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Thursday, 18 April, 2024
होमदेशWHO के जवाब में सरकार का दावा- 99.9% मौतें दर्ज की, NFHS-5 के मुताबिक 2019-21 का आंकड़ा रहा 71 फीसदी

WHO के जवाब में सरकार का दावा- 99.9% मौतें दर्ज की, NFHS-5 के मुताबिक 2019-21 का आंकड़ा रहा 71 फीसदी

2019 से 2021 तक किए गए फील्डवर्क पर आधारित एनएफएचएस-5 के पांचवे चरण की रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में होने वाली कुल मौतों में से सिर्फ 83 प्रतिशत का ही पंजीकरण कराया गया है जबकि ग्रामीण परिवारों में ये स्तर 66 फीसदी है.

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नई दिल्ली: दुनिया भर में कोविड की वजह से होने वाली मौतों पर डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट का भारत सरकार ने खंडन किया है. सरकार ने गुरुवार को दावा करते हुए कहा कि 2020 में भारत में मृत्यु पंजीकरण का स्तर 99.9 प्रतिशत था. हालांकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) की राष्ट्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि 71 फीसदी मौतें नागरिक प्राधिकरण में दर्ज कराई गईं. शहरी परिवारों के लिए यह आंकड़ा 83 फीसदी और ग्रामीण लोगों के लिए 66 फीसदी है.

स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने गुरुवार को गुजरात में एनएफएचएस-5 की राष्ट्रीय रिपोर्ट जारी की. भारत के लिए NFHS-5 के लिए किए गए सर्वे को दो चरणों में किया गया था: चरण-1 में 17 जून 2019 से 30 जनवरी 2020 तक 17 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों को कवर किया गया. और चरण-II में 2 जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2021 तक 11 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेश को कवर किया गया था.

17 क्षेत्रीय एजेंसियों द्वारा किए गए इस सर्वे में 6,36,699 घरों,7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों को शामिल कर उनसे जानकारी एकत्र की गई थी.

मृत्यु पंजीकरण को लेकर तैयार की गई इस रिपोर्ट में, सर्वेक्षण से पहले के तीन वर्षों में सामान्य परिवार के सदस्यों की मृत्यु के बारे में जानकारी दी जाती है जिन्हें नागरिक प्राधिकरण में पंजीकृत किया गया है.

डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट का खंडन करने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2020 के लिए नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) की रिपोर्ट के आधार पर मसौदा तैयार किया था. हालांकि मंगलवार को जारी सीआरएस रिपोर्ट में मृत्यु पंजीकरण स्तर की जानकारी नहीं दी गई थी. इसकी पिछली रिपोर्ट में, 2019 का डेटा था,जिसमें मृत्यु पंजीकरण का स्तर 92 प्रतिशत था.

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सीआरएस के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में भारत में 81.2 लाख मौतें दर्ज की गईं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि 2020 में हुई अनुमानित 81,20,268 मौतों में से 81,15,882 को दर्ज किया गया था- उसकी वजह से पंजीकरण स्तर 99.9 पर पहुंच गया.

स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, अनुमानित मौतों की गणना 2019 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) डेटा में दी गई छह प्रतिशत की मृत्यु दर के आधार पर की गई थी. 2020 का वह एसआरएस डेटा जो वर्ष की सटीक मृत्यु दर की जानकारी देगा, अभी आना बाकी है.

एनएफएचएस-5 के अनुसार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मृत्यु पंजीकरण सबसे कम बिहार (36 फीसदी) में है. इसके बाद अरुणाचल प्रदेश (37 फीसदी) और नागालैंड (39 फीसदी) का नंबर आता है. आंकड़ों से पता चलता है कि गोवा में 100 फीसदी, केरल में 97.8 फीसदी, लक्षद्वीप में 97.4 फीसदी और हिमाचल प्रदेश में 94.7 फीसदी मौतों का पंजीकरण किया गया है.

59 फीसदी परिवार खाना पकाने के लिए करते हैं स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल

NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में केवल 59 प्रतिशत परिवार ही खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का उपयोग करते हैं, जबकि 41 प्रतिशत परिवार खाना पकाने के लिए किसी न किसी प्रकार के ठोस ईंधन मसलन लकड़ी या उपले पर निर्भर हैं. सभी घरों में स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना 2016 में शुरू की गई थी.

रिपोर्ट में खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ईंधन के प्रकार और तपेदिक के मामलों के बीच संबंध का भी आकलन किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘खाना पकाने के ईंधन के प्रकार के अनुसार टीबी के प्रसार में काफी भिन्नता देखने को मिली. बिजली, एलपीजी, प्राकृतिक गैस, या बायोगैस का उपयोग करने वाले घरों में टीबी के मामले कम थे. यहां 1,00,000 सामान्य निवासियों में 179 व्यक्तियों में टीबी के लक्षण थे. वहीं खाना पकाने के लिए भूसे, झाड़ियों या घास का उपयोग करने वाले घरों में ये दर काफी ज्यादा थी. ऐसे घरों के 1,00,000 व्यक्तियों में से 490 लोग टीबी की बीमारी से जूझते नजर आए.’


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6.8 प्रतिशत लड़कियां 15-19 वर्ष की आयु में मां बनी

रिपोर्ट में बाल विवाह और कम उम्र में मातृत्व की व्यापकता पर भी प्रकाश डाला गया है. रिपोर्ट बताती है कि 6.8 प्रतिशत लड़कियों ने 15-19 साल की उम्र में बच्चे को जन्म दिया या फिर वे अपने पहले बच्चे के साथ गर्भवती हैं. त्रिपुरा में यह प्रतिशत सबसे अधिक 21.9 है. इसके बाद पश्चिम बंगाल 16.4 और आंध्र प्रदेश 12.6 प्रतिशत के साथ दूसरे और तीसरे नंबर पर है. लेकिन इनमें से कोई भी लड़की अविवाहित नहीं है.

