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Saturday, 20 April, 2024
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दिल्ली सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर्स बोले- बिल्कुल टूटने की कगार पर हैं, बेहतर क्वारेंटाइन की उठाई मांग

डॉक्टरों का कहना है कि ये कमी मुख्य रूप से NEET PG 2021 काउंसलिंग में देरी से पैदा हुई है. लेकिन सरकारी डॉक्टरों में अचानक तेज़ी फैले कोविड संक्रमण ने, संकट को और बिगाड़ दिया है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की स्थिति बिल्कुल बैठ जाने की कगार पर पहुंच रही है, क्योंकि कोविड-19 महामारी की तेज़ी से बढ़ती तीसरी लहर के बीच, उनके यहां डॉक्टर्स और हेल्थकेयर वर्कर्स की गंभीर क़िल्लत पैदा हो रही है.

दिप्रिंट से बात करते हुए कई डॉक्टरों ने कहा, कि ये कमी मुख्य रूप से नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET में ) पीजी 2021 काउंसलिंग में देरी की वजह से पैदा हुई. लेकिन बड़ी संख्या में सरकारी डॉक्टरों में अचानक तेज़ी से फैले कोविड संक्रमण ने संकट को और बिगाड़ दिया है.

इसके चलते इन अस्पतालों में बाक़ी बचे डॉक्टरों पर भारी दवाब आ गया है, जो अब अपने बीमार सहकर्मियों की जगह काम करने में जूझ रहे हैं और पोस्टग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टरों की नई खेप का इंतज़ार कर रहे हैं.

इनमें से ज़्यादातर डॉक्टर या तो कोविड वॉर्ड या फिर बहुत अहम विभागों में काम के लंबे घंटे बिता रहे हैं- जैसे इमरजेंसी, मेडिसिन, चेस्ट या रेस्पिरेटरी मेडिसिन, रेडियॉलजी, माइक्रोबायोलजी, क्रिटिकल केयर, पैथॉलजी, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनीकॉलजी आदि.

उनका कहना है कि उनकी मानसिक शांति तार-तार हो चुकी है और प्रशासन की ओर से भी कोई सहायता नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, अनिवार्य क्वारेंटाइन को हटाने वाले नए नियमों ने उनके परिवार के लिए भी जोखिम बढ़ा दिया है.

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सफदरजंग अस्पताल में रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के महासचिव डॉ अनुज अग्रवाल ने कहा, ‘काम का ज़्यादा बोझ उन लोगों पर है जो आईसीयू सेक्शन में सेवाएं देते हैं, जैसे कि एनेस्थीसिया विभाग और उसके बाद श्वसन विभाग. उन्हें मजबूरन हफ्ते में 24-घंटे की तीन शिफ्ट करनी पड़ रही हैं, इसके बावजूद कि अप्रैल-मई में उनके इम्तिहान आ रहे हैं, जबकि आमतौर पर एक महीने में 24 घंटे की चार ड्यूटी करने का नियम है’.

अग्रवाल ने आगे कहा, ‘एक खेप न आने की वजह से श्रमबल की पहले ही कमी थी, जिसकी स्थिति अब और बिगड़ गई है क्योंकि हर विभाग में कम से कम तीस प्रतिशत डॉक्टर कोविड की चपेट में हैं. कोविड के मामले कितने भी अधिक हो जाएं, कई महत्वपूर्ण विभाग ऐसे हैं जिन्हें चलाए रखने के लिए, अच्छी ख़ासी संख्या में डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर चाहिए होते हैं’.

इसी महीने छह प्रमुख सरकारी अस्पतालों में कम से कम 750 डॉक्टरों के टेस्ट, कथित रूप से कोविड पॉजिटिव पाए गए थे. ये संक्रमण शहर में अचानक आई ज़बर्दस्त तीसरी लहर के साथ आए थे.

पिछले सप्ताह, दिल्ली में कोविड के 28,867 मामले सामने आए- जो अभी तक महामारी में एक दिन की सबसे बड़ी संख्या है. लेकिन, दो दिन बाद शनिवार को इस संख्या में तेज़ी से गिरावट आई, और ये घटकर 20,718 हो गई.

‘और अधिक डॉक्टर चाहिए’

दिल्ली में सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की भारी कमी के बीच, कोविड के इस बढ़ते बोझ को संभालना मुश्किल होता जा रहा है.

उनका कहना है कि कोविड-19 से जुड़े मेडिकल इनफ्रास्ट्रक्चर, जैसे बिस्टर, आईसीयूज़, ऑक्सीजन उपलब्धता आदि में अच्छे ख़ासे इज़ाफे के बावजूद, उनसे काम लेने के लिए आवश्यक श्रमबल की उपलब्धता अभी भी ग़ायब है.

सफदरजंग अस्पताल के रेडियॉलजी विभाग के एक सीनियर रेज़िडेंट, डॉ सौरभ सच्चर ने कहा, ‘बहुत से विभागों में कार्यरत डॉक्टरों पर, जैसे आईसीयू को संभालने वाले, या प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग वाले जहां लेबर केस देखने होते हैं, काम का अतिरिक्त दबाव और तनाव होता है. जहां तक पैथॉलजी और रेडियॉलजी जैसे डायग्नॉस्टिक्स का संबंध है, वहां भी कोविड में उछाल के साथ काम का बोझ बढ़ जाता है’.

कुमार ने कहा, ‘ऐसे विशेषज्ञ को तैयार करने में बरसों की ट्रेनिंग लगती है, जो इस तरह के संकट को संभाल सकते हैं. इसके विपरीत फिज़िकल इनफ्रास्ट्रक्चर का काम ऐसा होता है, जिसे कहीं कम समय में जुटाया जा सकता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘बढ़े हुए इनफ्रास्ट्रक्चर को काम में लाने के लिए, हमें और ज़्यादा डॉक्टर्स चाहिए…कुछ शाखाएं ऐसी हैं जहां से डॉक्टरों को कोविड ड्यूटी के लिए पूरी तरह नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि उन विभागों का काम कभी बंद नहीं होता’.


