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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थपुरुषों के मुकाबले भारतीय महिलाओं की हृदय और ट्रांसप्लांट कराने की पहुंच बेहद कम: आंकड़े

पुरुषों के मुकाबले भारतीय महिलाओं की हृदय और ट्रांसप्लांट कराने की पहुंच बेहद कम: आंकड़े

महिलाएं सबसे बड़ी अंगदाता हैं लेकिन पुरुषों की तुलना में जीवन रक्षक सर्जरी करवाने की उनकी संभावना कम होती है. डॉक्टरों का कहना है कि उत्तर भारत में लिंग से संबंधी यह अंतर अधिक स्पष्ट रूप से दिखता है.

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नई दिल्ली: भारत में कई ऐसी चीजें हैं जिनसे महिलाएं सिर्फ अपने लिंग के कारण वंचित रह जाती हैं. अगर कुछ प्रमुख अस्पतालों से प्राप्त आंकड़ों पर विश्वास करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि सर्जरी कराने की समान पहुंच उन चीजों में से ही एक है.

दिप्रिंट ने इनमें से कुछ अस्पतालों के आंकड़ों को तीन प्रमुख सर्जिकल स्पेशलिटीज – कार्डियोथोरेसिक, अंग प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट सर्जरी) और आर्थोपेडिक (हड्डियों से जुड़ी) सर्जरी – जिनके ऑपरेशन / पुनर्वास में काफी अधिक लागत आती है – के बारे में जानकारी के लिए एक्सेस किया.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि इनमें से दो स्पेशलिटीज – कार्डियोथोरेसिक और ट्रांसप्लांट सर्जरी – में पुरुषों के पक्ष में काफी अधिक लिंग विषमता है. यह भी तब है जब डॉक्टर्स का कहना हैं इन सर्जरी की आवश्यकता वाले पुरुष या महिला की संभावना लगभग एक सामान ही है.

हालांकि, देश के दक्षिणी हिस्से में यह संख्या थोड़ी कम विषम दिखाई देती है. डॉक्टरों का दावा है कि सर्जरी में लिंग के आधार पर अंतर उन सामाजिक वास्तविकताओं का प्रतिबिंब है, जो देश के विभिन्न हिस्सों में अलग हो सकती हैं.

कुल मिलाकर, एक और प्रवृत्ति यह भी है की ऑर्गन डोनर्स में अधिकतर संख्या महिलाओं की होती है. उदाहरण के लिए, दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, साकेत के एक प्रतिनिधि ने दिप्रिंट को बताया कि 10 में से सात डोनर्स महिलाएं थीं, जबकि बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के एक प्रवक्ता ने महिला और पुरुष अंग दाताओं का अनुपात 90:10 बताया है.

हालांकि, तीसरी स्पेशलिटी – ऑर्थोपेडिक सर्जरी – में उल्टी तरह से विषमता दिखती है क्योंकि महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस की बीमारी अधिक होती है. इस रोग की शुरुआत भी आमतौर पर महिलाओं में पहले होती है, जो जोड़ों के जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की आवश्यकता को जन्म देती है.

कार्डियोथोरेसिक और ट्रांसप्लांट सर्जरी के मामले में लिंग असमानता पर चिकित्सा जगत के विशेषज्ञ कुछ सामाजिक कारकों की ओर इशारा करते हैं.

नेशनल ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन एंड टिश्यू ऑर्गनाइजेशन (एनटीटीओ में एडवाइजर, ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन, और दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट, रीनल ट्रांसप्लांट, डॉ हर्ष जौहरी ने कहा, ‘इसमें विषमता है लेकिन हमें निंदक नजरिया रखे बिना सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं को भी स्वीकार करना होगा. कड़वी सच्चाई यह है कि इस तरह की सर्जरी में पैसे खर्च होते हैं और हर किसी के पास स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं होती है. इसलिए, रोजी-रोटी कमाने वाले को हमेशा प्राथमिकता मिलती है.’

उन्होंने आगे कहा कि जब भी अंग दान करने वालों की बात आती है तो आमतौर पर परिवार की महिलाएं ही आगे आती हैं. वे कहते हैं, ‘विभिन्न कारणों से यह आमतौर पर पत्नी ही होती है जो अंग दाता बनती है. अंग दान करने के लिए आगे आने वाले पतियों की संख्या बहुत कम हुआ करती थी लेकिन अब ऐसा इसकी संख्या ज्यादा सम्मानजनक हो गई है.‘

डॉ जौहरी के अनुसार पिछले कुछ समय के साथ सर्जरी कराने वाली महिलाओं के अनुपात में भी सुधार हुआ है और इसके लिए उन्होंने जटिल सर्जरी के लिए धन देने के लिए इच्छुक एनजीओ क्षेत्र के आगमन, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के तहत सहायता तक आसान पहुंच और स्वास्थ्य बीमा के कवरेज में आई में वृद्धि को श्रेय दिया.

