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Friday, 8 November, 2024
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भारत ने कितने RAT और RT-PCR टेस्ट किए किए हैं? आईसीएमआर ने कहा-हमारे पास डाटा नहीं राज्यों से पूछें

दिप्रिंट की तरफ से दायर एक आरटीआई के जवाब में आईसीएमआर ने कहा कि उसके पास केवल कुल टेस्ट का डाटा है, साथ ही जोड़ा कि आरएटी और आरटी-पीसीआर के बारे में विशिष्ट डाटा रखना राज्यों की जिम्मेदारी है.

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नई दिल्ली: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) राष्ट्रीय स्तर या सभी राज्यों में कोविड-19 की जांच के लिए कराए जाने वाले रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) और आरटी-पीसीआर टेस्ट के बारे में अलग-अलग आंकड़ा नहीं रखता है. शीर्ष अनुसंधान निकाय ने खुद इस बात का खुलासा किया है.

दिप्रिंट की तरफ से 10 राज्यों, जिसमें सबसे ज्यादा केसलोड वाले राज्य भी शामिल हैं, के बारे में आरटीआई के जरिये मांगी गई इस जानकारी कि कौन-से टेस्ट कितनी संख्या में कराए गए, के जवाब में आईसीएमआर ने कहा, ‘सूचना संयुक्त रूप में उपलब्ध है और आईसीएमआर अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर परीक्षण संबंधी डाटा संयुक्त रूप में ही जारी करता है.’

अभी अपनाई जा रही प्रक्रिया के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विशिष्ट डाटा रखना राज्यों की जिम्मेदारी है.

अपना नाम न बताने के इच्छुक अधिकारी ने कहा, ‘देशभर की प्रयोगशालाओं का एक कॉमन पोर्टल है. जैसे ही टेस्ट होता है उस पोर्टल पर जानकारी अपलोड कर दी जाती है. आईसीएमआर के तौर पर हम पोर्टल तक पहुंच रखते हैं और हम इस डाटा को जुटाकर एक साथ जोड़ रहे हैं. लेकिन यह एंटीजन टेस्ट है या आरटी-पीसीआर इसके बारे में जानकारी रखना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘संबंधित डाटा आपके सामने उस दिन किसी संस्थान विशेष द्वारा किए गए कुल टेस्ट की तस्वीर पेश करता है.’

आईसीएमआर की कोविड टेस्ट रणनीति के अनुसार, राज्य कंटेनमेंट जोन, स्क्रीनिंग प्वाइंट्स, नॉन-कंटेनमेंट जोन और अस्पतालों में परीक्षण के लिए आरएटी या आरटी-पीसीआर टेस्ट में से कोई भी विकल्प खुद चुन सकते हैं.

लेकिन आईसीएमआर की नीति सवालों के घेरे में आ गई है क्योंकि देशभर के राज्य आरएटी का विकल्प ज्यादा चुन रहे हैं.

आरएटी 30 मिनट के भीतर जांच का पॉजिटिव या निगेटिव नतीजा बता देता है लेकिन संवेदनशीलता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता क्योंकि पॉजिटिव नतीजे देने में इसकी सटीकता लगभग 50 प्रतिशत ही है. वहीं, आरटी-पीसीआर यानी रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पोलीमरेज चेन रिएक्शन टेस्ट का गोल्ड स्टैंडर्ड है जिसमें नतीजा कम से कम 80 प्रतिशत सही होता है.

अलग-अलग डाटा की कमी पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील ने कहा, ‘इसकी कोई वजह नहीं है कि दोनों तरह के टेस्ट के आंकड़े अलग-अलग जारी न किए जाएं. बड़े पैमाने पर आरएटी टेस्ट होने को लेकर चिंताओं को देखते हुए निश्चित तौर पर नीतिगत पहलू से यह समझने की जरूरत है कि इन टेस्ट की संवेदनशीलता और विशिष्टता कैसे मामलों की सही पहचान करने की हमारी क्षमता को प्रभावित कर सकती है.’

भारत में अब तक कुल केस का आंकड़ा 85 के पार पहुंच चुका है. इसके अलावा वायरस देश में 1,24,315 लोगों की जान ले चुका है.

