नई दिल्ली: भारत में 40 से कम उम्र की महिलाओं में गर्भाशय निकलवानें (हिस्टेरेक्टॉमी) की घटनायें बढ़ती जा रही है. कम उम्र में हिस्टेरेक्टॉमी के बढ़ते मामले डॉक्टरों के बीच भी चिंता का विषय बना हुआ है. इस तरह के बढ़ते मामले इन महिलाओं के शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
NFHS के हालिया आंकड़ों ने हिस्टेरेक्टॉमी कराने की भारत में औसत आयु 34 वर्ष होने का अनुमान लगाया है. एक्सपर्ट का मानना है कि यह चिंता का कारण है, क्योंकि यह वैश्विक ट्रेंड से काफी कम है. यह ट्रेंड बताता है कि मेनोपॉज का समय जब करीब होता है तो यह प्रक्रिया बढ़ जाती है. हिस्टेरेक्टॉमी से एस्ट्रोजेन की कमी होती है जिससे ऑस्टियोपोरोसिस और हृदय बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है.
दिप्रिंट ने देश में बढ़ रहे हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय निकलवानें) के साइड इफेक्ट्स और इससे बचने के तरीकों पर मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में गाइनोकॉलिजिस्ट विभाग की हेड रहीं और मातृत्व एडवांस्ड आईवीएफ एंड ट्रेनिंग सेंटर चला रहीं डॉ.सुधा प्रसाद ने बताया – ‘ब्लीडिंग ज्यादा हो रही है इसका मतलब ये नहीं की हम यूट्रस को ही निकाल दें.’
प्रसाद कहती हैं, ‘वजाइनल डिस्चार्ज, पेल्विक इन्फ्लामेट्री डिजीज, छोटा सा फाइब्रायड हो तो ऐसे में कुछ परेशानियां होती हैं. ऐसे में कुछ परेशानियों से बचने के लिए 40 से कम उम्र में ही यूट्रस निकालें. यह सॉल्यूशन नहीं है.’
वह आगे कहती हैं, ‘ महिलाओं को नहीं मालूम अगर 40 की उम्र में यूट्रस निकाल दिया जाए तो ओवरी जो ओवरी जो बीस साल काम करनी चाहिए वो सिर्फ दो साल काम करेगी.’
डॉ.सुधा ने 40 से कम उम्र में गर्भाशय निकलवाने के नुकसान पर कहा ‘यूट्रस निकालने से cardiovascular heart disease हो सकती है, हड्डियां कमज़ोर हो सकती है, रात में नींद न आने की दिक्कत हो सकती है, कमर दर्द की परेशानी हो सकती है और बहुत सारे उसके आफ्टर इफेक्ट्स है.’
‘गांवों की महिलाओं में जागरुकता की है कमी’
डॉ. सुधा ने बताया कि उनके पास आने वाली 40 फीसदी महिलाएं यूट्रस निकलवाने के लिए मन बना कर आती हैं. ‘गांव की महिलाओं में यूट्रस निकलवाने की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है. उनके दिलो दिमाग पर छा गया है कि 40 की उम्र के बाद यूट्रस कैंसर के चान्सेज बढ़ जाते है.’
वह कहती हैं कि ऐसे में उन्हें समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि इतनी जल्दी कैंसर नहीं होता. अगर एक परसेंट कैंसर के चांस है तो 99% लोगों को क्यों हम गर्भाशय कराने की सलाह दे.
डॉक्टर सुधा ने आगे बताया की कई बार मरीज़ ही डॉक्टर्स पर दवाब बनाते है कि गर्भाशय निकाल दिया जाये लेकिन यह तरीका बिल्कुल भी ठीक नहीं है. बीमारी को ठीक करने के लिए डॉक्टर, पेशेंट दोनों को धैर्य रखना होगा.
Observer Research Foundation (ORF) की एक रिसर्च के अनुसार The fourth National Family Health Survey (2015-16) ने भारत में हिस्टेरेक्टॉमी के मामलों से संबंधित इकाई-स्तरीय की डेटा कलेक्ट किया जिसके अनुसार 15-49 वर्ष की आयु के बीच की 700,000 महिलाओं का सर्वेक्षण किया गया, उनमें से 22,000 ने महिलाओं ने हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी करवाया था.
