नई दिल्ली: जब से केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के विजयराघवन ने पिछले साल मई में ही ये कहकर खलबली मचा दी थी, कि भारत में तीसरी लहर का आना लाज़मी है, तब से इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रहीं थीं, कि इस लहर का भारत में बच्चों पर क्या असर पड़ेगा.
अभी तक की ख़बरों से अंदाज़ा होता है कि अवयस्कों में संक्रमण के मामलों में कोई चिंताजनक वृद्धि देखने में नहीं आई है. जिनके टेस्ट पॉज़िटिव आए हैं उन्हें भी ज़्यादा चिकित्सा देखभाल की ज़रूरत नहीं पड़ी है.
भारत में 15-18 आयु वर्ग के किशोरों के लिए टीकाकरण इस महीने 3 जनवरी से शुरू हुआ, ठीक उसी के साथ जब तीसरी लहर आ रही थी. आज तक, इस आयु वर्ग में वैक्सीन की 3,73,04,693 ख़ुराकें दी जा चुकी हैं. कुल लक्षित आबादी क़रीब सात करोड़ है. भारत की 135 करोड़ आबादी में क़रीब 45 करोड़ बच्चे हैं. फिलहाल अवयस्कों को केवल कोवैक्सीन दी जा रही है.
हालांकि अभी तक ओमिक्रॉन की मार बच्चों पर ज़्यादा नहीं पड़ी है, लेकिन बच्चों में कोविड के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर चिंता जताई जा रही है, ख़ासकर मल्टी सिस्टम इनफ्लेमेटरी सिण्ड्रोम इन चिल्ड्रन (एमआईएस-सी) को लेकर, जो आवश्यक अंगों को प्रभावित कर सकती है.
दिप्रिंट ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और नीति आयोग से, फोन तथा व्हाट्सएप संदेशों के ज़रिए संपर्क साधकर, बच्चों में संक्रमण के मामलों का प्रतिशत जानना चाहा, लेकिन ख़बर के छपने तक उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी.
फोर्टिस गुड़गांव के प्रिंसिपल डायरेक्टर और बाल रोग विभाग के हेड, डॉ कृष्ण चुग ने कहा, ‘जब बच्चों की रिपोर्ट पॉज़िटिव आती है, तो हम अमूमन लक्षणों का उपचार करते हैं. बच्चों के अंदर वायरस को लक्ष्य बनाने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता. अगर बुख़ार होता है तो हम पैरासिटेमॉल देते हैं. उल्टी आने पर हम एक-दो दिन दवा देते हैं, जिसके बाद वो ठीक हो जाती है’.
उन्होंने आगे कहा,‘अगर दस्त आते हैं तो ओआरएस दे दीजिए. अगर लगातार खांसी रहती है और बच्चा बहुत छोटा नहीं है, तो हम कफ सिरप दे देते हैं, लेकिन छोटे बच्चों में नहीं’.
चुग ने बताया कि उन्होंने ‘बहती नाक के लिए दवाएं इस्तेमाल की हैं, लेकिन उससे आगे कुछ नहीं लिखा है’.
पेरेंट्स भाप देना चाहते हैं, जिससे फायदा हो सकता है, लेकिन हमने देखा है कि भाप के फायदे से ज़्यादा गर्म पानी से दुर्घटनाएं हो जाती हैं. लॉज़ेंजेज़ काम नहीं करतीं, उनकी ज़रूरत नहीं है. मल्टी विटामिन्स वग़ैरह के बारे में भी कोई ऐसे सबूत नहीं हैं कि वो काम करती हैं. कोई एंटीबायोटिक्स नहीं, कोई आइवरमेक्टिन नहीं, कोई क्लोरोक्वीन नहीं. हमने वो सब पहली लहर में इस्तेमाल कर लिए हैं, लेकिन अब हमें मालूम है कि वे काम नहीं करते. किसी ख़ास भोजन की भी ज़रूरत नहीं है, बस संतुलित आहार पर बने रहिए’.