‘रॉ डाटा लेकिन कोई रिपोर्ट नहीं’

जब कोई अधिकृत परीक्षण केंद्र आरएटी या आरटी-पीसीआर टेस्ट करता है तो तकनीशियनों को इसे आरएटीआई (रैपिड एंटीजन टेस्ट ऑफ इंडिया) या आरटी-पीसीआर एप्लीकेशन का उपयोग करके आईसीएमआर के समक्ष दर्ज करना होता है. दोनों एप्लीकेशन को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) द्वारा विकसित किया गया है.

दिप्रिंट ने मंत्रालय के एक अधिकारी से संपर्क साधा, जिन्होंने बताया कि यद्यपि एनआईसी ने पोर्टल विकसित किया है लेकिन उस तक केवल आईसीएमआर की पहुंच हैं. नाम न बताने के इच्छुक अधिकारी ने टेलीफोन पर दिए इंटरव्यू में कहा, ‘यह डाटा आईसीएमआर की तरफ से अधिकृत लैब दिखता है…एनआईसी ने भले ही एप्लीकेशन तैयार की हो डाटा पर पूरा नियंत्रण आईसीएमआर का ही होता है. उनके पास उपयोगकर्ताओं के नाम और पासवर्ड होते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यदि आपके पास रॉ डाटा है और आप तकनीकी सम्पन्न हैं तो आप जो भी रिपोर्ट बनाना चाहते हैं, बना सकते हैं.’

आईसीएमआर के एक दूसरे अधिकारी ने पुष्टि की कि डाटा क्लाउड में एकत्र किया जा रहा है और रिपोर्ट तभी तैयार की जाती है जब किसी उच्च अधिकारी को इसकी आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा, ‘अनुसंधान उद्देश्यों के लिए हम डाटा ले सकते हैं और रिपोर्ट तैयार कर सकते हैं.’

यह पूछने पर कि क्या आईसीएमआर नियमित रूप से दोनों तरह के टेस्ट के बारे में अलग-अलग रिपोर्ट तैयार करता है, उन्होंने कहा, ‘आईसीएमआर इसका उपयोग नहीं करता है, राज्यों की तरफ से इसका उपयोग किया जाता है. हम केवल कुल टेस्ट का डाटा रखते हैं.’


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कुछ राज्य विशिष्ट डाटा तैयार कर रहे

दिप्रिंट ने आसानी से उपलब्ध 25 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विभागों की तरफ से जारी होने वाले दैनिक कोविड बुलेटिन का विश्लेषण किया.

इस दौरान पाया गया कि नौ राज्य और एक केंद्र शासित क्षेत्रों में आरएटी और आरटी-पीसीआर पर अलग-अलग डाटा जारी किया जाता है.

इनमें से केरल, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा ने अब तक हुए एंटीजन और आरटी-पीसीआर टेस्ट की संख्या पर विशिष्ट डाटा जारी किया है.

लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और दिल्ली ने दैनिक आधार पर आरएटी और आरटी-पीसीआर टेस्ट के आंकड़े जारी किए हैं.

तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है जहां आरएटी का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है.

स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने गुरुवार को आरएटी और आरटी-पीसीआर में असमान अनुपात क्रमश: 77% और 23% को लेकर दिल्ली सरकार की खिंचाई की थी.

टेस्ट पर विशिष्ट डाटा जारी न करने वाले राज्य असम में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक लक्ष्मणन एस. के मुताबिक, आरएटी और आरटी-पीसीआर का डाटा अलग-अलग न जुटाने के पीछे कोई विशेष कारण नहीं था.

यह पूछे जाने पर कि क्या यह डाटा सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया में मददगार है, उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता है, क्योंकि कई प्रक्रियाएं अपनाई जा रही हैं. हमने कल 25,000 आरएटी टेस्ट कराए जिनमें 253 (1.7 प्रतिशत) पॉजिटिव मरीज पाए गए और इससे एक-दो दिन पहले 2,900 आरटी-पीसीआर के नमूने लिए गए थे.’

लक्ष्मणन ने कहा, ‘इसमें से करीब 50 लोग यानी करीब दो फीसदी पॉजिटिव मरीज सामने आए…आरटी-पीसीआर गोल्ड स्टैंडर्ड है लेकिन मुझे लगता है कि हमारे यहां दोनों टेस्ट के नतीजों में कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं पाया जा रहा है.’

उनके मुताबिक, 70-80 प्रतिशत आरएटी और 20-30 प्रतिशत आरटी-पीसीआर टेस्ट का संयोजन बेहतर तरीका है.


