बेंगलुरू: भारत में कोविड महामारी की दूसरी ज़बर्दस्त लहर के बीच, बहुत से लोग, जिनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो कोविड-19 से उबर चुके हैं, या उनके टेस्ट पॉज़िटिव निकले हैं, अब इस बीमारी का टीका लगवाने के लिए तैयार हैं.
तो, ठीक हो गए व्यक्ति को टीका कब लगवाना चाहिए? अगर किसी व्यक्ति को वैक्सीन की दो ख़ुराकों के बीच, कोविड हो जाए तो क्या होगा? अगर किसी का दूसरा डोज़ छूट जाए तो क्या होगा?
दिप्रिंट इसके और दूसरे बहुत से सवालों के जवाब दे रहा है, जो टीकाकरण, कोविड रिकवरी, और शरीर के इम्यून रेस्पॉन्स से जुड़े हैं.
पॉज़िटिव टेस्ट आने के बाद मुझे टीका कब लगवाना चाहिए?
अमेरिका के सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की सिफारिश है, कि ठीक होने के फौरन बाद, व्यक्ति को टीका लगवा लेना चाहिए, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) कहता है, कि व्यक्ति को छह महीने तक इंतज़ार करना चाहिए, क्योंकि इंसानी शरीर के अंदर, क़ुदरती एंटीबॉडीज़ तब तक बने रहते हैं.
भारत में, ज़्यादातर डॉक्टर ठीक होने और टीका लगवाने के बीच, मनमाने अंतराल की सिफारिश करते हैं, जो आमतौर पर, एक से तीन महीने के बीच होता है.
ठीक होने के बाद इंतज़ार करने से, न सिर्फ उन लोगों को अपनी पहली ख़ुराक लेने का मौक़ा मिल जाता है, जो प्रभावित नहीं हैं, बल्कि इम्यून रेस्पॉन्स भी बेहतर हो जाता है, ये कहना है क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज, वेलोर की प्रतिरक्षा विज्ञानी डॉ गगनदीप कांग का.
कांग ने कहा, ‘कोविड होना वैक्सीन लगवाने जैसा है’. उन्होंने समझाया, ‘हम सिफारिश करते हैं कि ठीक हो जाने के बाद, वैक्सीन लगवाने के लिए चार से आठ हफ्ते इंतज़ार करें, क्योंकि आपके अंदर क़ुदरती एंटीबॉडीज़ होते हैं. इसके अलावा, आपके शरीर में अभी भी संक्रमण की प्रतिक्रिया चल रही होगी, इसलिए ऐसे समय में टीका लगवाना, वैक्सीन की बरबादी होगी’.
उन्होंने आगे कहा कि ज़्यादा समझदारी इसी में है, कि शरीर को संक्रमण से पूरी तरह उबरने दिया जाए, और क़ुदरती इम्यूनिटी बनने दी जाए, इसके बाद ही इम्यून रेस्पॉन्स को और अधिक बढ़ाने के लिए, टीका लगवाना चाहिए.
पॉज़िटिव रहने के दौरान यदि मैं टीका लगवा लूं, तो क्या होगा?
जब हम संक्रमित होते हैं, तो पहली एंटीबॉडी जो इंसान के शरीर में बनती है, वो है आईजीएम एंचीबॉडी. इन एंटीबॉडीज़ का बनना संक्रमण के एक हफ्ते के बाद शुरू होता है, तीन हफ्ते में चरम पर पहुंचता है, और उसके बाद तेज़ी से गिरता है.
संक्रमण के क़रीब तीन हफ्ते के बाद, आईजीजी एंटीबॉडीज़ बनने शुरू होते हैं, जो सामान्य कम होते हैं, और विशेष रूप से शरीर को संक्रमित कर रहे पैथोजंस के लिए होते हैं. इन अत्यंत महत्वपूर्ण एंटीबॉडीज़ पर, ज़्यादा नज़र रखने की ज़रूरत होती है, और इनकी संख्या संक्रमण के चार से आठ हफ्ते के बीच बढ़ती है. उसके बाद इनकी संख्या धीरे धीरे घटने लगती है.
आईजीजी एंटीबॉडी ही वो रेस्पॉन्स है, जो कोविड-19 के लिए मायने रखता है, और सभी वैक्सीन्स का दूसरा डोज़, इसी एंटीबॉडी रेस्पॉन्स को बढ़ावा देता है.
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डॉ कांग का कहना है, ‘फिलहाल हमारे पास कोई ऐसे सबूत नहीं हैं, जिनके आधार पर हम कह सकें, कि संक्रमित होने पर टीका लगवाना, अच्छा है या ख़राब, चाहे बात इम्यून रेस्पॉन्स की हो, या किसी सुरक्षा मुद्दे की’.
