गर्मी के थपेड़ों का हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव पड़ता है. डॉक्टर आमतौर पर उनसे डरते हैं, क्योंकि गर्मी बढ़ने पर आपातकालीन कक्ष जल्दी ही निर्जलीकरण, ताप और बेहोशी से पीड़ित रोगियों से भर जाते हैं.
हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि किसी दिए गए स्थान के लिए सामान्य तापमान सीमा से 5 प्रतिशत तक बढ़ने या उससे अधिक होने पर अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में कम से कम 10 प्रतिशत मरीजों की वृद्धि होती है.
मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले लोगों में बढ़ते तापमान भी लक्षणों को बदतर बना सकते हैं. गर्मी – साथ ही बाढ़ और आग जैसी अन्य मौसम की घटनाओं को अवसाद से पीड़ित लोगों में रोग के लक्षणों में वृद्धि और सामान्य चिंता एवं आवेश विकार वाले लोगों में रोग के लक्षणों में वृद्धि से जोड़ा गया है.
हर रोज बढ़ते तापमान का आत्महत्या तथा आत्महत्या के प्रयासों की घटनाओं के साथ भी एक रिश्ता है. और, मोटे तौर पर, मासिक औसत तापमान में प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मौतों में 2.2 प्रतिशत की वृद्धि होती है. सापेक्षिक आर्द्रता में चुभने वाली गर्मी के कारण भी आत्महत्या की घटनाएं अधिक होती हैं.
आर्द्रता और तापमान – दोनों मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप बदल रहे हैं – द्विध्रुवीय विकार वाले लोगों में आवेश के दौरों में वृद्धि से जुड़े हुए हैं. बीमारी की यह स्थिति भारी नुकसान का कारण बनती है और इसके परिणामस्वरूप मनोविकृति और आत्महत्या के विचारों के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है.
आगे की समस्याएं इस तथ्य से उत्पन्न होती हैं कि मानसिक बीमारी के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली महत्वपूर्ण दवाओं की प्रभावशीलता गर्मी के प्रभाव से कम हो सकती है.
हम जानते हैं कि कई दवाएं गर्मी से संबंधित मौत के जोखिम को बढ़ाती हैं, उदाहरण के लिए, एंटीसाइकोटिक्स, जो प्यास को दबा सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप लोग निर्जलित हो जाते हैं.
कुछ दवाएं शरीर के तापमान के आधार पर अलग तरह से काम करेंगी और उसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि व्यक्ति कितना निर्जलित है, जैसे लिथियम, एक बहुत ही शक्तिशाली और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला मूड-स्टेबलाइजर, जिसे अक्सर द्विध्रुवी विकार वाले लोगों के लिए निर्धारित किया जाता है.
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धुंधली सोच, आक्रामक व्यवहार
गर्मी मानसिक स्वास्थ्य और बिना मानसिक स्वास्थ्य विकार वाले लोगों के सोचने और तर्क करने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकती है. अनुसंधान से पता चलता है कि जटिल संज्ञानात्मक कार्यों को तैयार करने और हल करने के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के क्षेत्र गर्मी के तनाव से प्रभावित होते हैं.
बोस्टन में छात्रों के एक अध्ययन में पाया गया कि हीटवेव के दौरान बिना एयर कंडीशनिंग वाले कमरों में संज्ञानात्मक परीक्षणों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे लोगों ने उनके साथियों की तुलना में 13 प्रतिशत खराब प्रदर्शन किया था और 13 प्रतिशत धीमी प्रतिक्रिया समय था.
गर्मी की वजह से जब लोग स्पष्ट रूप से नहीं सोच पाते हैं, तो इस बात की बहुत संभावना है कि वे निराश हो जाएंगे, और यह बदले में आक्रामकता का कारण बन सकता है.
हिंसक अपराध में वृद्धि के साथ अत्यधिक गर्मी को जोड़ने के पुख्ता सबूत हैं. यहां तक कि परिवेश के तापमान में एक या दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से भी हमलों में 3-5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.
2090 तक, यह अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक स्तर पर सभी अपराध श्रेणियों में 5 प्रतिशत तक की वृद्धि के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार हो सकता है. इन वृद्धि के कारणों में मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और जैविक कारकों का एक जटिल अंत: संबंध शामिल है. उदाहरण के लिए, सेरोटोनिन नामक एक मस्तिष्क रसायन, जो अन्य बातों के अलावा, आक्रामकता के स्तर को नियंत्रित रखता है, उच्च तापमान से प्रभावित होता है.
गर्म दिन भी पर्यावरण-चिंता को बढ़ा सकते हैं. यूके में, सर्वेक्षण में शामिल 60 प्रतिशत युवाओं ने कहा कि वे जलवायु परिवर्तन को लेकर बहुत चिंतित हैं या बेहद चिंतित हैं. सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 45 प्रतिशत से अधिक ने कहा कि जलवायु के बारे में भावनाओं ने उनके दैनिक जीवन को प्रभावित किया.
गर्मी, और हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उसके प्रभाव, महत्वपूर्ण संकेत हैं कि हमें अपनी और आने वाली पीढ़ियों की मदद करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर कार्य करना है.
(लौरे : डिपार्टमेंटल लेक्चरर यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और एलीन न्यूमैन पोस्टडॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट, न्यूरोसाइंस, यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख)
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