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Friday, 3 May, 2024
होमहेल्थमृत मरीज की याचिका पर, HC ने केंद्र से किफायती स्तन कैंसर की दवाएं उपलब्ध कराने के लिए 'बेहतर विकल्प' मांगा

मृत मरीज की याचिका पर, HC ने केंद्र से किफायती स्तन कैंसर की दवाएं उपलब्ध कराने के लिए ‘बेहतर विकल्प’ मांगा

यह निर्देश 2022 में एक मरीज द्वारा दायर याचिका पर आया है जिसमें केरल उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग करते हुए सरकार से कैंसर की एक गंभीर दवा की कीमत कम करने में मदद करने का आग्रह किया गया है. मामले के दौरान उसकी मौत हो गई.

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नई दिल्ली: केरल उच्च न्यायालय ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को 22 नवंबर से पहले भारत में जीवन-रक्षक दवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे रोगियों को सस्ती स्तन कैंसर की दवा उपलब्ध कराने का “सर्वोत्तम विकल्प” प्रस्तुत करने का आदेश दिया है.

यह निर्देश अब मृत हो चुके स्तन कैंसर के रोगी द्वारा दायर की गई अपनी तरह की पहली याचिका के मामले में आया है, जिसने सरकार से राइबोसाइक्लिब – जो कि एक महत्वपूर्ण कैंसर-रोधी दवा है – की कीमत कम करने में मदद करने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की थी. इस निर्देश को दिप्रिंट ने देखा है.

याचिकाकर्ता, जो कि एक सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी थीं, को जुलाई 2021 में एचईआर2-नेगेटिव या ल्यूमिनल ए स्तन कैंसर का पता चला था. उन्होंने 2022 में अदालत का रुख किया.

उन्होंने स्विस-अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी नोवार्टिस फार्मास्यूटिकल्स द्वारा विकसित और मार्केटिंग की जाने वाली दवा राइबोसाइक्लिब के लिए अनिवार्य लाइसेंस जारी करने के लिए सरकारी कार्रवाई की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

अनिवार्य लाइसेंस भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 के तहत एक प्राधिकरण है जो जेनेरिक दवा निर्माताओं को दवा का उत्पादन करने, प्रतिस्पर्धा शुरू करने और लागत कम करने की अनुमति देता है.

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केस के दौरान याचिकाकर्ता की मृत्यु हो गई लेकिन मामला जारी रहा.

राइबोसाइक्लिब की मार्केटिंग भारत में क्रिक्साना ब्रांड नाम से किया जाता है और इसकी कीमत लगभग 70,000 रुपये प्रति माह है. यह दवा अंतिम चरण के ल्यूमिनल ए स्तन कैंसर के लिए निर्धारित तीन दवाओं में से एक है.

अमेरिकी फार्मास्युटिकल प्रमुख एली लिली एंड कंपनी द्वारा इस स्थिति के लिए विकसित की गई एक अन्य दवा, अबेमासाइक्लिब भी पेटेंट की प्रक्रिया में है और इसकी कीमत लगभग 95,000 रुपये प्रति माह है.

इस बीमारी के इलाज के लिए तीसरी दवा, फाइज़र की पाल्बोसाइक्लिब, इस साल की शुरुआत में भारत में पेटेंट से हट गई और इसका जेनेरिक वर्ज़न अब लगभग 4,000 रुपये प्रति माह की कीमत पर उपलब्ध है.

अदालत ने 2 नवंबर को जारी अपने निर्देश में कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है, एक आदर्श दुनिया में, ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि हर रोगी की पहुंच दवाओं तक हो, भले ही उसके पास कितने ही कम संसाधन क्यों न हों, लेकिन दुर्भाग्य से, वास्तविक दुनिया में ऐसा नहीं है.”

आगे इस निर्देश में कहा गया है, “हमारे देश में मरीजों की दवाओं को खरीदने की क्षमता में असमानता इतनी ज़्यादा है कि उनमें से कई सरकार या ऐसी अन्य एजेंसियों के पर्याप्त समर्थन के बिना संभवतः इसे खरीद ही नहीं पाएंगे.”

अदालत ने कहा कि इस स्तर पर, वह केंद्र सरकार को निर्दिष्ट दवाओं के लिए अनिवार्य लाइसेंस जारी करने का निर्देश नहीं दे रही है क्योंकि “यह सबको पता है कि सरकार आमतौर पर केवल कुछ निर्दिष्ट परिस्थितियों और मेडिकल इमरजेंसी की आपात स्थितियों में ही सामने आती है.”

