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Saturday, 21 December, 2024
होमहेल्थविशेषज्ञों ने कहा- COVID के दोबारा संक्रमण पर ICMR का कट-ऑफ मनमाना, मामले का पता लगाने में चूक की संभावना

विशेषज्ञों ने कहा- COVID के दोबारा संक्रमण पर ICMR का कट-ऑफ मनमाना, मामले का पता लगाने में चूक की संभावना

वायरस और महामारी संबंधी वैज्ञानिकों का कहना है कि मनमाने ढंग से किसी कट-ऑफ का इस्तेमाल करने के बजाये बेहतर यह होगा कि कोविड पुन: संक्रमण के किसी मामले का पता लगाने के लिए तकनीक की सहायता ली जाए.

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नई दिल्ली :इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की तरफ से कोविड-19 पुन: संक्रमण के मामलों की पहचान के लिए 100 दिन का कट-ऑफ मानदंड घोषित किए जाने को विशेषज्ञों ने ‘मनमाना’ करार दिया है.

आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने इस हफ्ते के शुरू कहा था कि ‘हम 100 दिन की कट-ऑफ अवधि रख रहे हैं क्योंकि तब तक एंटीबॉडी का असर रहता है.’

भार्गव की टिप्पणी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के यह कहने के कुछ दिनों बाद आई थी कि कोविड पुन: संक्रमण के कुछ कथित मामले गलत तरीके से दर्ज कर लिए गए थे.

हालांकि, दिप्रिंट ने इस मामले में जिन वायरस और महामारी विज्ञान विशेषज्ञों से बात की उनका कहना है कि आईसीएमआर का मानदंड केवल ‘एंटीबॉडीज (वायरस से लड़ने वाली कोशिकाओं) की अनुमानित जीवन अवधि’ पर आधारित है, और कट-ऑफ निर्धारित किया जाना कई मामलों का पता लगाने से चूकने का कारण बन सकता है.

जाने-मान विषाणु विज्ञानी डॉ. शाहिद जमील ने दिप्रिंट को बताया, ‘कुछ लोगों में यह (एंटीबॉडी) तीव्र हो सकता है और दूसरों के लिए इसमें ज्यादा समय लग सकता है. इसलिए मनमाने ढंग से कट-ऑफ का इस्तेमाल करने के बजाये बेहतर होगा कि पुन: संक्रमण के मामले का पता लगाने लिए तकनीक का सहारा लिया जाए.’

हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि कोविड को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया पर इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ने वाला है.

आईसीएमआर के प्रवक्ता डॉ. रजनीकांत श्रीवास्तव ने कहा कि पुन: संक्रमण कई कारकों पर निर्भर करता है.

उन्होंने कहा, ‘यदि आप संक्रमित हैं, लेकिन एंटीबॉडी विकसित नहीं होती हैं तो आपको पुन: संक्रमण हो सकता है. लेकिन अगर आपमें कोविड के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो रही हैं तो दोबारा संक्रमण के दौरान यह आपकी रक्षा कर सकती हैं. फिर आप कैसे तय करेंगे कि एंटीबॉडीज हैं या नहीं?’


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श्रीवास्तव ने कहा कि चूंकि बहुत तरह के पुन: संक्रमण होते हैं इसलिए आईसीएमआर ने जीनोमिक अंतरों का पता लगाने के लिए किसी अध्ययन की योजना नहीं बनाई है.

पीछे मुड़कर देखना

विश्व स्तर पर पुन: संक्रमण का पहला मामला अगस्त में हांगकांग में सामने आया था, जिसमें मरीज के एक बार संक्रमित होने के बाद साढ़े चार महीने का समय लगा था.

इस हफ्ते के शुरू में द लांसेट इन्फेक्शियस डिजीज ने अमेरिका में पहले पुष्ट मामले की जानकारी दी जिसमें 25 वर्षीय एक व्यक्ति पहली बार संक्रमण से उबरने के लगभग 50 दिन बाद पुन: इसकी चपेट में आ गया था.