उन्होंने कहा, ‘पहले, अंग प्राप्त करने वालों में लगभग 10 प्रतिशत ही महिलाएं होती थीं. यह संख्या अब लगभग 20-25 प्रतिशत तक पहुंच गई है.’


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सर्जरी में व्यापक लैंगिक असमानता

मैक्स साकेत के प्रवक्ता के अनुसार, सभी अंग प्रत्यारोपणों में से 80 प्रतिशत पुरुषों पर किए जाते हैं. हालांकि, ऐसी 70 फीसदी सर्जरी के मामले में डोनर कोई महिला ही होती है.

अस्पताल के प्रतिनिधि ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘यहां तक कि जिन 20 फीसदी महिलाओं का ट्रांसप्लांट किया जा रहा है, उनमें भी कोई महिला ही डोनर भी होती है.’ कार्डियक सर्जरी के लिए, इस अस्पताल में होने वाली सर्जरी का अनुपात पुरुषों के पक्ष में 65:35 का है, हालांकि हृदय रोगों की घटनाओं में कोई खास लैंगिक अंतर नहीं है.

मैक्स साकेत के इसी प्रतिनिधि ने कहा कि जोड़ों और कूल्हे (हिप) की रिप्लेसमेंट सर्जरी के लिए यह अनुपात – 60 महिला :40 पुरुष – उल्टा है. वे कहते हैं, ‘ऐसा इसलिए है क्योंकि महिलाओं को आर्थोपेडिक (हड्डी से जुड़ी) समस्याएं अधिक होती हैं.’

बीएलके मैक्स अस्पताल में भी आंकड़ें मोटे तौर पर से इसी प्रकार की प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हैं.

इस अस्पताल के प्रवक्ता ने कहा, पुरुष और महिलाओं के लिए अंग प्रत्यारोपण 70:30 के अनुपात में हो रहे हैं और डोनर्स का अनुपात 10:90 का है. जिन 30 फीसदी मामलों में महिलाएं अंग प्राप्तकर्ता हैं. उनके मामलों में भी ज्यादातर डोनर कोई महिला ही होती है. जॉइंट और हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी में अनुपात 65 (महिला): 35 (पुरुष) है.’

इस अस्पताल में होने वाली हर तीन कार्डियक सर्जरी में से दो किसी मर्द पर की जाती हैं. प्रवक्ता ने कहा, ‘महिलाओं को इसी तरह की या इससे भी अधिक जटिल हृदय संबंधी समस्याएं होती हैं, फिर भी संख्या में गैर बराबरी नजर आती है. इसके अलावा, महिलाओं की छोटी-क्षमता वाली धमनियों के कारण उनके हृदय की सर्जरी अक्सर अधिक जटिल हो जाती है.’

पिछले वित्तीय वर्ष के लिए दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि इस अस्पताल में की गई कुल कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी में से 66 प्रतिशत पुरुषों के लिए और 34 प्रतिशत महिलाओं के लिए थीं.

किडनी ट्रांसप्लांट कराने वालों में 76 फीसदी पुरुष और 23 फीसदी महिलाएं थीं. इस अवधि में किए गए लीवर ट्रांसप्लांट के मामले में 62 फीसदी सर्जरी पुरुषों के लिए और 38 फीसदी महिलाओं के लिए थीं.

यहां भी ऑर्थोपेडिक सर्जरी की संख्याओं ने एक अलग ही तस्वीर पेश की. घुटनों की रिप्लेसमेंट सर्जरी में से 25 फीसदी पुरुषों पर और 75 फीसदी महिलाओं पर की गईं. हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के मामले में पुरुषों पर 58 फीसदी और महिलाओं पर 42 फीसदी सर्जरियां की गईं.

एक अन्य अपवाद वैसी प्रत्यारोपण सर्जरी है जिसमें शवों से अंग दान शामिल होता है और यहां लैंगिक विषमता बहुत स्पष्ट नहीं है.

कोलकाता के मेडिका सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के मुख्य कार्डियक सर्जन और वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. कुणाल सरकार ने दिप्रिंट को बताया कि वहां हुए 250 कार्डियक ट्रांसप्लांट में से लिंग विभाजन पुरुषों के पक्ष में लगभग 65:35 का है.

यकृत और गुर्दा प्रत्यारोपण, जिनके अधिकांश प्रत्यारोपण वाले मामलों में जीवित डोनर शामिल होते हैं, के विपरीत हृदय प्रत्यारोपण में विशेष रूप से शव से मिले अंग शामिल होते हैं.


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‘सोच में फर्क’

सर्जरी के मामलों में इस लैंगिक अंतर के बारे में पूछे जाने पर, अपोलो की सलाहकार हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ वनिता अरोड़ा ने दिप्रिंट को बताया कि वे इसके लिए आंशिक रूप से ‘महिलाओं की सोच’ और वे अपने स्वास्थ्य को कैसे देखती हैं, इस बात को जिम्मेदार ठहराती हैं.

उन्होंने बताया कि जहां कुछ हृदय रोग पुरुषों में अधिक होते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो महिलाओं के मामले में अधिक होते हैं.

डॉ अरोड़ा ने कहा, ‘लेकिन मेरे अपने मेडिसिनल प्रैक्टिस में मैं हर दिन यह देखतीं हूं कि अगर मैं किसी व्यक्ति से किसी प्रोसीजर (ऑपरेशन) के लिए कहती हूं, तो 10 में से नौ इसके लिए वापस आ जाते हैं. परिवार की ओर से अधिक तात्कालिकता दिखाई जाती है और रोगी स्वयं भी अधिक इच्छुक होता है. लेकिन अगर मैं किसी औरत से ऐसी ही बात कहूं, तो 10 में से आठ महिलाएं ऐसा नहीं करेंगी. वे कहेंगी कि मैं ठीक हो जाऊंगीं, यह सिर्फ गैस ही है. ‘

इसके अलावा, उन्होंने कहा कि परिवारों में महिलाओं के स्वास्थ्य पर समान महत्व नहीं दिया जाता है. वे कहती हैं, ‘पारिवारिक स्तर पर भी, एक महिला के स्वास्थ्य पर पैसा खर्च करने को नजरअंदाज कर दिया जाता है.’

इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि हार्ट एशिया मैग्जिन (जिसका प्रकाशन साल 2019 में बंद हो गया था) में प्रकाशित एक 2016 का शोध पात्र (पेपर) उत्तर भारत में अपने परिवारों के स्वास्थ्य की चाह वाले व्यवहार में बच्चों के प्रति लिंग पूर्वाग्रह की ओर इशारा करता है.

इस अध्ययन में स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत चलाए गए एक केंद्र में मुफ्त हृदय उपचार के लिए रेफर किए गए बाल रोगियों को शामिल किया गया था. अध्ययन किए गए 519 बच्चों में से केवल 37.6 प्रतिशत लड़कियां थीं, जबकि लिंग  के आधार पर बच्चों में जन्मजात हृदय से जुड़ी बीमार लगभग समान होती है.

क्षेत्रीय विभाजन?

डॉक्टरों का दावा है कि जब प्रत्यारोपण और कार्डियक सर्जरी की बात आती है तो दक्षिण भारत में लैंगिक अंतर देश के उत्तरी हिस्से की तुलना में कम है.

हैदराबाद के केआईएमएस अस्पताल में प्रत्यारोपण विभाग के प्रमुख डॉ रविचंद सी सिद्धाचारी ने कहा, ‘निश्चित रूप से दक्षिण-उत्तर के बीच एक विभाजन है.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘देश के इस हिस्से में, बेटे या भाइयों के गुर्दे दान करने के लिए आगे आने के बहुत सारे उदाहरण हैं, इसलिए मैं कहूंगा कि मेरे डोनर्स में से केवल 30-35 प्रतिशत ही महिलाएं हैं लेकिन हर किसी को यह भी समझना होगा कि नियमों के सख्त होने के बाद, केवल पति या पत्नी या बच्चों को ही ‘फर्स्ट डिग्री’ (पहले दर्जे का) रिश्तेदार माना जाता है, इसलिए अगर कोई पत्नी आगे आती है तो समिति (जो जीवित दाता से मिले अंग के प्रत्यारोपण को मंजूरी देती है) से अनुमति लेना आमतौर पर आसान होता है.‘

लीवर प्रत्यारोपण के रोगियों के मामले में, डॉ सिद्धाचारी ने कहा कि उनके चिकित्स्कीय अभ्यास में, लगभग 60-65 प्रतिशत अंग प्राप्तकर्ता पुरुष थे, लेकिन इसका मुख्य कारण शराब का सेवन था.

उन्होंने कहा, ‘हर किसी को यह समझने की जरूरत है कि शराब का उपयोग पुरुषों में बहुत अधिक होता है और यह  हमारे जिगर से जुड़ी बीमारियों में एक महत्वपूर्ण योगदान करता है.’

हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर में महिलाएं परेशान करने वाली कुछ मनोवृत्तियां से घिरी हैं.

केरल के एर्नाकुलम में स्थित अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर में कार्डियक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ प्रवीण के वर्मा ने कहा कि कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग से गुजरने वाले उनके मरीजों में लगभग 25 प्रतिशत ही महिलाएं होती हैं.

उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर हमारे चिकित्स्कीय अभ्यास के दौरान हम देखते हैं कि महिलाएं, ‘परिवार पहले आता है’ वाले उनके रवैये सहित, विभिन्न कारणों से पुरुषों की तुलना में बहुत बाद में सर्जरी का विकल्प चुनती हैं. लेकिन हमारे लिए यह कहना मुश्किल है कि क्या सिर्फ महिलाएं ही सर्जरी करवाने से चूक रही हैं, क्योंकि हम केवल इस समस्या का छोटा सा सिरा ही देख पाते हैं. हम सिर्फ ऐसे लोगों को देखते हैं जो वास्तव में सर्जरी से गुजरते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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