नई दिल्ली: दो साल तक कोविड महामारी से लड़ने के बाद, नरेंद्र मोदी सरकार आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर एक बड़ा दांव लगा रही है, ताकि देशभर में बीमारियों के प्रकोप पर नज़र रखने में सहायता मिल सके.
एक निजी कंपनी द्वारा नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (एनसीडीसी) के साथ मिलकर विकसित किया रहा एक उपकरण, स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम ख़बरों को स्कैन करेगा, ताकि 33 बीमारियों का डेटाबेस तैयार किया जा सके- जिनमें से कुछ संभावित रूप से महामारी का रूप ले सकती हैं- जिनकी एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आडीएसपी) के अंतर्गत निगरानी की जाती है.
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक निजी कंपनी के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया हैं, जिसके तहत शुरू में दो उपकरण विकसित किए जाएंगे- एक बीमारियों के प्रकोप पर नज़र रखने के लिए, और दूसरा एक एआई-आधारित सिस्टम विकसित करने के लिए, जिससे भारत-विशिष्ट डेटाबेस पर आधारित एक्सरे रिपोर्ट्स की व्याख्या की जा सके. शुरुआती डेटाबेस 1,20,000 एक्सरे तस्वीरों का होगा, लेकिन उपकरण की प्रगति के साथ इनमें इज़ाफा होता जाएगा.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हम आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने जा रहे हैं. ये उसकी ओर पहला क़दम है. हमने कंपनी से कहा है कि वो इस प्रोजेक्ट को अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी के तहत अंजाम दे सकते हैं, लेकिन वो जो कुछ भी तैयार करेंगे, उसके बौद्धिक संपदा अधिकार सरकार के पास रहेंगे’.
अधिकारी ने समझाया, ‘फिलहाल प्रकोप की ख़बरों के लिए हम मीडिया की ख़बरें खंगालते हैं, लेकिन ये काम दिन में एक बार हाथ से किया जाता है, और अधिकतर ये अंग्रेज़ी और हिंदी मीडिया तक सीमित रहता है. लेकिन एआई टूल स्थानीय भाषा मीडिया को भी स्कैन करेगा. डेटा को आईडीएसपी की राज्य इकाइयों के साथ साझा किया जाएगा, जो फिर अपने कर्मियों को ज़मीनी स्तर पर आंकलन के लिए भेज सकती हैं’.
आईडीएसपी में एक केंद्रीय निगरानी यूनिट (सीएसयू), सभी राज्यों-यूटी मुख्यालयों में प्रदेश निगरानी यूनिट्स (एसएसयू), और देश के सभी ज़िलों में ज़िला निगरानी यूनिट्स (डीएसयू) शामिल होती हैं. आईडीएसपी का उद्देश्य ‘महामारी-संभावित बीमारियों के लिए, विकेंद्रित लैबोरेट्री-आधारित आईटी-समर्थ रोग निगरानी प्रणालियों को मज़बूत करना/बनाए रखना, बीमारियों की प्रवृत्ति की निगरानी करना, और प्रकोपों के शुरू में ही उनका पता लगाकर, प्रशिक्षित रैपिड रिस्पांस टीम के ज़रिए उनसे निपटना है’. ये 33 बीमारियों पर नज़र रखता है, जिन्हें एआई टूल में फीड किया जा रहा है.
मीडिया स्कैन करने वाले इस एआई टूल के अल्पविकसित संस्करण में, जिसका प्रदर्शन दिप्रिंट ने देखा था, न सिर्फ देश भर में कोविड के प्रकोप, बल्कि सड़क दुर्घटनाओं, जलने के घावों, और मुंह के कैंसर का भी डेटा है, जिनमें से किसी में भी सामान्य अर्थों में महामारी की संभावना नहीं है.
कंपनी के एक अधिकारी ने- जो निर्माण भवन के एक कमरे में अपना काम शुरू कर चुकी है, जहां स्वास्थ्य मंत्रालय का दफ्तर है- समझाया कि ऐसा इसलिए है कि शुरू में ये उपकरण, स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम ख़बरों का मिलान कर रहा है.
ऊपर हवाला दिए गए अधिकारी ने कहा, ‘हमने इसमें कुछ संकेत शब्द डाले हैं, जिन्हें सिस्टम की इन 33 बीमारियों के साथ जोड़ा जा सकता है. ऐसा इसलिए है कि शुरू में प्रकोप किसी और शक्ल में सामने आ सकता है, और बीमारी की शिनाख्त बाद में जाकर हो सकती है’.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘मसलन, अगर आप भी आईडीएसपी के अलर्ट्स को देखें, तो एक ख़बर अवैध शराब त्रासदि पर है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसका संबंध वायरल हेपिटाइटिस से हो सकता है, अवैध शराब से नहीं, जिसकी जांच की जाने की ज़रूरत है’.
एनसीडीसी के पुराने लोगों का कहना है, कि 2004 में जब आईडीएसपी का गठन हुआ था, तो उसका एक उद्देश्य वास्तविक समय रोग निगरानी था, लेकिन चूंकि मीडिया की पहुंच बढ़ गई है, इसलिए ज़मीनी स्तर से आने वाली ख़बरें, निगरानी का एक अहम हिस्सा बन गई हैं.
उन्होंने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया कि कोविड ने दिखा दिया, कि कुछ अख़बारों और चैनलों की मैनुअल स्कैनिंग मात्र की बजाय, उनकी करीब से जांच किए जाने की ज़रूरत है.
भारत-विशिष्ट एक्सरे यंत्र
निजी कंपनी एम्स के डॉक्टरों के साथ मिलकर, एक और यंत्र विकसित करने पर भी काम कर रही है, जो एक्सरे रिपोर्ट्स की व्याख्या करेगा.
वरिष्ठ स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे सभी उपकरण जो फिलहाल उपलब्ध हैं, वो अमेरिका या यूके के डेटाबेस पर आधारित हैं. हम ऐसी चीज़ चाहते थे जो ख़ासकर भारत के लिए हो’.
उपकरण को फिलहाल इस तरह विकसित किया जा रहा है, कि एक्सरे में वो 14 मापदंडों को देखेगा, जैसे इनफिल्ट्रेशन, एंफीसीमा, नॉड्यूल, निमोनिया और मासेज़. इस स्टेज पर, टूल से हुई डायग्नोसिस की एक रेडियोलॉजिस्ट द्वारा दोबारा जांच की जा रही है, और उपकरण को और सही बनाने के लिए, उसमें अतिरिक्त बदलाव किए जा रहे हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘जैसे जैसे डेटाबेस बढ़ता जाएगा, उपकरण भी ज़्यादा सक्षम हो जाएगा, लेकिन जिस तरह से हमने उसे डिज़ाइन किया है, उसका इस्तेमाल हमेशा मानव हस्तक्षेप के साथ किया जाएगा’.
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