नई दिल्ली: वैज्ञानिकों ने एक मार्कर की पहचान की है जो फेफड़ों के सेल्स के फिटनेस लेवल को दर्शा सकता है, और जिससे संक्रमण होने से पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, कि किसी व्यक्ति को गंभीर कोविड होगा कि नहीं.
इसकी जानकारी खुली पहुंच की पत्रिका ईएमबीओ मॉलिक्युलर मेडिसिन में, कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के वैज्ञानिकों ने दी है, जिनमें मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर हार्ट एंड लंग रिसर्च, चैम्पैलिमॉड सेंटर फॉर दि अननोन, दि यूनिवर्सिटी क्वींसलैण्ड ब्रिसबेन, और यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन शामिल हैं.
स्टडी के एक लेखक ने दिप्रिंट को बताया, कि एचएफडब्लूई-लूज़ कहे जाने वाले मार्कर से ये पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है, कि कोई व्यक्ति कोविड के दीर्घ-कालिक असर के प्रति कितना संवेदनशील होगा- जिसे आमतौर से ‘लंबा कोविड’ कहा जाता है.
पेपर के महत्व को समझाते हुए लेखकों ने कहा: ‘गंभीर कोविड-19 के जोखिम की डिग्री का आंकलन, मौजूदा महामारी के प्रबंधन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. ये साधन ऐसे मरीज़ों की छंटाई के लिए उपयोगी होगा, जो कोविड-19 पॉज़िटिव निकलते हैं. जिन मरीज़ों में गंभीर लक्षण विकसित होने की संभावना होती है, उनकी नज़दीकी से निगरानी हो सकती है, और उन्हें अस्पताल तथा इंटेंसिव केयर की सुविधा जल्द दी जा सकती है…सेल फिटनेस मार्कर एचएफडब्लूई-लूज़, कोविड-19 मरीज़ों में निष्कर्षों का सही पूर्वानुमान लगाता है. ये दर्शाता है कि टिशू फिटनेस पाथवेज़ संक्रमण और बीमारी के रेस्पॉन्स को तय करते हैं, और मौजूदा कोविड-19 महामारी को संभालने में उपयोगी साबित हो सकते हैं’.
मार्कर की पहचान के लिए रिसर्चर्स ने कोविड-संक्रमित फेफड़ों के टिश्यूज़ का पोस्टमॉर्टम किया, और तय किया कि सेल फिटनेस मार्कर एचएफडब्लूई-लूज़ संक्रमण के प्रति, होस्ट के इम्यून रेस्पॉन्स से पहले हो सकता है.
ज़्यादा महत्वपूर्ण ये है कि कोविड मरीज़ों के नतीजों (अस्पताल भर्ती या मौत) का पूर्वानुमान लगाने के पारंपरिक तरीक़ों की अपेक्षा, एचएफडब्लूई-लूज़ के अभिव्यक्ति लेवल्स का प्रदर्शन बेहतर रहा. ये उम्र और अन्य बीमारियों जैसे आमतौर से इस्तेमाल होने वाले कारकों के मुक़ाबले, किसी व्यक्ति की बीमारी की गंभीरता का बेहतर पूर्वानुमान लगा सकता है.
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‘सेल फिटनेस से दूसरी बीमारियों के नतीजों का पूर्वानुमान लग सकता है’
कोपनहेगन यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल साइंसेज़ के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ रंजन गोगना ने, जो स्टडी के लेखकों में से एक हैं, दिप्रिंट से कहा कि हो सकता है कि इस तरह के उपाय से दूसरी लहर के दौरान, ख़ासकर भारत जैसे देशों में कोविड मौतों पर काफी असर पड़ा हो, जहां स्वास्थ्य इनफ्रास्ट्रक्चर पर्याप्त नहीं है.
