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Wednesday, 24 April, 2024
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2018 के बाद से केरल में निपाह का चौथा प्रकोप: बार-बार इस दक्षिणी राज्य में क्यों फैल रहा वायरस

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, निपाह की उच्च मृत्यु दर - 40-75 प्रतिशत - ने राज्य और केंद्र सरकारों को नवीनतम प्रकोप के उभरने के बाद इसके प्रसार को सीमित करने के लिए बाध्य किया.

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नई दिल्ली: केरल के कोझिकोड में घातक निपाह वायरस के ताजा प्रकोप से पांच लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई है और दो लोगों की मौत हो गई है. लगभग 700 लोग ‘संदिग्ध संक्रमण’ की सूची में हैं, जिनमें 76 ऐसे लोग शामिल हैं जिनकी पहचान उच्च जोखिम वाले संपर्कों के रूप में की गई है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, निपाह की उच्च मृत्यु दर – 40-75 प्रतिशत ने राज्य और केंद्र सरकारों को इसके प्रसार को सीमित करने के लिए बाध्य किया है.

ताजा मामला 24 वर्षीय स्वास्थ्यकर्मी का है, जो मौजूदा प्रकोप के शुरुआती मरीजों में से एक के निकट संपर्क में आया था, जिसकी पुष्टि इस सप्ताह की शुरुआत में हुई थी.

यह भारत में घातक निपाह वायरस का छठा प्रकोप है, जिसकी पहली बार 1999 में मलेशिया में पुष्टि हुई थी. भारत में पहले दो प्रकोप पश्चिम बंगाल से रिपोर्ट किए गए थे.

भारत में निपाह का सबसे घातक हमला 2001 में पहला था- जब पश्चिम बंगाल में अब तक के सबसे अधिक 66 मामले दर्ज किए गए थे और 45 की मौत हो गई थी.

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2007 में इस बीमारी ने पश्चिम बंगाल में पांच लोगों को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे सभी की मौत हो गई. हालांकि, इस वायरस के इंसानों पर फिर से हमला करने से पहले एक दशक से अधिक का अंतराल था, इस बार केरल में- इसके कारण कोझिकोड और मलप्पुरम में 18 मामले और 17 मौतें हुईं.

2018 के बाद से इस बीमारी के सभी प्रकोप केवल केरल से रिपोर्ट किए गए हैं.

अगले साल, राज्य में निपाह वायरस के दूसरे प्रकोप के दौरान, इस बार एर्नाकुलम में केवल एक मामला था और वे बच गए. 2021 में कोझिकोड में एकमात्र पुष्ट रोगी ने दम तोड़ दिया.

विशेषज्ञों का कहना है कि एक अध्ययन में कई अन्य राज्यों में चमगादड़ों की आबादी में निपाह वायरस की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं. उनका कहना है कि एक निश्चित क्षेत्र में मानव संक्रमण की सघनता को सांस्कृतिक कारकों और उस भूगोल में मानव-पशु संपर्क द्वारा समझाया जा सकता है.


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वायरस, रोग, प्रबंधन और जोखिम कारक

निपाह एक ज़ूनोटिक वायरस है (जानवरों से मनुष्यों में फैलता है) लेकिन यह दूषित भोजन के माध्यम से या सीधे लोगों के बीच भी फैल सकता है.

मलेशिया में पहली बार पहचाने गए प्रकोप के दौरान, जिसने सिंगापुर को भी प्रभावित किया, अधिकांश मानव संक्रमण बीमार सूअरों या उनके दूषित टिशूज़ के सीधे संपर्क के परिणामस्वरूप हुए. ऐसा माना जाता है कि यह संचरण सूअरों के स्राव के असुरक्षित संपर्क या किसी बीमार जानवर के टिशूज़ के असुरक्षित संपर्क के माध्यम से हुआ है.

संक्रमित लोगों में शुरुआत में बुखार, सिरदर्द या मांसपेशियों में दर्द, उल्टी और गले में खराश जैसे लक्षण विकसित होते हैं. हालांकि, कुछ लोग पूरी तरह से लक्षण रहित भी रह सकते हैं.

लक्षणों को प्रदर्शित करने वालों में, रोग के प्रारंभिक लक्षणों के बाद चक्कर आना, उनींदापन और न्यूरोलॉजिकल संकेत हो सकते हैं जो तीव्र एन्सेफलाइटिस (मस्तिष्क की सूजन) का संकेत देते हैं.

कुछ रोगियों को तीव्र श्वसन संकट और एन्सेफलाइटिस सहित असामान्य निमोनिया और गंभीर श्वसन समस्याओं का भी अनुभव हो सकता है. गंभीर मामलों में दौरे पड़ते हैं और 24 से 48 घंटों के भीतर कोमा में चले जाते हैं.

ऐसा माना जाता है कि इनक्यूबेशन अवधि (संक्रमण से लक्षणों की शुरुआत तक का अंतर) 4 से 14 दिनों तक होती है, लेकिन, कुछ मामलों में यह 45 दिनों तक की बताई गई है.

तीव्र एन्सेफलाइटिस से बचे अधिकांश लोग ठीक होने में कामयाब हो जाते हैं लेकिन उनमें दीर्घकालिक तंत्रिका संबंधी स्थितियां बताई गई हैं. लगभग 20 प्रतिशत रोगियों में दौरे और व्यक्तित्व परिवर्तन जैसे अवशिष्ट न्यूरोलॉजिकल परिणाम भी देखे गए हैं.

