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Thursday, 25 April, 2024
होमहेल्थओमीक्रॉन दूसरे कोविड वेरिएंट की जगह ले सर्दी-जुकाम के रूप में बना रह सकता है: इम्यूनोलॉजिस्ट पिल्लई

ओमीक्रॉन दूसरे कोविड वेरिएंट की जगह ले सर्दी-जुकाम के रूप में बना रह सकता है: इम्यूनोलॉजिस्ट पिल्लई

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रोफेसरके पद पर कार्यरत डॉ शिव पिल्लई का कहना है कि भारत में कोविड की तीसरी लहर के मार्च तक कम होने की संभावना है, और उनका मानना है कि इस महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया मिक्स्ड बैग जैसी थी.

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नई दिल्ली: भारत में कोविड -19 के मामलों में आये मौजूदा उछाल के मार्च तक कम होने की संभावना है. लंबे समय में, इसके बहुत अधिक फैलने की क्षमता (हाई ट्रांसमिसिबिलिटी) को देखते हुए, यह संभव है कि ओमीक्रॉन सार्स-कोव -2 के अन्य सभी वैरिएंट्स को खत्म कर देगा और एक अपेक्षाकृत हल्के वायरस के रूप में जीवित रहेगा, जिसके लिए केवल बुजुर्गों को टीका लगाने की आवश्यकता है.

एक ऐसे समय में जब ओमीक्रॉन की लहर पूरी दुनिया भर में तेजी से फैल रही है हार्वर्ड इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ शिव पिल्लई का इसके भविष्य के प्रति यही ‘आशावादी’ विचार है.

दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि यह संभव है कि ओमीक्रॉन एक पांचवें सामान्य सर्दी-जुकाम वाले कोरोनावायरस के रूप में हमेशा बना रहेगा. इनसे संक्रमित लोगों को प्रतिरक्षा शक्ति प्राप्त नहीं होती हैं और किसी भी व्यक्ति का एक ही वायरस से एक ही वर्ष में कई बार संक्रमित होना संभव है.

हालांकि, डॉ पिल्लई ने यह भी कहा कि एक फिर से उठ खड़े होने वाले (रिसर्जेंट) डेल्टा संस्करण की वजह से एक और लहर की वैकल्पिक संभावना भी है.

उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया भर की सरकारों ने महामारी से उतनी अच्छी तरह से नहीं निपटा जितना वे कर सकते थे – जिनमें भारत का प्रदर्शन मिक्स्ड बैग (मिलेजुले मामले) की तरह था – और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि फ्लू का टीका कोविड के खिलाफ कोई सुरक्षा नहीं देता है.

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डॉ पिल्लई हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में चिकित्सा तथा स्वास्थ्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रोफेसर हैं. वह हार्वर्ड के पीएचडी और एमएमएससी इम्यूनोलॉजी कार्यक्रमों के निदेशक भी हैं. उनका शोध समूह टी सेल-बी सेल के बीच की सहकार्यता (कोलैबोरेशन) और ऑटोइम्यून तथा सूजन संबंधी बीमारी के लिए इसकी प्रासंगिकता का अध्ययन करता है.

वे भारत में पले-बढ़े, उन्होंने क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन किया और कलकत्ता विश्वविद्यालय से जैव रसायन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. इम्यूनोलॉजी पर उनकी एक अनूठी काव्यात्मक प्रतिक्रिया भी है.


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भविष्य के दो संभावित परिदृश्य

डॉ पिल्लई ने भविष्य के लिए दो संभावनाएं पेश कीं. उन्होंने पहले को ‘अत्यधिक आशावादी परिदृश्य’ बताते हुए कहा की यदि ओमीक्रॉन अन्य सभी वेरिएंट्स की जगह ले लेता है और सारी आबादी को अपनी जद में ले लेता है – जो कि यह अभी काफी अच्छे से कर रहा है – तो यह SARS-Cov-2 के एकमात्र संस्करण के रूप में बचा रह सकता है.

टीके लगाने वालों में इसके प्रति पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता होगी, जो इसे न लगवाने वालों में कम मात्रा में होगी. इसलिए, सात-आठ महीनों के बाद, जिन लोगों को कभी टीका नहीं लगाया गया, उन्हें ही ओमीक्रॉन का संक्रमण होगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘फ़िलहाल हमारे पास चार ज्ञात सामान्य सर्दी-जुकाम वाले कोरोनावायरस हैं जिनकी ओमीक्रॉन के साथ कई समानताएं हैं. आगे जो हो सकता है वो यह है कि ओमीक्रॉन पांचवां सामान्य सर्दी जुकाम वाला कोरोनावायरस बन जाए. यह उत्परिवर्तित (म्यूटेट) तो होता है लेकिन कभी भी अत्यधिक रोगजनक नहीं होता है. फिर हम उस पर लक्षित करते हए टीके विकसित करेंगे जो शायद बुजुर्गों को लगवाएं जाएं. इस स्थिति में कुछ भी स्लैम डंक (एकदम से पक्का) नहीं है. लेकिन जानवरों में ऐसी ही चीजों के होने का इतिहास है.’

उन्होंने कहा, ‘विकास क्रम के रूप में किसी भी वायरस का उद्देश्य खुद को दोहराने (रेप्लिकेट करने) का होता है, न कि अपने मेजबान (होस्ट) को मारने का. इसलिए कोई भी वायरस जो ओमीक्रॉन की तरह अपने आप को अच्छी तरह से रेप्लिकेट कर लेता है, उसके पास अन्य वैरिएंट्स के खतम होने के बाद भी बचे रहने का उचित मौका होता है.’

