क्रूर फैसला है, एक बर्बरतापूर्ण फैसला है, और दुर्भाग्यवश इस नई नीति की मुख्य विशेषता यही है, कि ये भेदभाव की भावना से डिज़ाइन की गई है. तक़रीबन हर देश, जिनमें हमारे पड़ोसी बांग्लादेश और पाकिस्तान शामिल हैं, मुफ्त बूस्टर डोज़ दे रहे हैं लेकिन भारत एक दुर्लभ अपवाद दिख रहा है’.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अभी तक कुल 2.49 करोड़ एहतियाती ख़ुराकें दी जा चुकी हैं.
एहतियाती ख़ुराकें दिए जाने की गाइडलाइन्स में कहा गया है, कि तीसरे डोज़ का पात्र होने के लिए, किसी भी व्यक्ति को दूसरे डोज़ के बाद कम से कम नौ महीने पूरे करने होंगे. 14 जुलाई 2021 तक (14 अप्रैल 2022 से नौ महीने पहले) वैक्सीन की दूसरी ख़ुराक ले चुके कुल भारतीयों की संख्या क़रीब 7.63 करोड़ थी.
दिप्रिंट ने ईमेल भेजकर स्वास्थ्य मंत्रालय से, एहतियाती ख़ुराकों के केवल निजी क्षेत्र में उपलब्ध कराए जाने का औचित्य पूछा है. उसकी ओर से जवाब प्राप्त होने पर इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.
लेकिन, मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर समझाया, कि एहतियाती ख़ुराकों का ज़िम्मा निजी क्षेत्र को सौंपने की ज़रूरत इसलिए महसूस की गई, क्योंकि स्वास्थय प्रणाली को वापस अपना सामान्य कामकाज पर लाने की आवश्यकता थी.
एक अधिकारी ने समझाया, ‘दुनिया भर में देखिए, कुछ देश तो आगे बढ़कर वैक्सीन के चौथे डोज़ पर पहुंच गए हैं. अगर हम यही करते रहे तो सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली हमेशा कोविड के चक्र में ही फंसी रहेगी. बहुत सी दूसरी चीज़ें हैं जिन्हें स्वास्थ्य प्रणाली को करने की ज़रूरत है, और हमें उन चीज़ों पर लौटना है. जीवन को वापस सामान्य होना है’. उन्होंने आगे कहा कि महामारी के दौरान बहुत सी स्वास्थ्य सेवाएं, जिनमें ट्यूबरकुलोसिस नियंत्रण, नियमित टीकाकरण, और दूरी बीमारियों की देखभाल शामिल हैं, प्रभावित हुईं थीं.
ये पूछने पर कि क्या एहतियाती ख़ुराकें कम लिए जाने के पीछे एक कारण इसकी क़ीमत हो सकती है, क्योंकि पहली दो ख़ुराकें सरकारी अस्पतालों में मुफ्त थीं, अधिकारी ने कहा: आपको इस बात को समझना होगा, कि हमने क़ीमतों को घटाकर 225 रुपए प्रति ख़ुराक कर दिया है. बहुत से लोग हैं जो अभी इसके पात्र भी नहीं हैं.
लेकिन, मंत्रालय के एक और अधिकारी ने कहा, कि अगर ज़रूरत महसूस हुई तो बाद में किसी भी समय, एहतियाती ख़ुराक नीति पर ‘पुनर्विचार’ की गुंजाइश हमेशा रहेगी.
बृहस्पतिवार को भारत में 1,007 नए कोविड मामले , और कोविड से जुड़ीं कम से कम 26 मौतें दर्ज की गईं. दिल्ली और मुम्बई में भी पिछले कुछ दिनों मामलों में उछाल देखा गया है.
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बूस्टर की ज़रूरत पर विशेषज्ञों में मतभेद
कुछ विशेषज्ञों ने एहतियाती ख़ुराकों के दामों पर सवाल खड़े किए हैं, और परोक्ष रूप से ये संभावना भी जताई है कि हो सकता है सरकार को लगे कि सभी लोगों को अपनी एहतियाती ख़ुराक तुरंत लेने की ज़रूरत नहीं है.
नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए एक प्रसिद्ध जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा: ‘ऐसा लगता है कि सरकार मान रही है, कि वर्तमान स्थिति में जब महामारी का ज़ोर हल्का है, और सरकार ने बुज़ुर्गों समेत उन लोगों का टीकाकरण सुनिश्चित किया है, जो जोखिम वाली श्रेणी में हैं, तो एहतियाती ख़ुराक वैकल्पिक हो जाती है. निजी क्षेत्र इनके कम उपयोग की शिकायत करता रहा है, इसलिए जो लोग पैसा ख़र्च करने को तैयार हैं, वो टीका लगवा सकते हैं’.
दूसरों ने सवाल उठाए हैं कि बूस्टर डोज़ की ज़रूरत असल में है भी या नहीं, क्योंकि टीकाकरण और संक्रमण भारत की अधिकतर आबादी को पहले ही हाईब्रिड इम्यूनिटी दे चुके हैं.
8 अप्रैल को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख में, जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ और पब्लिक हेल्थ फाउण्डेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, डॉ केएस रेड्डी ने सरकार के इस तर्क को स्वीकार किया कि उसकी ज़िम्मेदारी गंभीर बीमारियों और मौतों को रोकना है, जो संवेदनशील वर्ग के टीकाकरण से पूरी हो जाती है. लेकिन उन्होंने ये भी पूछा कि 60 वर्ष से कम आयु के उन ग़रीब लोगों का क्या होगा, जिनकी इम्यूनिटी कम हो रही है- क्या राज्य सरकारें उनके टीकाकरण का ख़र्च उठाने के लिए आगे आएंगी?
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