चेन्नई: भारत में टीबी से बचाव के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बैसिलस कैलमेट-गुएरिन (बीसीजी) वैक्सीन बुजुर्ग कोविड मरीजों के इम्यून रिस्पांस में तेजी से बदलाव— जो आमतौर पर उच्च मृत्युदर का एक बड़ा कारण है— को नियंत्रित करके बीमारी के असर को घटा सकता है. राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान (एनआईआरटी) की तरफ से किए जा रहे एक ट्रायल में यह बात सामने आई है.
अभी दुनियाभर में उपयोग में आने वाले सभी कोविड टीके डिसीज मॉडिफाइंग हैं न कि डिसीज प्रिवेंटिंग.
इस अध्ययन में शामिल एनआईएच-इंटरनेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन रिसर्च के वैज्ञानिक निदेशक डॉ. सुभाष बाबू ने कहा, ‘अपने अध्ययन में हमने पाया कि बीसीजी बुजुर्गों में कोविड के घातक नतीजों की वजह बनने वाले इम्यून रिस्पांस में बदलाव की प्रक्रिया को धीमी कर देती है.’
उन्होंने कहा, ‘हम यकीन के साथ नहीं कह सकते कि यह कैसे होता है क्योंकि इस टीके को इम्यून सिस्टम उत्तेजित करने के लिए जाना जाता है.’
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अंतर्गत आने वाले एनआईआरटी का यह अध्ययन कोविड की चपेट में आने वाले 60 से 95 वर्ष की आयु के लोगों पर बीसीजी वैक्सीन के असर का आकलन करने से जुड़ा है. इसका सैंपल साइज 1,450 है.
क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया के पास जमा कराए गए अध्ययन के नतीजों में कहा गया है, ‘दुनियाभर में सार्स-कोव2 वायरल संक्रमण तेजी से फैल रहा है. भारत में यह घातक महामारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है. इससे बुजुर्ग लोगों, खासकर डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और अन्य असाध्य बीमारियों से पीड़ितों की मौत का जोखिम ज्यादा होता है इसलिए, ऐसे लोगों का जीवन बचाने के लिए मरीजों की निरंतर देखभाल संबंधी रणनीतियां बनाने की सख्त जरूरत है.’
बयान में आगे कहा गया है कि बीसीजी टीबी के खिलाफ एक टीका है, ‘इन-विट्रो और इन-विवो अध्ययनों में श्वसन तंत्र के अन्य संक्रमणों के खिलाफ गैर-विशिष्ट सुरक्षात्मक प्रभावों के साथ यह मॉर्बिडिटी और मृत्यु दर में खासी कमी लाने वाला नजर आया है.’
‘बच्चों और वयस्कों में श्वसन तंत्र के संक्रमण को घटाने, प्रायोगिक मॉडल में एंटीवायरल प्रभाव डालने और वायरल संक्रमण के प्रायोगिक मानव मॉडल में विरमिया घटाने की बीसीजी की क्षमता के आधार पर यह अवधारणा बनी है कि बीसीजी टीकाकरण आंशिक रूप से उच्च जोखिम वाले बुजुर्गों में मृत्यु दर कम करने में मददगार साबित होगा.’
बाबू ने बताया कि एनआईआरटी के ट्रायल के परिणाम अभी प्रकाशित होने की प्रक्रिया में हैं, इसलिए गोपनीय हैं. लेकिन ये ‘नतीजे उत्साहजनक रहे हैं.’
ट्रायल के नतीजे मई 2022 में द लैंसेट में प्रकाशित दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट के विपरीत हैं जिसमें कहा गया था कि बीसीजी वैक्सीन जब स्वास्थ्य कर्मियों को दी गई तो कोविड के घातक असर में कोई कमी नजर नहीं आई.
यह भी पढ़ें: ‘नारदमुनि, शुक्राचार्य’- शिवसेना के हर 3 में से 1 बागी नेता ने संजय राउत पर पार्टी के विभाजन का आरोप लगाया
साइटोकिन उत्तेजना पर काबू पाने में मददगार
बाबू के मुताबिक, उनके विभाग के कई अध्ययन— जिसमें कुछ प्रकाशित हो चुके हैं— ने खतरनाक साइटोकिन उत्तेजना को शांत करने में बीसीजी की एक निश्चित भूमिका साबित की है जो अक्सर कोविड के कारण मौत का एक बड़ा कारण बनते हैं.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में दिसंबर 2020 में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि ‘साइटोकिन स्टॉर्म और साइटोकिन रिलीज सिंड्रोम जीवन के लिए खतरा साबित होने वाले घातक सिंड्रोम हैं, जिसमें सर्कुलेटिंग साइटोकिन्स और प्रतिरक्षा-कोशिका अतिसक्रियता का उच्च स्तर शामिल हैं जिसकी वजह विभिन्न थेरेपी, पैथोजेन्स, कैंसर, ऑटोइम्यून स्थितियों और मोनोजेनिक डिसऑर्डर हो सकते हैं.
आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने 2021 में साइंस एडवांस में प्रकाशित एक अध्ययन में दर्ज किया था कि इस हाइपरइम्यून प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में बीसीजी वैक्सीन की अहम भूमिका होती है.
उन्होंने बताया था कि उनके ‘नतीजों से पता चलता है कि बीसीजी टीकाकरण के परिणामस्वरूप टाइप 1, 2, और 17 और अन्य प्रिनफ्लेमेटरी साइटोकिन्स और टाइप 1 इंटरफेरॉन के प्लाज्मा स्तर में कमी आई है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘बीसीजी टीकाकरण की वजह से सीसी, सीएक्ससी केमोकाइन्स, एपीपी, एमएमपी और ग्रोथ फैक्टर्स के प्लाज्मा स्तर में कमी आई है. उपरोक्त मापदंडों पर प्लाज्मा का स्तर टीकाकरण करा चुके लोगों में गैर-टीकाकरण वाले लोगों की तुलना में काफी कम पाया गया.’
‘इस प्रकार, हमारा अध्ययन बीसीजी टीकाकरण के इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुणों को प्रदर्शित करता है और पैथोजेनिक इन्फ्लेमेटरी रिस्पांस में कमी लाकर यह गैर-विशिष्ट टीकाकरण के जरिये कोविड-19 के खिलाफ संभावित उपयोगिता का सुझाव देता है.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: NCERT ने जलवायु संकट, भारतीय मानसून के चैपटर्स हटाए, TACC की फिर से विचार करने की मांग