दिप्रिंट के एक सवाल के जवाब में, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुधांश पंत ने कहा कि मंत्रालय निर्देशानुसार अदालत में अपना जवाब दाखिल करेगा.


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स्तन कैंसर का बढ़ता बोझ

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा संचालित राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 2 लाख स्तन कैंसर के मामले सामने आते हैं, और जबकि हर 22 महिलाओं में से एक को यह बीमारी होती है, जिनमें से आधे की मौत हो जाती है. कैंसर का डेटा आईसीएमआर द्वारा दिप्रिंट के साथ शेयर किया गया था.

स्तन कैंसर, जो अब भारत में महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण है, को तीन उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि ट्यूमर एस्ट्रोजेन रिसेप्टर (ईआर+), एचईआर2 निगेटिव रिसेप्टर या इन दोनों में से किसी से भी नहींं (ट्रिपल नकारात्मक) संचालित होता है. एचईआर2 निगेटिव या ल्यूमिनल ए प्रकार के स्तन कैंसर विशेष रूप से आक्रामक माने जाते हैं.

बेंगलुरु के मनीपाल हॉस्पिटल में मेडिकल और हेमेटो ऑन्कॉलजी विभाग के प्रमुख और सलाहकार डॉ. अमित रौथान ने बताया कि भारत में स्तन कैंसर की घटनाएं बढ़ रही हैं, पिछले कुछ सालों में इससे प्रभावित लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

जीवनरक्षक कैंसर दवाओं तक पहुंच बड़ी चुनौती

कैंसर के उपचार को अक्सर भारत में विनाशकारी हेल्थकेयर खर्चे के रूप में माना जाता है, न केवल बेहद महंगी पेटेंट वाली दवाएं बल्कि सस्ती जेनेरिक दवाएं भी अधिकांश कैंसर रोगियों की पहुंच से बाहर हैं.

उदाहरण के लिए, पिछले साल प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय ऑन्कॉलजिस्ट द्वारा पहचानी गई अधिकांश उच्च प्राथमिकता वाली कैंसर दवाएं जेनेरिक कीमोथेरेपी एजेंट थीं. इसमें कहा गया है, “लेकिन भारी वित्तीय बोझ के कारण इन उपचारों तक रोगियों की पहुंच भी सीमित है.”

डॉ रौथान ने बताया कि स्तन कैंसर का इलाज विभिन्न उन्नत उपचारों से किया जा सकता है, जिसमें टारगेटेड इलाज, जैविक उपचार, इम्यूनोथेरेपी, नई हार्मोनल थेरेपी और एंटीबॉडी-ड्रग कंजुगेट्स जैसी दवाएं शामिल हैं.

उन्होंने कहा, “इनमें से कई उपचार स्तन कैंसर के रोगियों के जीवित रहने में उल्लेखनीय सुधार करने में सक्षम हैं.” “दुर्भाग्य से, वे अक्सर बहुत महंगे होते हैं, जिससे वे भारत में कई रोगियों के लिए दुर्गम हो जाते हैं.

डॉ रौथान ने कहा कि स्तन कैंसर के उपचार में पर्याप्त अंतर लाने और पश्चिम के समान स्तन कैंसर के रोगी के जीवित रहने के स्तर को प्राप्त करने के लिए, जीवन रक्षक उपचारों और उस तक पहुंच की लागत में सुधार किया जाना चाहिए. “केवल तभी भारत में सभी स्तन कैंसर रोगियों को उस स्तर की देखभाल मिल सकती है जिसके वे हकदार हैं.

मुंबई में वॉकहार्ट अस्पताल के सर्जिकल ऑन्कॉलजिस्ट डॉ. मेघल सांघवी ने भी कहा कि भारत में अधिकांश स्तन कैंसर रोगियों के लिए खरीद पाने के साथ-साथ उस तक पहुंच एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बनी हुई है.

लेकिन राइबोसाइक्लिब मामले में पक्षकार बनी कंपनियों नोवार्टिस और एली लिली एंड कंपनी ने इस साल सितंबर में अपनी दवाओं के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग का पुरजोर विरोध किया था और तर्क दिया था कि मौजूदा कीमतों के बावजूद भारत में उनकी बिक्री अधिक है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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