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Sunday, 3 November, 2024
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दुनिया को आखिरकार मलेरिया का एक टीका मिला और इसका भारत से है कनेक्शन : भारत बॉयोटेक

मलावी, घाना और केन्या में पायलट परियोजनाओं में, गंभीर बीमारी की घटनाओं में काफी कमी देखे जाने के बाद, WHO ने RTS,S को अपनी मंज़ूरी दे दी.

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नई दिल्ली: तीन दशकों तक चले वैज्ञानिक प्रयास उस समय फलीभूत हो गए, जब बुधवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने किसी भी परजीवी रोग के खिलाफ, दुनिया के पहले टीके को अपनी मंज़ूरी दे दी.

आरटीएसएस (ट्रेड नाम मॉक्विरिक्स), जिसे ग्लेक्सोस्मिथक्लीन (जीएसके) ने विकसित किया है, मलेरिया से ग्रसित बच्चों में गंभीर बीमारी के ख़तरे को काफी कम कर देता है.

भारत के लिए, ये ख़बर दो मायनों में अच्छी है- देश में मलेरिया का भारी दबाव; और ये तथ्य कि 2029 तक भारतीय कंपनी भारत बायोटेक, इस वैक्सीन की एकमात्र ग्लोबल निर्माता बन जाएगी.

इस साल जनवरी में, एक अंतर्राष्ट्रीय ग़ैर-मुनाफा संस्था पाथ, जो स्वास्थ्य समस्याओं पर देशों और संस्थाओं के साथ मिलकर काम करती है, जीएसके और भारत बायोटेक इंडिया लि. (बीबीआईएल) ने, मलेरिया वैक्सीन के लिए एक उत्पाद हस्तांतरण समझौते पर दस्तख़त किए जाने का ऐलान किया.

हालांकि इस वैक्सीन को मच्छर नियंत्रण के मौजूदा उपायों के साथ ही इस्तेमाल किया जाना है जैसे नेट्स, रिपेलेंट्स आदि- काफी हद तक वैसे ही, जैसे कोविड का टीका लगे लोगों में मास्क का इस्तेमाल होता है.

2019 से इसे मलावी, केन्या और घाना में, एक पायलट परियोजना के तहत इस्तेमाल किया जाता रहा है, जहां 800,000 बच्चों को इसे पहले ही दिया जा चुका है.

हालांकि, डब्ल्यूएचओ ने उप सहारा अफ्रीका के बच्चों में इसे इस्तेमाल किए जाने की सिफारिश की है, जहां परजीवी प्लाज़्मोडियम फैल्सिपेरम अनियंत्रित तौर पर मलेरिया फैलाता है, लेकिन भारत में भी मलेरिया को बोझ काफी अधिक है. अंतर्राष्ट्रीय मलेरिया रिपोर्ट्स में अक्सर इशारा किया गया है कि भारत में मलेरिया पर भारत के वास्तविक अधिकारिक आंकड़े, बड़ी समस्या की एक छोटी सी झलक मात्र हैं.

इस साल, भारत में जुलाई तक मलेरिया के कुल 64,520 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 44,391 प्लाज़्मोडियम फैल्सिपेरम के मामले थे. इस अवधि में इस बीमारी के कारण कुल 35 मौतें दर्ज की गईं.


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वैक्सीन के बारे में

ये वैक्सीन तीन वैश्विक वित्त पोषण संगठनों की वित्तीय सहायता से विकसित की गई है- वैक्सीन गठबंधन गावी; एड्स, ट्यूबरकुलोसिस और मलेरिया से लड़ने के लिए ग्लोबल फंड, और यूनिटएड.

पाथ की मलेरिया वैक्सीन इनीशिएटिव (एमवीआई) की उपलब्ध कराई जानकारी के अनुसार आरटीएसएस का गठन 1987 में जीएसके लैबोरेटरियों में काम करने वाले वैज्ञानिकों ने किया था.

इसमें कहा गया है, ‘…(इसका) उद्देश्य मलेरिया की पहली स्टेज के खिलाफ बचाव के लिए इम्यून सिस्टम को चालू करना है, जब मच्छर के काटने से प्लाज़्मोडियम फैल्सिपेरम पैरेसाइट इंसान के रक्त प्रवाह में दाख़िल हो जाता है, और लिवर के सेल्स को संक्रमित कर देता है. वैक्सीन को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि ये परजीवी को लिवर को संक्रमित करने से रोक देती है, जहां वो परिपक्व होकर अपनी संख्या बढ़ाता है, और फिर से रक्त प्रवाह में दाख़िल होकर, रेड ब्लड सेल्स को संक्रमित कर देता है, जिसके नतीजे में बीमारी के लक्षण दिखने लगते हैं’.

ट्रायल के नतीजों से संकेत मिलता है कि वैक्सीन से गंभीर मलेरिया की घटनाओं में 30 प्रतिशत की कमी हो सकती है, जब इसे ऐसे इलाक़ों में शुरू किया जाए, जहां चिकित्सा सुविधाएं सुलभ हैं और लोग आमतौर पर, कीटनाशक छिड़की हुई मच्छरदानियां इस्तेमाल करते हैं.

WHO की सिफारिश

देशों को निजी स्तर पर फैसले लेने होंगे कि वो वैक्सीन शुरू करना चाहते हैं कि नहीं, और उसके लिए वित्त पोषण व्यवस्था भी उन्हें ख़ुद ही करनी होगी.