हालांकि उन्होंने आगे कहा कि एक वैकल्पिक संभावना इस बात की भी है कि डेल्टा संस्करण ‘अमेज़ॉन के जंगलों’ में कहीं जीवित बना रह सकता है, और एक बार फिर से सामने आकर तथा ओमीक्रॉन द्वारा दूसरे संस्करणों के खिलाफ सीमित प्रतिरक्षा – ‘जितना आप चाहते हैं उसका लगभग 40 प्रतिशत’ – प्रदान करने की खामी का लाभ उठाते हुए एक नई लहर को पैदा कर सकता है.

भारत की प्रतिक्रिया विविध प्रकार की

डॉ पिल्लई ने कहा कि इस महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया विविध प्रकार की है, और कभी-कभी नीतिगत निर्णयों के मामले में पर्याप्त जानकारी का अभाव होता है. लेकिन इसमें सार्वजनिक शिक्षा वाला एक अहम तत्व भी है जो एकदम से गायब लगता है, क्योंकि लोग अभी भी मास्क पहनने की आदत से दूर हैं या फिर उन्हें ठीक तरीके से नहीं पहन रहे हैं.

उन्होंने कहा कि धार्मिक आयोजनों सहित बड़ी-बड़ी सभाओं को खुले में आयोजित किया गया, और इनके प्रतिभागियों के घर लौटने पर मामलों में आया उभार और बढ़ गया.

उन्होंने कहा, ‘पूरी दुनिया में, सरकारों ने उतना अच्छा काम नहीं किया जितना वे कर सकते थे. इन चीजों को विज्ञान में निहित करना होगा. उन्होंने अपनी बात में यह भी जोड़ा कि ‘मुझे लगता है कि लोग (भारत में) उतने गंभीर नहीं हैं जितने होने चाहिए. लोग मास्क नहीं पहनते हैं, या फिर उन्हें इस तरह से पहनते हैं कि यह उनके किसी काम नहीं आएगा.’

वे कहते हैं, ‘मैं उन लोगों के बारे में चिंतित हूं जिनके पास जानकारी नहीं है. मैं समझता हूं कि लोग थके हुए हैं और जीवन ऐसे ही चलता रहेगा. पर सार्वजनिक शिक्षा का मुद्दा एक लंबे समय वाला व्यापक मुद्दा है.

हालांकि, उनका कहना था कि ‘भारत ने टीकाकरण के मामले में बहुत अच्छा काम किया है.’

सार्स-कोव -2 की उत्पत्ति के बारे में कोई पुख्ता सुबूत नहीं

डॉ पिल्लई सार्स-कोव -2 की उत्पत्ति के बारे में बहुत अधिक बात करने के प्रति यह कहते हुए अनिच्छुक थे कि किसी एक या दूसरे बात के पक्ष में कोई पुख्ता सबूत नहीं है.

वे कहते हैं, ‘इस मामले में कोई ‘स्मोकिंग गन’ (धुंआ उगलती बन्दुक जो गोली चलने का सुबूत होती है) मौजूद नहीं है, बिल्कुल भी नहीं. यह वायरस जानवरों में पाए जाने वाले वायरस की तरह ही दिखता है. ऐसे चमगादड़ हैं जिनमें इसी तरह के वायरस होते हैं. हम नहीं जानते कि वुहान का मूल स्ट्रेन कहां से आया था. उस पर समय बर्बाद करना किसी ऐसी चीज पर समय बर्बाद करना है जिसे आप साबित ही नहीं कर सकते.’

नोबेल पुरस्कार विजेता और अमेरिकी जीवविज्ञानी डॉ डेविड बाल्टीमोर को एक बार यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि सार्स-कोव -2 की संरचना की एक ख़ास विशेषता इस सिद्धांत के लिए एक ‘स्मोकिंग गन ‘ जैसी थी कि यह वायरस एक प्रयोगशाला से उत्पन्न हुआ है, लेकिन इसक बाद से उन्होंने कहा है कि हो सकता है कि उन्होंने इस मामले को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया हो.

डॉ पिल्लई ने कहा कि उन्हें चीनी वैज्ञानिकों पर बहुत भरोसा है और उनका मानना है कि वायरस किसी जानवर से ही आया है. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि कोई भी जानबूझकर वायरस फैलाएगा.’

‘फ्लू वैक्सीन कोविड के खिलाफ काम नहीं करती’

डॉ पिल्लई ने ऐसी किसी भी संभावना से इंकार किया कि फ्लू के लिए लगने वाला टीका सार्स-कोव -2 वायरस के खिलाफ कोई सुरक्षा दे सकता है.

उन्होंने कहा, ‘फ्लू का टीका कोविड में बिल्कुल भी मदद नहीं करता है. शायद यह कुछ समय के लिए फ्लू के मामले में मदद करता है. यह विशेष स्ट्रेन के खिलाफ लक्षित है, जो बुजुर्ग लोगों के लिहाज से महत्वपूर्ण है. मेरे अस्पताल जैसे अस्पतालों में हर किसी को फ्लू का टीका लगवाना पड़ता है. इससे मिलने वाली सुरक्षा एकदम से ‘अद्भुत’ तो नहीं है लेकिन यह कुछ भी सुरक्षा न होने से तो बेहतर हीं है.’

उन्होंने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति की पोषण स्थिति अच्छी होती है, उसमें सप्लीमेंट्स (पूरक आहार) से इम्युनिटी और नहीं बढ़ती है. उन्होंने कहा, ‘यदि आप कुपोषित नहीं हैं, तो इनमें से किसी भी चीज़ का कोई मतलब नहीं है. किसी भी टॉनिक से ज्यादा जरूरी है भोजन करना.’ वे यह भी कहते हैं कि लोग अपनी सुरक्षा के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं और व्यापार जगत उन चीजों को बढ़ावा देता है. लेकिन यह एकदम से कचरा है, मगर यह हानिकारक तो नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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