मेडिकल न्यूज़ टुडे की एक सर्वे के मुताबिक संयुक्त राज्य अमेरिका में महिलाओं के लिए हिस्टेरेक्टॉमी दूसरी सबसे आम सर्जरी है. लगभग 600,000 हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी करवाती है एवं अपना यूट्रस निकलवा देती है.
दिप्रिंट ने डॉक्टर रितु से भी इस मामले पर बात की, और उनसे पूछा हिस्टेरेक्टॉमी की जब आप बात करते हैं तो यूट्रस से जुड़े ज्यादातर केस शहरों से आते हैं या गांवों से?
उन्होंने कहा ‘गांवों के ज्यादा केस आते है क्युकी लोगों का माइंडसेट हो गया है की दो बच्चे तीन बच्चे हो गए है अब इसकी जरुरत नहीं है. उनको लगता है अब इस ऑर्गन की जरुरत नहीं है इसका काम सिर्फ बच्चा पैदा करना है.’
डॉ. सुधा की ही तरह डॉ. रितु ने भी बताया की कई बार मरीज़ की डॉक्टरों पर यूट्रस निकालने का दबाव डालते है. उन्होंने कहा ‘कई बार लोगों को समझाने और उनकी काउन्सलिंग करने में काफी वक़्त लग जाता है तब जाकर वो समझते है की यूट्रस निकालना कोई हल नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘गांवों के ज्यादा केस आते हैं क्युंकी लोगों का माइंडसेट हो गया है की दो बच्चे- तीन बच्चे हो गए हैं अब इसकी जरुरत नहीं है. उनको लगता है अब इस ऑर्गन की जरुरत नहीं है इसका काम सिर्फ बच्चा पैदा करना है.’
डॉ. रितु ने भी बताया की कई बार मरीज़ की डॉक्टरों पर यूट्रस निकालने का दबाव डालते है. उन्होंने कहा ‘कई बार लोगों को समझाने और उनकी काउन्सलिंग करने में काफी वक़्त लग जाता है तब जाकर वो समझते है की यूट्रस निकालना कोई हल नहीं है.
भारत में हिस्टेरेक्टॉमी के बढ़ते मामलों को देखते हुए दुनिया की प्रमुख हेल्थकेयर कंपनियों में से एक ‘बॉयर‘ और इंटीग्रेटेड हेल्थ एन्ड वेलबीइंग (आईएचडब्लू) कॉउंसिल ने राजधानी दिल्ली में एक राष्ट्रीय स्तर की समिट का आयोजन किया. ‘प्रिजर्व द यूट्रस’ नाम के इस समिट का उद्देश्य महिलाओं और हेल्थकेयर सेक्टर में काम करने वालों के बीच स्त्री रोग से सम्बंधित समाधानों के आधुनिक और वैकल्पिक तरीकों के बारे में जागरूकता फैलाना और हिस्टेरेक्टॉमी के प्रभाव के बारे में जानकारी देना है ताकि महिलाएं बेवजह हिस्टेरेक्टॉमी से बचे और स्वस्थ रहें.
इस समिट में आए डॉ. ऋषिकेश डी.पाई ने कहा, ‘लातुर से बहुत रिपोर्ट्स आई हैं जिसके बाद महिलाओं में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. प्रिवेंशन इज़ बेटर देन क्योर इसलिए लोगों को जागरूक करने की जरुरत है कि इसके आसान इलाज भी है. यूट्रस निकालने के नुकसान भी आप भविष्य में कभी प्रेग्नेंट नहीं हो सकती.
‘सर्जरी के बाद के साइड इफेक्ट्स होते है और लॉन्ग टाइम कॉमप्लिकेशन्स भी आ जाती है.’
दिप्रिंट से बातचीत के दौरान डॉ. ऋषिकेश ने बताया कि वो 4 दिसंबर से ‘नारी स्वास्थ्य जन आंदोलन’ चला रहे हैं जो ऋषिकेश से शुरू होकर यूपी, बिहार होती हुई बंगाल जाएगी. जिसमें महिलाओं सहित जिस गांव से गुजरेगी उनकी बीमारियों के साथ साथ खून की कमी (एनीमिया) के बारे में भी बताया जाएगा. 40 डॉक्टरों के टीम के साथ निकाले जा रहे इस अभियान का मकसद डेटा कलेक्ट करना और महिलाओं में जागरूकता फैलाना है.