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Saturday, 21 December, 2024
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भारत में इंसान से जानवरों में टीबी फैलने का चला पता, ICMR ने पालतू जानवरों की जांच की योजना बनाई

घरेलू पशुओं की टीबी की जांच के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस ने यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ से फंडिंग की मांग की है.

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चेन्नई: तमिलनाडु के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस (एनआईआरटी) के शोधकर्ताओं को इंसान से जानवरों में टीबी संक्रमण फैलने के मामले मिले हैं. चेन्नई में घरेलू पशुओं की जांच करने के लिए संस्थान ने यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ से फंडिंग की मांग की है.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अंतर्गत आने वाले एनआईआरटी में डी वैज्ञानिक डॉ. पी. कन्नन ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने चेन्नई के आसपास के चार खेतों में लगभग 162 मवेशियों की जांच की और उनमें से 20 में टीबी के लक्षण मिले. इन पशुओं की देखभाल करने वालों की भी टीबी रिपोर्ट पॉजिटिव थी. यह पहला उदाहरण है जहां हमें टीबी के रिवर्स ज़ूनोसिस के प्रमाण मिले हैं.’

ज़ूनोसिस एक जानवर से इंसान में फैलने वाली बीमारी है. टीबी के जीवाणु जूनोसिस के मामले यूनाइटेड किंगडम में ही पाए गए थे. अभी तक भारत में ऐसे किसी भी मामले की पुष्टि नहीं हुई थी. लेकिन अब, जब भारत में भी खेत में काम करने वाले जानवरों में टीबी का पता चला है, तो आशंका जताई जा रही है कि टीबी का संक्रमण इंसान से जानवरों में फैल रहा है. क्योंकि इन जानवरों की देखभाल करने वाले इंसानों से ही उनमें इस बीमारी के लक्षण आए हैं.

कन्नन ने बताया, ‘ खेती से जुड़े प्रोटोकॉल के तहत हमें इन जानवरों को बाकी सबसे अलग रखना होगा. क्योंकि गोहत्या की अनुमति नहीं है. अब जबकि हमारे पास रिवर्स ज़ूनोसिस के सबूत हैं, जानवरों से इंसानों में संक्रमण की भी चिंता बढ़ गई है. इसलिए हम इसकी व्यापकता को समझने के लिए घरेलू स्क्रीनिंग की योजना बना रहे हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘ अगर हम इंसानों में टीबी के संक्रमण को नियंत्रित करना चाहते हैं तो हमें जानवरों में भी इसे फैलने से रोकना होगा.’

2015 से 2019 तक खेती में लगे जानवरों पर अध्ययन के दौरान, मंटौक्स टेस्ट के जरिए जानवरों की टीबी की जांच की गई. अध्ययन के दौरान छह जानवरों की बीमारी से मौत हो गई थी और ऑटोप्सी में उनके फेफड़े, लीवर, प्लीहा, थन आदि पर टीबी के घाव होने का पता चला. ये निष्कर्ष नेचर जर्नल में प्रकाशित हुए थे.

कन्नन की टीम ने तमिलनाडु के गिंडी नेशनल पार्क में दो काले हिरणों और एक चित्तीदार हिरण में टीबी पैन्थियन के फैमिली के माइकोबैक्टीरियम ओरिगिस का भी पता लगाया.

एनआईआरटी के शोधकर्ताओं ने ऐसे मामलों में पर्यावरण को ध्यान में रखने की आवश्यकता की ओर इशारा किया.

ट्रांस बाउंड्री एंड इमर्जिंग डिजीज जर्नल में उन्होंने लिखा, ‘फिर भी, पर्यावरण को ध्यान में रखना बुद्धिमानी होगी जहां इंसान और जानवरों के बीच संपर्क बढ़ने की वजह से संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा है. इस बात को सभी जानते हैं कि ये पैथोजन (रोगाणु) इंसान और जानवर दोनों में संक्रमण पैदा करने में सक्षम है. एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के सफल कार्यान्वयन के लिए व्यवस्थित निगरानी और चित्तीदार हिरण, काले हिरण के साथ-साथ आसपास के इंसानों की जांच जरूरी है.’

एनआईआरटी में इम्यूनोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ उमा देवी ने बताया कि यूके में कई साल पहले टीबी ज़ूनोस के सबूत मिले थे. उन्होंने कहा, ‘माइकोबैक्टीरियम बोविस के जानवरों से मनुष्यों में फैलने के सबूत मिले थे, लेकिन भारत में कोई मामला नहीं पाया गया. खेती में लगे इन जानवरों में ये ताजा निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं और इसके लिए अतिरिक्त शोध की जरूरत है.’


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बीसीजी टीकाकरण के लिए सिफारिश

भारत ने दशकों पहले टीबी के संक्रमण को रोकने के लिए बीसीजी टीकाकरण को अनिवार्य कर दिया था. लेकिन वह अभी तक दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी संक्रमण के मरीजों के बोझ से जूझ रहा है. एनआईआरटी ने सरकार को पॉजिटिव मरीजों के घरेलू संपर्कों में आने वालों के लिए बीसीजी बूस्टर शॉट्स के लिए एक सिफारिश भेजी है.

एनआईआरटी के निदेशक डॉ पद्मप्रियदर्शिनी सी ने कहा, ‘हम 6 से 12 साल की उम्र के बच्चों में बीसीजी री-वैक्सीनेशन के प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं. हम तीन साल तक उन पर नजर रखेंगे और जांच करेंगे कि क्या वे बीमारी से बच पाते हैं. मिडिल स्कूल के बाद बच्चे में इस बीमारी के होने की प्रवृत्ति काफी ज्यादा हैं’

उन्होंने बताया, ‘घरेलू संपर्क (मरीजों के) में आने वालों के फिर से टीकाकरण प्रस्ताव पर हमारी सरकार के साथ दो बैठकें भी हुई हैं. हमारी योजना ट्रायल के लिए 8,000 बच्चों पर अध्ययन करने की है’

ट्रायल पहले ही देश के क्लिनिकल परीक्षण रजिस्ट्री के साथ रजिस्टर किया जा चुका है. अध्ययन बताता है: ‘बैसिल कैलमेट गुएरिन (बीसीजी) वैक्सीन नैचुरल टीबी संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले टीकों में से एक है. नवजात शिशुओं में बीसीजी का टीका कितना प्रभावकारी है, इसके बारे में सभी जानते हैं. और इसका बच्चों में मेनिन्जाइटिस और प्रसारित टीबी के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभाव भी है’

आगे कहा गया है, ‘हालांकि, बीसीजी री-वैक्सीनेशन पर काफी अनिश्चितता है. यह तो पता है कि बीसीजी टीका इम्यून रिस्पांस को बढ़ाता है, लेकिन इस बारे में अभी तक पता नहीं चल पाया है कि क्या बीसीजी टीकाकरण घरेलू संपर्कों में टीबी को रोकने में मदद कर सकता है.’

आगे लिखा है, इस अध्ययन का प्राथमिक उद्देश्य 6 से 18 साल की उम्र के घरेलू संपर्कों में टीबी रोग को रोकने में ओरल कीमोप्रोफिलैक्सिस की तुलना में बीसीजी री-वैक्सीनेसेशन की प्रभाव कितना है, इसका आकलन करना है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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