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बीमारी की छोटी अवधि
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ प्रवीण मेहता, जो इंडियन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के पूर्व महासचिव भी हैं, ने कहा, ‘अधिकांश बच्चे तीन से चार दिन में ठीक हो जा रहे हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘सबसे आम शिकायत गले में दर्द और बहती हुई नाक की है. एक-दो दिन के लिए थोड़ी खांसी या बुख़ार हो सकता है, लेकिन स्वाद या गंध में कोई बदलाव नहीं आता. वायरस का ये वेरिएंट फेफड़ों को प्रभावित नहीं करता, इसलिए सांस फूलने या निमोनिया जैसे निचले श्वसन मार्ग संक्रमण जैसे लक्षण सामने नहीं आते’.
ओमिक्रॉन लहर के दौरान दक्षिण अफ्रीका में एक ख़ास बात ये रही है, कि बीमारी की अवधि छोटी रही है.
पिछले महीने दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में, साउथ अफ्रीका मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉ एंजलीक कोटज़ी ने कहा, कि उनके अनुभव में बच्चे अकसर गले में ख़राश व सर दर्द की शिकायत करते हैं, और उन्हें हल्का बुख़ार होता है तथा नब्ज़ की रफ्तार बढ़ी हुई होती है. लेकिन, उन्होंने आगे कहा, कि तीन दिन के अंदर वो बाहर खेलने की अपनी नियमित दिनचर्या पर वापस आ जाते हैं.
दीर्घकालिक प्रभावों की चिंता
बच्चों को लेकर असली चिंता फौरी लक्षणों की नहीं, बल्कि दीर्घ-कालिक परिणामों की होती है ख़ासकर एमआईएस-सी की.
अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने एमआईएस-सी को इस तरह परिभाषित किया है ‘ऐसी स्थिति जहां शरीर के अलग अलग हिस्सों में सूजन हो सकती है, जिनमें दिल, फेफड़े, गुर्दे, मस्तिष्क, त्वचा,आंखें या जठरांत्र संबंधी अंग शामिल हो सकते हैं. अभी तक हमें मालूम नहीं है कि एमआईएस-सी किस कारण से होता है’.
उसमें आगे कहा गया है, ‘लेकिन, हम जानते हैं कि एमआईएस-सी वाले बहुत से बच्चों में वो वायरस था जिससे कोविड-19 होता है, या वो किसी ऐसे व्यक्ति के क़रीब थे जिसे कोविड-19 था. एमआईएस-सी गंभीर रूप ले सकती है, ये घातक भी हो सकती है, लेकिन ज़्यादातर बच्चे जिनमें ये पाई गई, चिकित्सा देखभाल के बाद बेहतर हो गए हैं.’
नेफ्रॉन क्लीनिक के अध्यक्ष और बाल रोग नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ संजीव बगई के अनुसार, एमआईएस-सी को विकसित होने में दो से चार हफ्ते तक लग सकते हैं.
बगई ने कहा, ‘इसमें दिल, तंत्रिकाएं, फेफड़े और आंतें शामिल होती हैं, इसलिए मृत्यु दर अक्सर काफी ऊंची हो सकती है. इसके गंभीर दीर्घकालिक परिणाम भी हो सकते हैं. यही कारण है कि अगर बच्चे पात्र हैं, तो उन्हें टीका लगवाना बहुत ज़रूरी है’.
एम्स में बाल रोग की पूर्व प्रोफेसर और इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में बाल रोग न्यूरोलॉजिस्ट, डॉ वीणा कालरा ने कहा कि पहली और दूसरी लहर के विपरीत- जो मुख्य रूप से वायरस के अल्फा और डेल्टा वेरिएंट्स से आई थी- मौजूदा लहर में एमआईएस-सी के मरीज़ सामने नहीं आए हैं.
उन्होंने कहा, ‘पहली लहर में हम एमआईएस-सी के बहुत मरीज़ देखते थे, और फिर डेल्टा लहर में भी. लेकिन इस मौजूदा ओमिक्रॉन लहर में, हमें वो नहीं दिख रहे हैं. हो सकता है कि उसके लिए अभी बहुत जल्दी हो, इसलिए हम निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकते, हो सकता अंत में कुछ दिख जाएं. लेकिन ओमिक्रॉन के उछाल में बड़े लोग भी ज़्यादा बीमार नहीं हो रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन एमआईएस-सी का इससे ताल्लुक़ नहीं है, कि कोविड में बच्चा कितना बीमार होता है. ये किसी एक बच्चे में असामान्य प्रतिक्रिया होती है.’
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