लेकिन, ठीक हो जाने के बाद टीका लगवाना, किसी बूस्टर शॉट की तरह होता है, जिससे सुरक्षा मज़बूत होती है.
टीके की दो ख़ुराकों के बीच अगर मुझे कोविड हो जाए, तो क्या होगा?
ऐसे अधिकांश लोगों के लिए, बीमारी के हल्की या मध्यम रहने की संभावना होती है, और ये इसपर निर्भर करता है, कि पहला टीका लगने के कितने दिन के बाद संक्रमण हुआ है.
अगर संक्रमण और बीमारी पहली ख़ुराक लेने के, दो से तीन हफ्तों के बीच हुई है, तो वैक्सीन के कोई ख़ास कारगर होने की संभावना नहीं है, और उससे संक्रमण के व्यवहार में, किसी बदलाव की अपेक्षा नहीं की जा सकती. लेकिन, यदि कोई व्यक्ति अपनी पहली ख़ुराक के, चार हफ्ते के बाद पॉज़िटिव होता है, तो इस बात की काफी संभावना है, कि उनकी बीमारी हल्की रहेगी.
एक बार शरीर संक्रमित हो जाए, बीमार हो जाए, और एंटीबॉडीज़ बनानी शुरू कर दे, तो एक बार फिर ये ऐसा है, जैसे टीका लगवा लेना.
कांग कहती हैं कि सैद्धांतिक रूप से, इसी प्रोटोकोल का पालन कीजिए. ‘ठीक हो जाने के बाद चार हफ्ते तक इंतज़ार कीजिए, उसके बाद ही दूसरा डोज़ लीजिए’.
अगर मैं दूसरी ख़ुराक में देर कर दूं,तो क्या होगा? क्या मुझे पहली ख़ुराक फिर से लेनी होगी?
ट्रायल्स से संकेत मिला है, कि सिस्टम में एंटीबॉडीज़ के ऊंचे स्तर को हासिल करने के लिए, बूस्टर शॉट के लिए एक सही समय होता है. एस्ट्रा-ज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड वैक्सीन कोविशील्ड के लिए ये 12 हफ्ते है, जबकि देशी कोवैक्सीन के लिए छह हफ्ते के अंतराल की सिफारिश की जाती है.
लेकिन कांग आश्वस्त करती हैं, कि दूसरी ख़ुराक का छूट जाना, कोई चिंता की बात नहीं है. ये बस एंडीबॉडीज़ में बढ़ावे को स्थगित कर देता है, और इससे सुरक्षा में कोई कमी नहीं आती. निर्धारित अंतराल के छूट जाने से, पहली ख़ुराक को दोहराने की ज़रूरत नहीं होती.
कांग कहती हैं, ‘अगर आप अपना पहला डोज़ ले लेते हैं, और क़रीब दो साल तक दूसरा डोज़ नहीं लेते, तो शायद आपको अपना पहला डोज़ दोहराना पड़ सकता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर ये कुछ हफ्तों की बात है, तो आपको यक़ीनन चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. अगर कुछ महीनों की भी बात है, तो भी ज़्यादा संभावना यही है, कि आपको चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है’.
क्या गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं वैक्सीन ले सकती हैं?
कांग कहती हैं कि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए, टीका लगवाना पूरी तरह सुरक्षित है. हालांकि कोविड वैक्सीन्स के लिए कोई ट्रायल्स नहीं हुए हैं, अतीत में बड़े पैमाने पर चलाए गए टीकाकरण अभियानों में, गर्भवती और नई मांएं शामिल रही हैं. इसके अलावा, दुनिया भर में गर्भवती स्वास्थ्यकर्मियों की एक बड़ी संख्या, पहले ही टीके लगवा चुकी है.
वैक्सीन (या संक्रमण) से पैदा हुए एंटीबॉडीज़, गर्भनाल के रास्ते भ्रूण तक भी पहुंच सकते हैं. सिर्फ आईजीजी एंटीबॉडीज़ ही उससे पास हो सकते हैं, और सबसे ज़्यादा ट्रांसफर, दूसरी और तीसरी तिमाही में होता है. बच्चों में मौजूद मां के एंटीबॉडीज़, उन्हें चार से छह महीने तक बचाते हैं, जिसके बाद उनके अपने इम्यून सिस्टम की क्षमता तेज़ी से बढ़ जाती है.
एंटीबॉडीज़ मां के दूध से भी बच्चे तक पहुंचते हैं, लेकिन वो आईजीए होते हैं, जो केवल आंतों की सुरक्षा करते हैं, श्वांस नली की नहीं- शरीर का वो हिस्सा, जो कोरोनावायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित होता है.
अगर मुझे कुछ एलर्जी हैं, तो क्या मैं टीका ले सकता हूं? क्या कोई ऐसी स्थितियां हैं, जिनमें टीका नहीं लेना चाहिए?