आईसीएमआर की मंगलवार को हुई प्रेस ब्रीफिंग से पहले भारत में ‘पुन: संक्रमण’ के केवल कुछ ही मामले दर्ज किए गए थे. इसमें अगस्त में तेलंगाना में सामने आए दो मामले और पिछले माह में मुंबई के चार मामले शामिल थे.

आईसीएमआर की कट-ऑफ सीमा के अनुसार, केवल तीन मामलों -मुंबई के दो और हैदराबाद का एक- को ही कोविड पुन: संक्रमण की श्रेणी में रखा जा सकता है.

15 सितंबर को नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च पेपर का प्रि-प्रिंट अपलोड किया है जिसमें नोएडा में दो स्वास्थ्य कर्मियों के पुन: संक्रमण की चपेट में आने की पुष्टि की गई है.

इस तरह के अधिकांश मामलों में अंतर 19 दिनों से लेकर 100 दिनों के बीच रहा है.

अगस्त में बेंगलुरु का फोर्टिस अस्पताल पुन: संक्रमण के एक मामले का गवाह बना था. 27 वर्षीय महिला मरीज को पहले पॉजीटिव टेस्ट के बाद 6 जुलाई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. टेस्ट निगेटिव आने के बाद उसे 24 जुलाई को छुट्टी दी गई थी.

लेकिन अगस्त के अंतिम हफ्ते में महिला में एक बार फिर हल्के लक्षण दिखे और वह टेस्ट में पॉजीटिव निकली जो कि आईसीएमआर की 100-दिन की कट-ऑफ सीमा से कम है.

अस्पताल के संक्रामक रोग विभाग में सलाहकार डॉ. प्रतीक पाटिल ने कहा, ‘आईसीएमआर का 100 दिन का कट-ऑफ मनमाना है और उन अध्ययनों पर आधारित है जिनमें कहा गया है कि जब किसी में एक बार कोविड संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो जाती हैं तो लगभग 3 महीने तक रहती है.’

हालांकि, उन्होंने कहा कि यह औसत है और घट या बढ़ सकता है.

जून में नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया था कि कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी केवल दो से तीन महीने तक रहती हैं.

जब उस मरीज के बारे में पूछा गया जिसे दूसरी बार पॉजिटिव पाया गया था तो पाटिल ने कहा कि दूसरी बार में सीटी या साइकिल थ्रेशोल्ड वैल्यू, जो आरटी-पीसीआर डिवाइस के जरिये नोवेल कोरोनावायरस का पता लगाने के लिए निर्धारित चक्र की संख्या है, कम नहीं होगी.

उन्होंने आगे कहा, ‘एक तर्क हो सकता है कि प्रारंभिक संक्रमण जड़ से खत्म न होना इसका कारण हो सकता है, लेकिन आमतौर पर ऐसी स्थिति में सीटी वैल्यू 52 दिनों (पहले और दूसरे आरटी-पीसीआर परीक्षणों के बीच का समय) के बाद इतनी कम नहीं हो सकती है. इसलिए इसे क्लिनिकल तौर पर पुन: संक्रमण कहना ही उचित होगा.’

इसी तरह के एक मामले में जुलाई में दिल्ली के एक पुलिसकर्मी को दूसरी बार टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया था, पहली बार संक्रमण से उबरने के करीब 45 दिनों के भीतर.

उस पुलिस कर्मी का इलाज कर रहे अपोलो अस्पताल के श्वसन और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में एक वरिष्ठ सलाहकार डॉ. राजेश चावला ने कहा, ‘पहली बार तो लक्षण नजर आए थे, जबकि दूसरी बार कोई लक्षण नहीं थे.’

आईसीएमआर की 100 दिन की सीमा के बारे में उन्होंने कहा, ‘यह लक्षणों के अनुसार थोड़ा मुश्किल है, यह पुन: संक्रमण का मामला था लेकिन निश्चित रूप से इस मामले में अंतर 100 दिनों से कम था.’