डब्ल्यूएचओ ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में प्लाज़्मोडियम फैल्सिपेरम मलेरिया की रोकथाम के लिए आरटीएसएस के इस्तेमाल की सिफारिश करता है, जहां विश्व स्वास्थ्य इकाई के मानकों के अनुसार संक्रमण की दर मध्यम से ऊंची होती है.

डब्ल्यूएचओ ने कहा, ‘मलेरिया बीमारी और इसके बोझ को कम करने के लिए 5 महीने की उम्र के बाद से बच्चों को, आरटीएसएस/एएस01 मलेरिया वैक्सीन की 4 ख़ुराकें दी जानी चाहिए’.

इसके अनुमानों के मुताबिक़ हर साल, पांच साल से कम उम्र के 260,000 से अधिक अफ्रीकी बच्चे मलेरिया से मरते हैं. यही वजह है कि डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने, वैक्सीन की मंज़ूरी को एक ‘ऐतिहासिक’ घटना क़रार दिया है.

एक बयान में उन्होंने कहा, ‘ये एक ऐतिहासिक पल है. बच्चों के लिए मलेरिया की एक लंबे समय से प्रतीक्षित वैक्सीन, विज्ञान, बाल स्वास्थ्य और मलेरिया नियंत्रण के लिए एक महत्वपूर्ण खोज है. मलेरिया रोकथाम के मौजूदा उपकरणों के ऊपर इस वैक्सीन को इस्तेमाल करने से हर साल हज़ारों छोटी ज़िंदगियां बचाई जा सकती हैं’.

भारत से कनेक्शन

इसी साल भारत बायोटेक ने, जो देशी कोविड वैक्सीन कोवैक्सीन का भी निर्माता है, जीएसके और पाथ के साथ एक क़रार किया, जिसके तहत वो आरटीएसएस के लिए एंटिजेन तैयार करेगी, जो व्यापक इस्तेमाल की सिफारिश के बाद, जीएसके की हर वर्ष 1.5 करोड़ वैक्सीन डोज़ उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता का हिस्सा होगा.

डब्ल्यूएचओ की मंज़ूरी से पहले एमवीआई ने एक बयान में कहा, ‘बीबीआईएल के साथ ये समझौता, जीएसके, पाथ, और डब्ल्यूएचओ के प्रयासों का नतीजा है, जिनका उद्देश्य व्यापक इस्तेमाल के लिए डब्ल्यूएचओ की नीति अनुशंसा, और निरंतर फंडिंग की प्रतिबद्धता की सूरत में, वैक्सीन की दीर्घ-कालिक निरंतर सप्लाई सुनिश्चित करना है’.

उसमें आगे कहा गया, ‘ये जीएसके की उन मौजूदा प्रतिबद्धताओं के अलावा है, जिनमें पायलट में इस्तेमाल के लिए आरटीएसएस/एएस01ई की एक करोड़ ख़ुराकें दान की जाएंगी और अगर डब्ल्यूएचओ ने व्यापक इस्तेमाल के लिए इस उत्पाद की सिफारिश कर दी, तो 2028 तक हर साल 1.5 करोड़ ख़ुराकें सप्लाई की जाएंगी. अपेक्षा की जाती है कि 2029 तक, बीबीआईएल वैक्सीन की एकमात्र सप्लायर होगी और जीएसके उन्हें सहायक एएस01ई सप्लाई करेगी’.

भारत की मलेरिया समस्या सिर्फ एक ‘छोटी सी झलक’

भारत सदियों से मलेरिया से जूझता आ रहा है- ब्रिटिश राज में यहां आने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी/ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों के लिए, ये उनका सबसे बड़ा डर हुआ करता था.

2017 में, विश्व मलेरिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में मलेरिया के सिर्फ 8 प्रतिशत मामलों का पता चल पाता है.

लेकिन, विश्व मलेरिया रिपोर्ट (डब्ल्यूएमआर) 2020 में कहा गया, कि ज़्यादा मलेरिया वाले देशों में सिर्फ भारत ऐसा है, जहां 2018 के मुकाबले 2019 में 17.6 प्रतिशत की कमी देखी गई है

2017 की अपेक्षा 2018 में वार्षिक परजीवी घटनाओं में 27.6 प्रतिशत की कमी आई, जबकि 2018 के मुकाबले 2019 में ये कमी 18.4 प्रतिशत रही. 2012 के बाद से भारत की एपीआई एक से कम बनी रही है.

रिपोर्ट पर पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के एक बयान में कहा गया, ‘भारत में क्षेत्रवार मामलों में भी सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है, जो लगभग 2 करोड़ से घटकर, 60 लाख के क़रीब रह गई है. 2000 से 2019 के बीच, मलेरिया मामलों में गिरावट का प्रतिशत 71.8 रहा, जबकि मौतों में गिरावट 73.9 प्रतिशत रही’.

पीआईबी विज्ञप्ति में आगे कहा गया, ‘भारत में मलेरिया रोगों की संख्या और मलेरिया मौतों में, 2000 (20,31,790 मामले, 932 मौतें) से 2019 (3,38,494 मामले, 77 मौतें) के बीच, क्रमश: 83.34% और 92% की गिरावट आई. जिसके चलते सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों (2000 से 2019 के बीच मामलों में 50-75% की कमी) का उद्देश्य 6 हासिल कर लिया गया’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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