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‘एक बार में 48 घंटे’

काम के लंबे घंटों से पैदा हुआ तनाव, डॉक्टरों के लिए गंभीर परिणाम लेकर आया है.

राम मनोहर लोहिया अस्पताल की आरडीए के सदस्य, डॉ फुरकान अहमद ने कहा, ‘मेरे विभाग में 45 रेज़िडेंट डॉक्टर्स हुआ करते थे. अब उनमें से सिर्फ 30 बचे हैं…जिनमें से 10 पॉज़िटिव हैं और बाक़ी 20 को कोविड, इमरजेंसी, और दूसरी ज़रूरी विभागीय कर्त्तव्यों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘बहुत से डॉक्टर मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से दोचार हैं, और उन्हें हर दिन कम से कम 30 मिनट के लिए, एक काउंसलिंग सेशन में शामिल होने को कहा गया है, लेकिन 48-72 घंटों तक काम करने की वजह से, वो इनमें शरीक नहीं हो सकते. इसके चलते मरीज़ों की देखभाल भी प्रभावित होती है’.

ज़्यादातर दूसरे सरकारी अस्पतालों में भी यही कहानी दोहराई जा रही है.

सफदरजंग एनेस्थीसिया विभाग में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर आस्था कुमारी ने कहा, ‘डॉक्टरों की कमी तो कोविड दौर से पहले भी थी, लेकिन अब ये 100-200 गुना बढ़ गई है’.

उन्होंने बताया, ‘हर विभाग में तीन साल के लिए पीजी छात्र होते हैं. काउंसलिंग में देरी के कारण हमारे पास, पहले वर्ष के पीजी छात्र नहीं हैं जो मरीज़ों को संभालते हैं, और बाक़ी दूसरे और तीसरे वर्ष के बैच के इम्तिहान आ रहे हैं. काम के भारी तनाव की वजह से बहुत से डॉक्टर छुट्टी पर जाना चाहते हैं, या इस आधार पर इस्तीफा देना चाहते हैं, कि उनके परिवार को कोविड संक्रमण हो जाएगा, लेकिन उन्हें ऐसा नहीं करने दिया जा रहा’.

कुमारी ने आगे कहा, ‘पिछले दो साल सरकारी डॉक्टरों के लिए बहुत तनावपूर्ण रहे हैं. हमारे विभाग में हर कोई नर्वस ब्रेकडाउन की कगार पर है. प्रशासन और प्राधिकारियों के रवैये से भी मदद नहीं मिल रही है, इसके बावजूद कि डॉक्टर्स सेवा में अपना सब कुछ झोंक रहे हैं. बाहर (देशों में) 7 दिन में कुल 48 घंटों की शिफ्ट होती है, लेकिन यहां पर एक ही बार में 48 घंटे लग जाते हैं’.

पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट में, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा था कि भारत में डॉक्टरों की कमी है, और उनपर काम का बोझ ज़्यादा है, और दूसरी कोविड लहर में देश ने 200 से अधिक डॉक्टरों को खो दिया है.

डॉक्टर्स क्या मांग रहे हैं

डॉक्टरों ने मांग की है कि कोविड ड्यूटी करने के बाद, उन्हें कम से कम कुछ समय के लिए ख़ुद को क्वारंटीन करने दिया जाए, और उनके लिए आवास का बंदोबस्त किया जाए, क्योंकि उन्हें डर है कि मौजूदा कोविड लहर में बहुत ऊंची संक्रमण होने की वजह से, ये फैलकर उनके परिवारों तक पहुंच जाएगी.

रिपोर्ट्स के मुताबिक़ नई गाइडलाइन्स में कहा गया है, कि कोविड ड्यूटी के बाद स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों, या कोविड के संपर्क में आए हेल्थकेयर वर्कर्स को, क्वारंटीन की ज़रूरत नहीं है.

डॉक्टरों की राय है कि कोविड ड्यूटी के बाद, उन्हें कम से कम पांच-सात दिन की क्वारेंटाइन सुविधा मुहैया कराई जानी चाहिए.

अग्रवाल ने कहा, ‘अब कोविड ड्यूटी के बाद डॉक्टर को अपने परिवार के पास जाना होता है, चूंकि अब उनके लिए हॉस्टल/होटल आवास या क्वारेंटाइन का कोई प्रावधान नहीं है. इसकी वजह से बहुत से डॉक्टर और उनके परिवार वायरस के संपर्क में आ गए हैं. सख़्त ज़रूरत है कि हमारे लिए क्वारेंटाइन का प्रावधान फिर से किया जाए, ताकि केविड संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सके. कोविड वॉर्ड में काम कर रहे डॉक्टरों के लिए आवास भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए’.

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष, और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेज़िडेंट, डॉ राकेश बागड़ी ने कहा, ‘पहले डॉक्टरों के लिए 14 दिन की कोविड ड्यूटी, और फिर उसके बाद 14 दिन का क्वारेंटाइन होता था. इसके अलावा, अगर कोई पॉजिटिव आ जाए, तो उसके संपर्क को भी क्वारेंटाइन किया जाता था. लेकिन इस लहर में ऐसा नहीं है’.

रविवार को, लोक नायक अस्पताल के रेज़िडेंट डॉक्टरों ने प्रशासन को पत्र लिखकर, एक सप्ताह के अनिवार्य क्वारेंटाइन और आवास सुविधाओं की मांग की.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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