कांग का कहना है कि केवल उन्हीं लोगों को वैक्सीन नहीं लेना चाहिए, जो पहले ही उसे ले चुके हैं, और जिन्हें उसका गंभीर रिएक्शन हुआ है.
फिलहाल ऐसे कोई सबूत नहीं हैं, जो भोजन या दवा की किसी भी तरह की एलर्जी का पता लगाकर, उसे वैक्सीन से जोड़ते हों. ये वैक्सीन ऐसे सब लोगों के लिए सुरक्षित है, जिन्हें किसी भी तरह के खाने, दवा, या पेंसिलिन जैसी एंटीबायोटिक्स से एलर्जी होती है.
जिन मरीज़ों की इम्यूनिटी कमज़ोर होती है, और जिनकी कीमोथिरेपी चल रही हो, वो भी वैक्सीन लेने के लिए सुरक्षित हैं. लेकिन, चूंकि उनकी इम्यूनिटी दबी हुई होती है, इसलिए उनके अंदर इम्यून रेस्पॉन्स, दूसरे लोगों की अपेक्षा कम रह सकता है.
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क्या टीका लगवाने के बाद एंटीबॉडी जांच काम करती है?
आईजीएम और आईजीजी, बांधने वाले एंटीबॉडीज़ होते हैं, चूंकि वो अपने वाई आकार के ढांचे को, वायरस के प्रोटीन्स से बांध लेता है, और अपने मैक्रोफेज सेल्स के ज़रिए उसे तबाह कर देता है. ये अपने क़ुदरती किलर सेल्स से भी, वायरस से संक्रमित हुए सेल्स को नष्ट करा सकते हैं. ये सिर्फ निशानदेही का काम करते हैं, और वायरस की संक्रामकता में दख़लअंदाज़ी नहीं करते.
एंबॉडीज़ का एक और ग्रुप होता है, जिसे न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडीज़ कहते हैं. ये भी वायरस के प्रोटीन्स के साथ बंध जाते हैं, लेकिन ये वायरस की मेज़बान सेल्स को संक्रमित करने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकते हैं, चूंकि वायरस अपने ढांचे में बदलाव नहीं कर पाता, जो अंदर दाख़िल होने के लिए ज़रूरी होते हैं.
फिलहाल हमें मालूम नहीं है, कि आईजीजी और न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडीज़ के बीच कौन सा एंटीबॉडी, वायरस से सुरक्षित रखने में ज़्यादा अहम रोल अदा करता है, लेकिन एक्सपर्ट्स को लगता है, कि संभावित रूप से ये न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडीज़ हैं.
लेकिन, कांग का कहना है कि हम यक़ीन के साथ नहीं कह सकते, और हमें मालूम भी नहीं है, कि वो किस स्तर की सुरक्षा प्रदान करते हैं. इसकी पहचान करने के लिए, हमें ब्रेकथ्रू संक्रमण का अध्ययन करना होगा (ऐसे लोग जिन्हें टीका लगने के बाद भी संक्रमण हुआ).
आज बाज़ार में होने वाले एंटीबॉडीज़ टेस्ट में, आईजीएम और आईजीजी एंटीबॉडीज़ को नापा जाता है, जो हमेशा उस समय पैदा होते हैं, जब इम्यून सिस्टम चालू होता है- चाहे वो क़ुदरती संक्रमण के बाद हो, या टीके के बाद हो. हमारे पास कोई मानक न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी टेस्ट नहीं है.
कांग कहती हैं, ‘इसलिए टीका लगने के बाद एंटीबॉडी टेस्ट्स सही चीज़ को नहीं देखते’. वो आगे कहती हैं, ‘व्यवसायिक जांच सिर्फ बांधने वाले एंटीबॉडी टेस्ट्स की होती है. अगर वो आपको बताते हैं तो सिर्फ ये, कि आप संक्रमित हैं या आपको टीका लग चुका है, वो आपको ये नहीं बताते कि आप सुरक्षित हैं या नहीं’.
कोविड टीके के कितने समय बाद मैं दूसरे टीके लगवा सकता हूं?
कांग का कहना है कि हमारे इम्यून सिस्टम, कई इनफेक्शंस को संभालने में काफी सक्षम होते हैं, और आसानी से उस स्थिति में नहीं पहुंचते, कि एक ही संक्रमण से थक जाएं.
वो आगे कहती हैं कि हमारा ‘उद्देश्य इम्यून रेस्पॉन्स को अधिक से अधिक बढ़ाना है. आम दिशा-निर्देश ये हैं कि अगर दो वैक्सीन्स दी जानी हैं- ख़ासकर लाइव वैक्सीन्स- तो उन्हें एक साथ दिया जाए, या उनके बीच चार हफ्ते का अंतर हो’.
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