डॉ गोगना ने कहा, ‘ये पेपर इसलिए महत्वपूर्ण है कि इससे समाज को फायदा है, और ये अत्याधुनिक विज्ञान भी है. सिर्फ आपकी नाक के स्वॉब की जांच से- जो नाक की उपकला के सेल्स होते हैं- वो दिखा सकते हैं कि लंग्स के अंदर सेल्स में क्या चल रहा है. हमें एक ऐसा जीन मिला है जो हमारे लंग्स के अंदर, सेल्स की सेलुलर फिटनेस का अनुमान लगाता है, जिससे हम पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि बीमारी कितनी गंभीर होगी’.
‘लोग जो ग़लती कर रहे थे वो ये थी, कि वो इम्यून रेस्पॉन्स के पीछे भाग रहे थे. लेकिन कुछ ऐसा है जो इम्यून रेस्पॉन्स के बेक़ाबू होने से पहले होता है. उससे पहले ही वायरस फेफड़ों के सेल्स को मारना शुरू कर देता है. फेफड़ों के सेल्स की फिटनेस उसे रोक सकती है. आयु और अतिरिक्त बीमारियां परफेक्ट मार्कर्स नहीं हैं, लेकिन मेरा मानना है कि इस खोज का, दूसरी लहर के दौरान मौतों को रोकने में एक बड़ा प्रभाव रहा होगा’.
इम्यून रेस्पॉन्स का उल्लेख उन बहुत सी कोविड मौतों के बारे में है, जिनका संबंध साइटोकीन स्टॉर्म कहे जाने वाले एक अति सक्रिय इम्यून सिस्टम से जोड़ा गया है, जिससे अंत में व्यक्ति की मौत हे जाती है.
डॉ गोगना ने आगे कहा कि सेल फिटनेस के ज़रिए, दूसरी बीमारियों की गंभीरता का भी अनुमान लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘सेल फिटनेस एक उभरती हुई अवधारणा है. रोग जीव विज्ञान में उसकी एक भूमिका है, और इसे टीबी और इनफ्लुएंज़ा जैसी बीमारियों पर भी लागू किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे अधिकतर रोग विज्ञानों में दरअसल, समस्या फेफड़ों के सेल्स के मरने की होती है. सेल फिटनेस से लॉन्ग कोविड भी समझ में आता है, और ये भी समझ आता है कि कुछ लोग टीकाकरण के बाद भी क्यों मर जाते हैं’.
पेपर में तर्क दिया गया है कि कोविड के कारगर प्रबंधन के लिए, ज़रूरी है कि पहले पहचान की जाए और फिर जहां ज़रूरी हो, ऐसे कोविड-19 मरीज़ों की छंटाई कर दी जाए, जिन्हें बीमारी के ख़राब निष्कर्षों का ज़्यादा ख़तरा रहता है. लेकिन वो तत्काल रूप से ये नहीं समझा पाए, कि विशेषकर ये मार्कर निष्कर्षों का पूर्वानुमान क्यों कर सकता है.
शोधकर्त्ताओं ने पेपर में लिखा, ‘फिलहाल, ये स्पष्ट नहीं है कि श्वास नली में एचएफडब्लूई-लूज़ एक्सप्रेशन को, गंभीर कोविड-19 से क्यों जोड़ा जाता है. अतीत में देखा गया है कि हमारे शरीर के अंदर हो रहे पर्यावरण परिवर्तन, जैसे पोषक अवस्था, सूजन, और विशेष रूप से इम्यून फंक्शन, सेल्स की फिटनेस की सापेक्ष स्थिति, और अपने टिश्यू स्पेस में उनके योगदान को प्रभावित करते हैं. स्थायी सूजन, जिसमें आहार से जुड़ी सूजन और मोटापा शामिल हैं, होमियोस्टैटिक फिटनेस सेंसिंग मिकेनिज़्म का विरोध करती है, जिसके नतीजे में कम अच्छे सेल्स ज़्यादा रुके रहते हैं, जिससे समय के साथ टिश्यू फिटनेस और बिगड़ जाती है’.
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