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Thursday, 2 May, 2024
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कैसे रोहू मछली के स्केल से 90 LED जलाने वाली बिजली पैदा कर रहें हैं पंजाब के रिसर्चर्स

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की एक टीम ने ट्राइबोइलेक्ट्रिक नैनोजेनरेटोस को विकसित करने के लिए फिश स्केल का इस्तेमाल किया, जो बैटरी-रहित उपकरणों को बिजली दे सकता है. इस शोध को ‘सेंसर्स एंड एक्चुएटर्स एन्ड फिजिकल’ में प्रकाशित किया गया है.

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नई दिल्ली: गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के शोधकर्ताओं का एक दल स्थानीय मछली बाजार में जाने-पहचाने चेहरे जैसा है. ऐसा इसलिए नहीं है कि वे कोई जायकेदार सी-फ़ूड बनाना चाहते हैं, बल्कि इसलिए कि वे किसी ऐसी चीज- फिश स्केल (मछलियों का शल्क) – की तलाश में हैं जिसे कोई नहीं चाहता और इसे ऐसे ही फेंक दिया जाता है.

जसप्रीत कौर, हरमिंदर सिंह और अन्य लोगों के इस दल को नियमित रूप से अवांछित कचरे – जैसे कि अंडे के छिलके और जानवरों के बालों – के साथ काम करते हुए देखी जाता है. उनका लक्ष्य? ऐसे छोटे जनरेटर बनाना जो मानवीय हलचलों का उपयोग करके भविष्य के बैटरी-रहित, लचीले उपकरणों को बिजली प्रदान कर सकते हैं. कौर ने दिप्रिंट को बताया, ‘अभी बैटरियों को लिथियम से बनाया जाता है, जो बायोडिग्रेडेबल (स्वाभाविक तरीके से सड़ने या गलने वाले) नहीं है – किसी भी लैंडफिल में ये कचरे मैं और बढ़ोत्तरी करते हैं.

’पिछले महीने, उन्होंने नामी विज्ञान पत्रिका ‘सेंसर्स एंड एक्चुएटर्स एंड फिजिकल’ में एक स्टडी प्रकाशित की है – यह उनके लगभग पिछले चार वर्षों के काम का एक छोटा सा हिस्सा, जिसका उद्देश्य पौधे और जानवरों से मिले कचरे से एक ट्राइबोइलेक्ट्रिक नैनोजेनरेटर (टीईएनजी या टेंग) विकसित करना है.

टेंग का उपयोग विभिन्न स्रोतों से बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है, जैसे किसी व्यक्ति के शरीर की हलचल, हवा या पानी का प्रवाह. वे छोटे, पोर्टेबल (आसानी से दूसरे जगह ले जाये जा सकने वाले) उपकरणों को बिजली प्रदान करने के लिए एक आकर्षक विकल्प हैं, क्योंकि वे हल्के होते हैं, निर्माण में आसान होते हैं और उन्हें बैटरी या आउटलेट जैसे पारंपरिक बिजली के स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है.

बिजली के बायोकंपैटिबल, पर्यावरण के अनुकूल विकल्प की तलाश में लगे शोधकर्ताओं ने टेंग को विकसित करने के लिए फिश स्केल्स का इस्तेमाल किया जो मोशन सेंसर और बैटरी-लेस इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिये उपकरणों को बिजली प्रदान कर सकता है.

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गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और इस परियोजना में शामिल शोधकर्ताओं में से एक सिंह ने दिप्रिंट को बताया: ‘पारंपरिक बैटरियां भारी होती हैं और वे लचीली भी नहीं होतीं. हम एक ऐसा उपकरण बनाना चाहते थे, जो मानवीय हलचलों से ऐसी ऊर्जा उत्पन्न कर सके जिसका उपयोग पहनने योग्य उपकरणों (वेयरेबल डिवाइस) के लिए किया जा सके.’

स्थानीय मछली-विक्रेता इस अनुसंधान में अपना योगदान करने में सक्षम होने के बारे में पहले से ही उत्साहित हैं. उन्होंने कहा, ‘वे हमें बता रहे हैं कि वे मछली के अन्य ऐसे हिस्सों की पहचान करने में हमारी मदद कर सकते हैं जिन्हें भी इसी तरह के उपयोग में लाया जा सकता है.’


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90 एलईडी को जलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है फिश स्केल

कौर और उनकी टीम ने अपने शोध में रोहू मछली के स्केल का इस्तेमाल डाइइलेक्ट्रिक इन्सुलेटर परत के रूप में किया. इस टीम ने सबसे पहले उनके स्थानीय मछली बाजार से बिना किसी लागत के इन स्केल्स को इकट्ठा किया.