रिपोर्ट कहती है: ‘भारत में 25-49 साल की उम्र वाली महिलाओं द्वारा पहली बार आंतरिक संबंध बनाने की औसत उम्र 18.9 वर्ष है. 25-49 आयु वर्ग की दस प्रतिशत महिलाओं ने 15 वर्ष की उम्र से पहले और 39 प्रतिशत ने 18 साल की उम्र से पहले यौन संबंध बनाए थे. 25-49 साल की उम्र की 60 प्रतिशत महिलाओं ने 20 वर्ष की आयु तक आंतरिक संबंध बना लिए थे. भारत में 25-49 आयु वर्ग के पुरुषों के लिए पहली बार आंतरिक संबंध बनाने की औसत उम्र 24.8 है. यह महिलाओं की तुलना में छह साल ज्यादा है. 25-49 साल के मात्र एक प्रतिशत पुरुषों ने 15 साल की उम्र में पहली बार यौन संबंध बनाए थे. वहीं 6 प्रतिशत ने 18 साल की उम्र में पहली बार सेक्स किया. 25 वर्ष की आयु तक, 25-49 साल के 52 प्रतिशत पुरुषों ने आंतरिक संबंध बनाए हैं’

रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवार नियोजन का सबसे जटिल विकल्प होने के बावजूद, महिला नसबंदी सबसे लोकप्रिय आधुनिक गर्भनिरोधक तरीका है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘मौजूदा समय में 15-49 साल की विवाहित महिलाओं में 38 प्रतिशत महिलाओं ने नसबंदी कराई हैं. इसके बाद पुरुष कंडोम (10 प्रतिशत) और गोलियां (5 प्रतिशत) का उपयोग किया गया. दस प्रतिशत पारंपरिक विधि का इस्तेमाल करते हैं. इसमें ज्यादतर रिद्म मैथड (आकृति 5.1) का इस्तेमाल किया जाता है. यौन रूप से सक्रिय अविवाहित महिलाओं में, पुरुष कंडोम सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका (27 प्रतिशत) है, इसके बाद महिला नसबंदी (21 प्रतिशत) है.’

हालांकि यह पहला पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण है जो दर्शाता है कि भारत के फर्टिलिटी रेट में कमी आई है. प्रजनन स्तर 2.1 से नीचे गिर गया है. रिपोर्ट बताती है कि अगर गर्भनिरोधक तरीकों की अपेक्षित जरूरतें पूरी हो पातीं तो प्रजनन स्तर और भी कम हो सकता था. रिपोर्ट के अनुसार ‘भारत में कुल वांछित प्रजनन दर 1.6 है, इसकी तुलना में भारत में एक महिला 2 बच्चों को जन्म दे रही है.’

परिवार नियोजन के तरीकों की अपेक्षित जरूरतें पूरी नहीं हो पाने के सबसे ज्यादा मामले मेघालय (27 फीसदी) और मिजोरम (19 फीसदी) हैं. महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात, असम, झारखंड, सिक्किम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार को छोड़कर अधिकांश अन्य राज्यों में दर 10 प्रतिशत से कम है. कहीं-कहीं यह 10 से 15 प्रतिशत के बीच है. आंध्र प्रदेश (5 फीसदी), दिल्ली, कर्नाटक और तेलंगाना (प्रत्येक में 6 फीसदी) में परिवार नियोजन के तरीकों की अपेक्षित जरूरतें पूरी न हो पाने की दर सबसे कम है.

वैवाहिक हिंसा

रिपोर्ट से पता चलता है कि 32 प्रतिशत शादी-शुदा महिलाओं ने शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा को झेला है. सर्वे में शामिल महिलाओं में से 27 फीसदी ने सर्वे से पहले के 12 महीनों में इस तरह की हिंसा का सामना किया.

18-49 वर्ष की आयु वर्ग की एक चौथाई विवाहित महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा की बात कही है. इनमें से 7 प्रतिशत महिलाओं ने आंखों में चोट लगने , मोच आने , हड्डियों के खिसकने, या जला जाने की शिकायत की. वहीं 6 प्रतिशत महिलाओं को काफी गहरी चोट लगी हैं. इस दौरान लगे गहरे घाव, टूटी हड्डियां, टूटे दांत या कोई अन्य गंभीर चोट के निशान अभी भी उनके दिलो दिमाग में मौजूद हैं. केवल 14 प्रतिशत महिलाओं ने हिंसा को रोकने के लिए मदद मांगी.

रक्तसंबंध में शादियां

सर्वे में शामिल महिलाओं में से 13 प्रतिशत विवाहित महिलाएं शादी से पहले अपने पति से किसी न किसी रिश्ते में थीं. वहीं 11 प्रतिशत शादियां रक्त संबंध (एक सामान्य पूर्वज के वंशज के साथ) में की गईं थीं. सबसे ज्यादा कॉनसंगिनेयस शादियां पहले कजिन के साथ (सभी विवाहों का 8 प्रतिशत) की गईं थीं.

रिपोर्ट बताती है कि ‘केरल को छोड़कर सभी दक्षिणी राज्यों में, अन्य राज्यों की महिलाओं की तुलना में कॉनसंगिनेयस शादियां होने की अधिक संभावना है. रिपोर्ट में कहा गया है कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में एक चौथाई से अधिक महिलाओं और तेलंगाना और पुडुचेरी में लगभग पांचवीं महिलाओं ने रक्त संबंध में शादी होने की बात कहीं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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