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Saturday, 2 November, 2024
होमहेल्थकोविड पीक के बाद सरकार ने ‘सफेद हाथी’ बने PSA ऑक्सीजन प्लांट कैसे चालू रखने की योजना बनाई है

कोविड पीक के बाद सरकार ने ‘सफेद हाथी’ बने PSA ऑक्सीजन प्लांट कैसे चालू रखने की योजना बनाई है

देश भर में करीब 18,000 मीट्रिक टन (एमटी) ऑक्सीजन उत्पादन की दैनिक क्षमता के साथ 3,756 पीएसए प्लांट चालू रखने को मंजूरी दी गई है लेकिन मांग करीब 200 मीट्रिक टन के आसपास ही है.

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नई दिल्ली: दूसरी लहर पीक पर होने के दौरान जब ऑक्सीजन की दैनिक जरूरत सभी रिकॉर्ड तोड़ रही थी, उस समय भारत सरकार को प्रेशर स्विंग एडसॉर्प्शन (पीएसए) ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना में देरी के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था.

अब एक साल बाद देश भर में 18,000 मीट्रिक टन (एमटी) की दैनिक क्षमता के साथ 3,756 प्लांट चालू अवस्था में हैं, लेकिन मांग करीब 200 मीट्रिक टन से भी कम बनी हुई है. ऐसे में जब इन्हें चालू रखने पर अच्छा-खासा मानव संसाधन लगने और अन्य लागत आने को लेकर सवाल उठ रहे हैं, केंद्र सरकार इन संयंत्रों के काम करते रहने के अन्य तरीके तलाश कर रही है—क्योंकि इन्हें ऐसे ही छोड़ देने का मतलब है कि थोड़े समय बाद ये काम करने की स्थिति में नहीं रहेंगे.

कई अस्पतालों की तरफ से यह मुद्दा उठाए जाने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एक संभावित समाधान के साथ आगे आया है—जिसमें पीएसए ऑक्सीजन संयंत्रों के साथ काम कर रहे अस्पतालों से कहा गया है कि वे सिलेंडर भरना जारी रखें और छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम की मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरतों की पूर्ति करते रहें.

मंत्रालय के एक शीर्ष सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये सफेद हाथी बन गए हैं. क्योंकि अस्पतालों को इन पर अच्छी-खासी बिजली की खपत वहन करनी पड़ती है और इन्हें चालू अवस्था में बनाए रखने में आवश्यक मैनपॉवर भी लगती है. लेकिन उन्हें चालू रखना जरूरी है, अन्यथा थोड़े समय बाद वे काम करने लायक नहीं रहेंगे. हमें उन्हें चालू रखना होगा ताकि अगर ऑक्सीजन की मांग फिर अचानक बढ़ने की स्थिति उत्पन्न हो तो हम आपूर्ति के लिए तैयार हों.’

अप्रैल 2021 में डेल्टा लहर के चरम पर होने के दौरान अकेले दिल्ली के लिए ऑक्सीजन का दैनिक आवंटन लगभग 700 मीट्रिक टन था और इसे लेकर केंद्र और राज्य के बीच लगातार तकरार चलती रही थी.

सूत्र ने कहा, ‘चूंकि संयंत्र केवल बड़े अस्पतालों में स्थापित किए गए थे, इसलिए हमने इन अस्पतालों को ऑक्सीजन सिलेंडर भरना शुरू करने और उनकी अपने आसपास के छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम में आपूर्ति करने को कहा है.’ आमतौर पर पीएसए संयंत्रों में उत्पादित ऑक्सीजन की आपूर्ति पाइपलाइनों के जरिये ऑनसाइट ही की जाती है.

अप्रैल 2021 में देश में ऑक्सीजन की कुल दैनिक उत्पादन क्षमता लगभग 7,127 मीट्रिक टन प्रतिदिन थी.


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संयंत्र शुरू करने को दी गई मंजूरी

25 मार्च को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने बताया था, ‘21 मार्च 2022 तक देश भर में 3,756 पीएसए संयंत्र चालू हो चुके हैं. इसमें पीएम-केयर्स के तहत आने वाले पीएसए, विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के पीएसयू और अस्पताल स्तर पर मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन और आपूर्ति क्षमता बढ़ाने वाले अन्य स्रोत शामिल हैं.’

पीएसए ऑक्सीजन प्लांट एक ऐसी तकनीक पर काम करता है, जिसमें नाइट्रोजन को सोखकर वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन को सघन बनाकर उसे अस्पतालों को सप्लाई किया जाता है. यह वातावरण के तापमान पर संचालित होता है और उच्च दबाव पर ऑक्सीजन उत्पादन के लिए जिओलाइट्स, एक्टिव कार्बन और मॉलीक्यूलर आणविक सिव जैसी विशिष्ट एब्जॉर्वेंट मैटीरियल का उपयोग करता है.

मांग अधिक होने की स्थिति में पीएसए संयंत्र सिलेंडर की तुलना में अधिक किफायती साबित होते हैं. प्रतिदिन 24 सिलेंडर गैस की आपूर्ति करने में सक्षम एक संयंत्र की लागत लगभग 33 लाख रुपये है और इसे कुछ ही हफ्तों में स्थापित किया जा सकता है. आम तौर पर 40 आईसीयू बेड के साथ 240 बेड वाला अस्पताल प्रति माह लगभग 5 लाख रुपये की ऑक्सीजन का उपयोग करता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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