इन स्केल्स में विभिन्न प्रकार के जैव प्रोटीन होते हैं जैसे कि कोलेजन प्रोटीन, केराटिन और चिटिन. वे अत्यधिक इलेक्ट्रोपोजिटिव हैं, जिसका अर्थ है कि जब वे अन्य डाइइलेक्ट्रिक इन्सुलेटर के संपर्क में आते हैं, तो वे जल्दी से अपने इलेक्ट्रॉन्स को खो देते हैं, टीम ने इसी बात को अपने शोध पत्र में समझाया है .

टेंग को विकसित करने के लिए, इस टीम ने शल्कों की सतह से अवांछित कार्बनिक पदार्थों को हटाने के लिए फिश स्केल्स को डिस्टिल्ड वाटर और इथेनॉल से धोया. फिर धुले हुए स्केल्स को सुखाया गया और 1 वर्ग सेंटीमीटर के समान आकार में काटा गया. एक तांबे के टेप का उपयोग एक कंडक्टिंग इलेक्ट्रोड के रूप में किया गया था – इससे यह वह सतह बन गई जो वास्तव में उत्पन्न चार्ज (आवेश) को ग्रहण कर लेगी, फिर तांबे के टेप को 3 सेमी x 4 सेमी के आकार में काटा गया था और फिश स्केल्स को इलेक्ट्रोड के चिपकने वाली तरफ चिपकाया गया.

इस के परिणामस्वरुप बने उपकरण को रगड़ने या ठोकने पर बिजली उत्पन्न हो सकती है. इसके बाद यह टीम इसी उपकरण  का उपयोग करते हुए दो-दो वोल्ट के 90 एलईडी बल्बों को रौशन करने और एक कैलकुलेटर पर चालू करने में सक्षम थी.

टेंग डिवाइस होता क्या है?

यह एक छोटा सा उपकरण होता है जो घर्षण या गति (फ्रिक्शन या मोशन) से बिजली उत्पन्न कर सकता है. यह ट्राइबोइलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट का उपयोग करके काम करता है, जो आपसी संपर्क में आने वाले दो धातुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों का ऐसा स्थानांतरण होता है, जिसमे पहले वे आपस में संपर्क में आते हैं और फिर विलग हो जाते हैं.

जब दो अलग-अलग धातुओं को आपस में रगड़ा जाता है, तो वे एक स्थिर आवेश (स्टैटिक चार्ज) पैदा कर सकते हैं.

सिंह ने बताया कि, पहले, इस स्थैतिक आवेश (स्ट्रे चार्ज) को अवांछनीय माना जाता था. उन्होंने कहा, ‘हम नहीं चाहते कि फ्रिज या माइक्रोवेव जैसे हमारे उच्च-शक्ति वाले उपकरणों की सतह पर स्ट्रे चार्ज का निर्माण हो.’

हालांकि, साल 2012 में, अमेरिका में जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक समूह ने इस बात को प्रदर्शित किया कि इस प्रकार की ऊर्जा को टेंग द्वारा पैदा किया जा सकता है और इसे प्रयोग करने योग्य बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है.

किसी भी टेंग उपकरण में धातु  की दो परतें होती हैं जिन्हें एक दूसरे के खिलाफ रगड़ाव के लिए डिज़ाइन किया गया है. इनमें से एक ऐसी धातु से बना होता है जो इलेक्ट्रॉन्स को आसानी से छोड़ देता है, जबकि दूसरा ऐसी धातु से बना होता है जो इलेक्ट्रॉन्स को ग्रहण करता है.

जैसे ही दोनों परतें एक-दूसरे के खिलाफ रगड़ती हैं, तो इलेक्ट्रॉन एक परत से दूसरी परत में स्थानांतरित हो जाते हैं, जिससे चार्ज बनता है. यह चार्ज टेंग की सतह पर लगाए गए इलेक्ट्रोड द्वारा एकत्र किया जा सकता है, और छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बिजली प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है.

उनके एप्लीकेशंस बहुत व्यापक हैं. उनका उपयोग सभी प्रकार के पहनने योग्य उपकरणों – पेसमेकर उपकरणों और सेंसर को शक्ति प्रदान करने के लिए किया जा सकता है.

सिंह ने कहा कि दूर-दराज के इलाकों में, जहां बिजली उपलब्ध नहीं होती है, टेंग का उपयोग कई प्रकार के उपकरणों को चलाने के लिए किया जा सकता है.

यह टीम अपने डिवाइस को और बेहतर बनाने समेत पहनने योग्य उपकरणों में इसकी कार्यक्षमता की जांच करने के लिए काम करना जारी रखेगी. वे विभिन्न प्रकार के जानवरों और पौधों से मिलने वाले कचरे का भी पता लगा रहे हैं जिनका उपयोग ऐसे उपकरणों में किया जा सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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