नई दिल्ली: अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (यूपीएफ) का अधिक सेवन मृत्यु दर का जोखिम बढ़ा सकता है, एक स्टडी में सामने आया है कि इस तरह के आहार से हृदय से जुड़ी बीमारियां बढ़ती हैं.
अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में जनवरी में प्रकाशित एक स्टडी बताती है कि हर दिन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों (यूपीएफ), जैसे सॉफ्टड्रिंक, चिप्स, चॉकलेट और कुछ मीठा नाश्ता करने से मौत का खतरा 28 प्रतिशत तक बढ़ सकता है.
स्टडी के रिसर्चर्स ने कहा कि उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह जोखिम अधिक है.
ये निष्कर्ष मौजूदा समय में जारी प्रॉस्पेक्टिव अर्बन रूरल एपिडेमियोलॉजी (पीयूआरई) स्टडी का हिस्सा है, जो सभी महाद्वीपों (ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर) में ऑब्जर्वेशन करने वाला एक बड़ा समूह है और खानपान संबंधी आदतों और हर भागीदार की तरफ से यूपीएफ के सेवन के बारे पूरा ब्योरा जुटाता है.
स्टडी के लिए रिसर्चर्स ने 1,38,076 प्रतिभागियों का डेटा एकत्र किया, जिनकी उम्र 35 से 70 वर्ष के बीच थी और स्टडी की शुरुआत में उन्हें हृदय संबंधी कोई बीमारी नहीं थी. प्रतिभागी पांच महाद्वीपों के 21 देशों के रहने वाले हैं और औसतन 10.2 वर्षों तक उनके बारे में यह ब्योरा जुटाया गया है.
स्टडी में कहा गया है कि ऐसी कई परिकल्पनाएं हैं जो अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन के सेवन और स्वास्थ्य संबंधी नतीजों के बीच संबंध की व्याख्या कर सकती हैं.
शोधकर्ता ने लिखा, ‘‘यूपीएफ का ज्यादा सेवन ट्रांस फैट बढ़ा देता है और साथ ही कृत्रिम चीज़ों, रंगों और पर्यावरण संबंधी अन्य प्रदूषकों के संपर्क में आने का भी खतरा रहता है. इसके अलावा, एक्रिलामाइड जैसे यौगिक, जो उच्च कार्बोहाइड्रेट खाद्य पदार्थों के थर्मल प्रसंस्करण के दौरान बनते हैं, न्यूरोटॉक्सिक और कार्सिनोजेनिक हो सकते हैं.’’
स्टडी में कहा गया है कि चूंकि, हृदय संबंधी रोग 80 प्रतिशत तो कम और मध्यम आय वाले देशों में ही होते हैं, यूपीएफ का सेवन जोखिम बढ़ा देता और इसके खतरों के प्रति आगाह किया जाना मृत्यु दर पर काबू पाने में अहम भूमिका निभा सकता है.
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खीर, मिठाइयां और नमकीन भी नुकसानदेह
स्टडी के लिए टीम ने अलग-अलग देशों के लोगों की खानपान संबंधी अलग-अलग आदतों को ध्यान में रखकर विशिष्ट खाद्य प्रश्नावली का इस्तेमाल किया. भारत के लिए खीर, अन्य तरह की मिठाइयों और नमकीन को भी अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की सूची में जोड़ा गया.
इसके बाद उन्होंने हृदयरोग संबंधी मामलों और अन्य कारणों से होने वाली प्रतिभागियों की मौतों की कुल संख्या का उल्लेख किया.
रिसर्चर्स ने हृदय संबंधी रोगों और हृदय संबंधी समस्याओं के बीच अंतर किया.
हृदय संबंधी घटनाएं समस्याएं ऐसी स्थिति को संदर्भित करती हैं जिससे हृदय की मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है, उदाहरण के तौर पर दिल का दौरा या मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (एमआई).
दूसरी ओर, हृदय रोग उन स्थितियों को संदर्भित करता है जो इन घटनाओं का कारण बनती हैं—जैसे नसों में थक्का जमना और जन्मजात हृदय रोगा.
हालांकि, अतीत में कई स्टडीज़ ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के सेवन को मुख्य तौर पर हृदय रोग से जोड़ा है, लेकिन वर्तमान अध्ययन में ऐसा कोई लिंक नहीं पाया गया.
शोधकर्ताओं ने कहा, ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि पीयूआरई स्टडी में अधिकांश प्रतिभागी निम्न और मध्यम आय वाले देशों से थे, जहां यूपीएफ को बहुत ज्यादा समय से प्रचलन में नहीं हैं और उच्च आय वाले देशों की तुलना में यहां इनकी खपत कम थी.
उन्होंने लिखा, ‘‘इसके अलावा, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के हानिकारक प्रभाव के स्पष्ट होने के लिए जरूरी है कि इनका लंबे समय से सेवन किया जा रहा हो.’’
स्टडी में कहा गया है कि पैकेजिंग में इस्तेमाल बिसफेनोल एस जैसे प्लास्टिसाइजर के संपर्क में आना इन यूपीएफ का स्वास्थ्य पर अधिक हानिकारक प्रभाव होने का एक बड़ा कारण हो सकता है. प्लास्टिसाइजर प्लास्टिक या रबर को नरम और अधिक लचीला बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन होते हैं.
इसमें यह भी कहा गया है कि इस तरह के खाद्य पदार्थ पेट में माइक्रोबायोम विकसित करते हैं जिसकी वजह से सूजन की समस्या आती है और यही आगे चलकर हृदय संबंधी समस्याएं और मृत्यु दर का जोखिम बढ़ने का कारण बनती है.
(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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