नई दिल्ली: रूस स्थित सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तमाम देशों में फैले कोविड-19 से जुड़े डाटा का विश्लेषण करने के दौरान पाया है कि ‘नए कोरोनोवायरस के संक्रमण की गति उन जगहों पर कम होती है जहां बड़ी संख्या में लोग टीबी के खिलाफ टीकाकरण के लिए बीसीजी का टीका लगवाते हैं.’
कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा पर बेसिलस कैलमेट-गुएरिन (बीसीजी) वैक्सीन के असर को लेकर मौजूदा समय में दुनियाभर में अध्ययन चल रहा है, और पहले भी कुछ शोध में इसी तरह के निष्कर्ष निकाले गए हैं. भारत उन देशों में एक है जहां टीबी की चपेट में आने से बचाने के लिए बीसीजी वैक्सीन बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा है.
रूसी वैज्ञानिकों ने एक प्रेस नोट में कहा, ‘… बचपन में लगा यह टीका प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह बदल देता है कि नया कोरोनावायरस रोग कम घातक हो जाता है.’
सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले विभिन्न देशों में कोविड का संक्रमण फैलने के संबंध में ‘लगभग 100 एकेडमिक पेपर और आंकड़ों का विश्लेषण किया है.’ उनका यह अध्ययन रूसी पीर-रिव्यूड जर्नल जुवेनिस साइंटिया में प्रकाशित हुआ है.
कोविड की संक्रामक क्षमता का विश्लेषण
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें उन देशों, जहां लंबे समय से और नियमित आधार पर बीसीजी टीका दिया जाता है, ‘और संक्रमण के कारण होने वाले गंभीर इंटरस्टिशियल निमोनिया कोविड-19 के मामलों और इसके कारण होने वाली मौतों की दर‘ के बीच एक ‘जुड़ाव’ मिला है.
यह भी पढ़ें : तीसरे दौर के ट्रायल्स में कोविड वैक्सीन्स ने उम्मीद जगाई, इसके सबसे अहम स्टेज होने के ये हैं कारण
अंग्रेजी में जारी प्रेस नोट में शोधकर्ताओं ने कहा, ‘उन देशों और क्षेत्रों में मृत्यु दर कम हो गई है, जहां राष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण अभियान लंबे समय तक चला है या आज भी चल रहा है, खासकर यदि पुन: टीकाकरण को अपनाया गया.’
अध्ययन के अनुसार, फिनलैंड, चीन और जापान के साथ-साथ पूर्वी यूरोप, मध्य और दक्षिण एशिया, अफ्रीकी देशों और पूर्व यूएसएसआर के संदर्भ में यह जुड़ाव पाया गया.
शोधकर्ताओं ने कहा, ‘आंकड़े वहां काफी ज्यादा हैं जहां कभी बड़े पैमाने पर बीसीजी टीकाकरण अभियान नहीं चला या 20 साल से ज्यादा समय पहले बंद कर दिया गया था, उदाहरण के तौर पर, अमेरिका, इटली, नीदरलैंड, बेल्जियम और पूर्ववर्ती जर्मनी के क्षेत्र को छोड़कर बाकी जर्मनी आदि.’
यह कैसे काम करता है
अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, सीधे शब्दों में कहें तो बीसीजी वैक्सीन हमारे शरीर में एक ‘प्रशिक्षित’ या जन्मजात और उसके अनुकूल प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया सक्रिय कर देती है, जो गंभीर कोविड-19 के खिलाफ रक्षा कवच बन सकती है.
सेंट पीटर्सबर्ग के वैज्ञानिकों के अनुसार, ‘वैक्सीन स्ट्रेन का तात्कालिक और दीर्घकालिक असर कुछ सहायक प्रभाव भी उत्पन्न करता है जो कई तरह के संक्रमण समेत विभिन्न एंटीजन के खिलाफ शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने में कारगर होता है.’
दूसरे शब्दों में कहें तो कम उम्र में टीका लगने से सबसे कारगर साबित होने वाली यह सुरक्षा उन देशों में ज्यादा है जहां लंबे समय से बीसीजी टीकाकरण का कार्यक्रम चलता आ रहा है.
प्रेस नोट के मुताबिक इस अध्ययन की निगरानी करने वाले वैज्ञानिक लियोनिद चुरिलोव ने कहा, ‘यह मानने का कारण है कि जिन वयस्कों और बुजुर्गों का बचपन में टीकाकरण नहीं हुआ था, उनमें बाद में लगने वाले टीके का असर काफी कम होगा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘वहीं नीदरलैंड, के वैज्ञानिकों के शोधपत्र भी हैं जहां बीसीजी टीका बचपन में नहीं दिया जाता. इससे पता चलता है कि अगर वयस्क उम्र में भी बीसीजी टीका दिया जाता है तो असर बहुत खराब नहीं होता, और नए कोरोनावायरस की चपेट में आने पर कुछ हद तक संभवत: यह खतरे को कम ही करता है.’
अक्टूबर में आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस के वैज्ञानिकों ने एक नॉन-पीर-रिव्यूड अध्ययन में पाया था कि ज्यादा उम्र के वयस्कों में बीसीजी वैक्सीन का असर प्रशिक्षित और अनुकूली प्रतिरक्षा को बढ़ाने वाला होता है जो कोविड-19 का खतरा घटाने में मददगार हो सकता है.
जेएनयू में मॉलीक्लुर मेडिसिन के प्रोफेसर और कोविड-19 के खिलाफ बीसीजी वैक्सीन का इस्तेमाल किए जाने के शुरुआती समर्थकों में शामिल डॉ. गोवर्धन दास ने कहा, ‘जब किसी को कम उम्र में बीसीजी टीका दिया जाता है तो बहुत सारी टी-मेमोरी सेल विकसित हो सकती हैं जो कोरोनोवायरस संक्रमण से लड़ने में मदद कर सकती हैं. लेकिन ऐसे अध्ययन भी हैं जो बताते हैं कि वयस्क उम्र में बीसीजी टीका लगाने से भी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ सकती है.’
उन्होंने कहा, ‘कोरोनवायरस जब बीसीजी टीकाकरण वाले किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है तो बीसीजी के प्रभाव की वजह से कोविड-एंटीजेने वाली विशिष्ट टी कोशिकाएं उत्पन्न हो जाती हैं. इससे कोविड के खिलाफ विशिष्ट वैक्सीन वाला प्रभाव उत्पन्न होता है, जो भविष्य के जोखिम से बचाने में कारगर साबित हो सकता है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )