scorecardresearch
Saturday, 23 November, 2024
होमहेल्थआत्मनिर्भरता की ओर भारत: दवाएं बनाने के लिए आयात होने वाला 35 तरह का कच्चा माल अब खुद बना रहा

आत्मनिर्भरता की ओर भारत: दवाएं बनाने के लिए आयात होने वाला 35 तरह का कच्चा माल अब खुद बना रहा

रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया का कहना है कि यह कदम भारत को प्रमुख दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा. अभी तक अधिकांश कच्चा माल चीन से आयात किया जाता था.

Text Size:

नई दिल्ली: रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने कहा है कि भारत अभी तक जिन 53 दवाओं के कच्चे माल के आयात पर निर्भर था, उनमें से 35 अब खुद ही निर्मित करने लगा है.

मंडाविया ने नई दिल्ली में संवाददाताओं से कहा, ‘उत्पादन पर प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट) उत्पादन के लिए 32 नए संयंत्र स्थापित किए गए हैं और अब 53 में से 35 एपीआई का उत्पादन देश में ही शुरू हो गया है. योजना के तहत सरकार आयात पर निर्भरता घटाने के लिए वित्तीय स्तर पर व्यवहार्यता संबंधी अंतर की भरपाई कर रही है.’

भारत लगभग 66 प्रतिशत एपीआई आयात चीन से करता है.

एपीआई, जिसे बल्कि ड्रग्स भी कहा जाता है, दवाओं के निर्माण में उपयोग किया जाने वाला प्रमुख कच्चा माल है. उदाहरण के तौर पर क्रोसीन के लिए पैरासिटामोल एपीआई है.

भारतीय दवा निर्माता अपनी कुल थोक दवाओं का लगभग 70 प्रतिशत चीन से आयात करते हैं. सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि वित्त वर्ष 2018-19 में देश की कंपनियों ने चीन से 2.4 बिलियन डॉलर की बल्क ड्रग्स और इंटरमीडिएट का आयात किया था.

एंटीबायोटिक्स, एचआईवी-रोधी मेडिसिन जैसी आवश्यक दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग में एपीआई का इस्तेमाल होता है और भारत में 53 एपीआई की कुल खपत का 90 प्रतिशत हिस्सा विदेशों से आता है.


यह भी पढ़ें: कोविड के कारण TB के मामलों की रिपोर्टिंग बड़े पैमाने पर घटी, मोदी सरकार डोर-टू-डोर अभियान चलाएगी


चीन पर निर्भरता

भारत के लिए अपने विशाल क्षमता वाले दवा उद्योग के लिए कच्चे माल को लेकर चीन पर निर्भरता सालों से चिंता का विषय रही है. इसे लेकर बीजिंग के पास नई दिल्ली से सौदेबाजी करने की क्षमता होने को लेकर सवाल उठते रहे हैं.

2017 के डोकलाम गतिरोध के मद्देनजर ये चिंताएं और भी गंभीर हो गईं, जब द्विपक्षीय संबंध काफी बिगड़ गए थे. 2020 के शुरुआती महीनों में चीन में कोविड लॉकडाउन—जिसने भारत में दवाओं के कच्चे माल की कमी की आशंकाओं को और बढ़ाया—और फिर लद्दाख में उपजे गतिरोध ने देश को एपीआई में जल्द से जल्द आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए प्रेरित किया.

2021 में वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि पीएलआई योजनाएं ‘आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में सरकार के प्रयासों की आधारशिला हैं.’

बयान में कहा गया था, ‘इसका उद्देश्य घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना और इस क्षेत्र में वर्ल्ड चैंपियन बनना है. इसके पीछे रणनीति आधार वर्ष के दौरान भारत में निर्मित उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहन देना है. इनको खासकर इस तरह से तैयार किया गया है कि उभरते और रणनीतिक क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिले, सस्ते आयात पर अंकुश लगे और आयात बिल घटाया जा सका, घरेलू स्तर पर विनिर्मित वस्तुओं की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता सुधरे और घरेलू क्षमता और निर्यात को बढ़ावा मिले.’

अब तक 15,000 करोड़ रुपये प्रदान किए

एपीआई के लिए पीएलआई योजना के तहत पात्र निर्माताओं को 41 उपयोगी उत्पाद, जो 53 एपीआई को कवर करते हैं, का निर्माण करने के लिए छह साल की अवधि के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाना है. मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि यह योजना पिछले साल अधिसूचित होने के बाद से इसके तहत लगभग 15,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.

मंत्रालय सूत्रों ने यह भी कहा कि आवश्यक दवाओं की लागत में हाल में 10 फीसदी वृद्धि की घोषणा किए जाने में कुछ भी असामान्य नहीं था.

एक सूत्र ने कहा, ‘आवश्यक दवाओं की कीमतें थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) से जुड़ी हैं. अगर डब्ल्यूपीआई नीचे जाता है, तो उनमें भी कमी आ सकती है. इस साल डब्ल्यूपीआई में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और संशोधन में एपीआई की कीमतें भी बढ़ी हैं.


यह भी पढ़ें: हार्ट और लंग्स के मरीजों के लिए MGM हेल्थ केयर ने AIMS के साथ मिलकर लॉन्च किया ट्रांसप्लांट सेंटर


 

share & View comments