’पहली और दूसरी बार वायरस क्रमबद्ध करें’

इस सारी बहस के बीच मुद्दा यह है कि शुरुआती संक्रमण के पूरी तरह ठीक न होने के असर और नए संक्रमण के बीच क्या अंतर है. आरटी-पीसीआर टेस्ट दोनों के बीच अंतर नहीं कर सकता है.

जमील ने कहा, ‘पुन: संक्रमण का पता लगाने का एकमात्र पुष्ट तरीका वायरस को पहली और दूसरी बार में क्रमबद्ध करना है.’

वायरस के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की व्याख्या करते हुए वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ विषाणु विज्ञानी और पूर्व प्रोफेसर टी. जैकब जॉन ने कहा, ‘मजबूत स्टरलाइजिंग प्रतिरक्षा दो से चार सप्ताह के बीच रहती है…’

उन्होंने आगे कहा, ‘यदि आप इसे दोगुना करते हैं, तो यह 50 दिन हो जाएगी. इसके अलावा यह सोचना उचित नहीं है कि आपकी प्रतिरक्षा अपेक्षाकृत मजबूत नहीं है. इसलिए यदि आप 50 दिनों के बाद किसी को संक्रमित पाते हैं तो इसे पुन: संक्रमण माना जाना चाहिए, संरक्षण मिलने के लिहाज से 100 दिन की अवधि बहुत ज्यादा है.’

जॉन ने आईसीएमआर के मानदंडों को ‘एक वैज्ञानिक सवाल का समाजशास्त्रीय जवाब’ करार दिया जिसमें सटीक उत्तर की कोई जानकारी नहीं है, और लोगों में भय की भावना से बचने के लिए ऐसा किया जा रहा है.

‘कोई बड़ा प्रभाव नहीं’

हालांकि, विशेषज्ञों ने कहा कि ‘मनमानी’ कट-ऑफ सीमा कोविड को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया पर कोई बहुत बड़ा असर नहीं डालेगी.

पुन: संक्रमण के मामले अब भी दुर्लभ होने पर जोर देते हुए जमील ने कहा, ‘दुनियाभर में कोविड के लगभग 3.85 करोड़ पुष्ट मामलों के बावजूद पुन: संक्रमण के मात्र कुछ ही केस सामने आए हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘संक्रमण का मतलब बीमारी नहीं है. यहां तक कि अगर एंटीबॉडी खत्म हो जाती हैं और कोई फिर से संक्रमित हो जाता है, तो टी सेल प्रतिरक्षा इस वायरस के कारण होने वाली बीमारी से बचाएगी. और इसी आधार पर ज्यादातर टीके भी काम करते हैं- वे संक्रमण नहीं रोकते हैं, लेकिन बीमारी को खत्म करते हैं.’

जॉन ने कहा कि चिंता की कोई वजह नहीं है क्योंकि अगर दूसरी बार कोई लक्षण नहीं हैं तो वायरस ज्यादा घातक ‘हमला’ नहीं करता है.

उन्होंने कहा, ‘लोग कितनी बीमारियों में दूसरी बार संक्रमण के बारे में सोचते हैं. हम एक ऐसा घटनाक्रम देख रहे है जो मुझे लगता है कि वास्तविक है लेकिन यह एक दुर्लभ घटनाक्रम है.’

हालांकि, फोर्टिस अस्पताल के डॉ. पाटिल ने चिंता जताई.

उन्होंने कहा, ‘हम कई मामलों का पता लगाने से सिर्फ इसलिए चूक सकते हैं क्योंकि एक निश्चित कट-ऑफ है. मुझे लगता है कि हर मामले का मूल्यांकन क्लीनिकल डाटा के आधार पर किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक नई बीमारी है और हम अभी इसके बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हैं.’

आईसीएमआर में महामारी विज्ञान और संचारी रोगों के पूर्व प्रमुख ललित कांत ने भी कहा, ‘यदि किसी व्यक्ति के शरीर में फिर से वही संक्रमण हो रहा है तो हमें उसके बारे में जानने के लिए मापदंडों को विकसित करने की जरूरत है.’

(अनीशा बेदी के इनपुट्स के साथ)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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