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कोविड नीति पर असर

ऊपर उल्लेखित पहले आईसीएमआर अधिकारी ने बताया कि परीक्षणों पर अलग-अलग डाटा की कमी कोविड पर सरकार की प्रतिक्रिया पर असर नहीं डालती है. आईसीएमआर के लिए फंड की व्यवस्था करने वाला स्वास्थ्य मंत्रालय इसी डाटा पर निर्भर है.

अधिकारी ने कहा, ‘कोई मुश्किल नहीं है…दरअसल एंटीजन टेस्ट सिर्फ एक सहायक टेस्ट है, जब आप कंटेनमेंट जोन या किसी क्षेत्र में काफी लोगों के होने की स्थिति में एक साथ बड़ी संख्या में नमूनों का टेस्ट करना चाहते हैं. साथ ही जोड़ा कि यह टेस्ट इसलिए भी मददगार है क्योंकि इसमें कम समय लगता है. उन्होंने यह तर्क भी दिया कि आईसीएमआर की नीति यह कहती है कि यदि किसी मरीज में लक्षण दिखने के बावजूद आरएटी का नतीजा निगेटिव आए तो उसका आरटी-पीआरआर नमूना लेना चाहिए.

अधिकारी ने परीक्षण की संवेदनशीलता दर कम होने का उल्लेख करते हुए कहा, ‘एंटीजन टेस्ट आपको ज्यादा और विस्तारित ढंग से परीक्षण की सुविधा दे रहा है, लेकिन आपको एंटीजन परीक्षण पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए.’

हालांकि, अधिकारी ने कहा कि राज्य आम तौर पर आरएटी और आरटी-पीसीआर में 60-40 प्रतिशत का अनुपात का विकल्प चुनते हैं जो आरएटी पर ज्यादा जोर दिए जाने को दर्शाता है.

हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इस स्थिति से असहमत नजर आते हैं.

अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के प्रमुख डॉ. शाहिद जमील कहते हैं, ‘अगर आप वास्तव में 100 पॉजिटिव मरीजों का परीक्षण कराएं तो आरटी-पीसीआर इसमें से 80 को पॉजिटिव बताएगा और आरएटी में 50 लोग ही पॉजिटिव निकलेंगे. जब 100 पॉजिटिव मरीजों में नतीजा इस तरह भिन्न हो सकता है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं टेस्ट के नतीजों का वास्तविक परिदृश्य क्या होता होगा.’

उन्होंने कहा, ‘अगर हम टेस्ट के प्रत्येक तरीके में आने वाले अंतर को न जानते हो, और जब यह अनुपात समय और स्थान के आधार पर बदल जाता हो तो हम सही आंकड़ों के बिना वास्तविक ट्रेंड पता ही नहीं लगा पाएंगे. नीति बनाने के लिए ट्रेंड पता होना जरूरी है.’

इस बीच, वायरोलॉजिस्ट और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के पूर्व प्रोफेसर डॉ. जैकब जॉन का मानना है कि यह डाटा जुटाना खास मायने नहीं रखता क्योंकि यह व्यक्तिगत स्तर पर मामलों के लिहाज से कोई लाभ नहीं पहुंचाता.

उन्होंने कहा, ‘डॉक्टरों के रुख को देखते हुए कहा जा सकता है कि अगर उन्हें ऑक्सीजन के स्तर के आधार पर किसी मरीज में मध्यम या गंभीर बीमारी का संदेह होगा तो वे निगेटिव नतीजों को नजरअंदाज कर देंगे, खासकर अगर यह एक एंटीजन टेस्ट हो. वे संबंधित व्यक्ति का कोविड के आधार पर ही इलाज करेंगे. इसे सिर्फ कोविड के रूप में गिना नहीं जाएगा.’

हालांकि, ग्लोबल हेल्थ और बायोएथिक्स के एक शोधकर्ता अनंत भान का तर्क है कि आरएटी और आरटी-पीसीआर टेस्ट पर विशिष्ट डाटा होने से नीति तैयार करने में मदद मिलेगी.

उन्होंने कहा, ‘यह उस तरह का डाटा है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिए, यह साझा न करने का कोई कारण नहीं है…बल्कि यह नीति बनाने में कारगर होगा, क्योंकि हम रैपिड एंटीजेन टेस्ट के कारण वैसे भी सही संख्या का पता लगाने से चूक सकते हैं. साथ ही जोड़ा कि अब ‘वायरस का संक्रमण फैलने के सभी फैक्टर’ त्योहारों, सर्दी के मौसम और बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए यह ज्यादा उपयोगी होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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