बहुत कम संख्या में लोग जो ठीक हो जाते हैं उन्हें बाद में दोबारा बीमारी हो जाती है या देरी से शुरू होने वाला एन्सेफलाइटिस विकसित हो जाता है.

मुंबई में फोर्टिस अस्पताल की निदेशक-इंटरनल मेडिसिन डॉ. अनीता मैथ्यू ने कहा कि पिछले कई वर्षों में इसका प्रकोप शरीर के तरल पदार्थ, उत्सर्जन सामग्री, लार और संक्रमित जानवरों या फल चमगादड़ों के स्राव के माध्यम से दूषित फल और सब्जियां खाने से हुआ है.

चिकित्सक ने कहा कि एक बार जब किसी व्यक्ति में वायरस होता है, तो निकट संपर्क में रहने वाले अन्य लोग भी संक्रमित हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, “निपाह वायरस का प्राकृतिक स्रोत फल वाले चमगादड़ हैं.” “समझ यह है कि तेजी से शहरीकरण और मूल कोर का अतिक्रमण, जहां फल खाने वाले चमगादड़ रहते हैं, संभवतः इस बीमारी के मनुष्यों में फैलने का कारण बन रहा है.”

वर्तमान में निपाह वायरस के लिए विशिष्ट कोई दवा या टीका नहीं है और गंभीर श्वसन और तंत्रिका संबंधी जटिलताओं के इलाज के लिए गहन सहायक देखभाल की सिफारिश की जाती है.

साथ ही, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, निपाह वायरस से संक्रमित लोगों के साथ निकट, असुरक्षित शारीरिक संपर्क से बचना चाहिए.

कुल मिलाकर, निपाह वायरस के प्रमाण कई जानवरों और विभिन्न देशों में मिले हैं लेकिन मनुष्यों में यह बीमारी केवल मलेशिया, सिंगापुर, बांग्लादेश और भारत से रिपोर्ट की गई है.


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बार-बार केरल क्यों?

बायोमेडिकल अनुसंधान के निर्माण, समन्वय और प्रचार के लिए भारत में शीर्ष निकाय, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक वैज्ञानिक ने दिप्रिंट को बताया कि निपाह के प्रसार का आकलन करने के लिए राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) द्वारा चल रही परियोजना में भारत में इस वायरस के कम से कम नौ राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चमगादड़ों की आबादी में मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं.

ये हैं केरल और पश्चिम बंगाल के अलावा कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, असम, मेघालय, पुडुचेरी, तमिलनाडु और गोवा.

वैज्ञानिक ने कहा, “इस सवाल का जवाब कि मनुष्यों में यह बीमारी केवल कुछ राज्यों तक ही सीमित क्यों है, खाने के पैटर्न या जानवरों और मनुष्यों के बीच संबंधों में निहित हो सकता है- सांस्कृतिक कारणों से.”

वरिष्ठ वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ग्रीन टेम्पलटन कॉलेज के फेलो और अशोका विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर हैं, ने कहा कि निपाह मुख्य रूप से फल वाले चमगादड़ों से फैलता है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “और चमगादड़ लंबी दूरी तक नहीं उड़ते- वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन चमगादड़ों को मनुष्यों के करीब लाते हैं. यह संभव है कि उस क्षेत्र में (जहां से फैलने की सूचना मिल रही है) चमगादड़ों में वायरस हो.”

जमील ने यह भी रेखांकित किया कि सुबह के समय ताज़ी ताड़ी या मीठे पेड़ का रस पीना कुछ क्षेत्रों में सांस्कृतिक है, जबकि चमगादड़ भी रात में यही पीते हैं. इससे चमगादड़ों और मनुष्यों के बीच वायरस का संचरण हो सकता है, जैसा कि भारत में बीमारी के पहले दो प्रकोपों ​​में हुआ था.”

इसके अलावा जमील ने कहा, “उच्च श्वसन संचरण की संभावना है, भले ही यह बहुत कुशल नहीं है. इसमें मौसमी तत्व भी है क्योंकि कुछ मौसमों में चमगादड़ अधिक वायरस छोड़ते हैं.”


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महामारी की संभावना वाला पैथोजन?

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, विधानसभा में निपाह संक्रमण के संबंध में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बुधवार को कहा कि केरल में देखा गया कि वायरस का प्रकार बांग्लादेश संस्करण था, जिसकी मृत्यु दर अधिक है लेकिन कम संक्रामक है.

ऊपर उद्धृत आईसीएमआर वैज्ञानिक ने कहा कि, अब तक, तीन अलग-अलग निपाह वायरस वेरिएंट की पहचान की गई है- मलेशिया एम जीनोटाइप, बांग्लादेश बी जीनोटाइप और भारत आई जीनोटाइप.

वैज्ञानिक ने कहा, “अभी तक महामारी के दौरान एनआईवी में केरल से आए नमूनों की जांच में वायरस का वैरिएंट भारत I जीनोटाइप वाला प्रतीत होता है.”

जमील ने कहा कि निपाह की महामारी क्षमता के बारे में चिंताएं दूर-दूर तक नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “इस वायरस में निश्चित रूप से महामारी की संभावना है, विशेष रूप से वनों की कटाई के कारण चमगादड़ मनुष्यों के करीब आ रहे हैं और ग्लोबल वार्मिंग के कारण चमगादड़ों पर गर्मी का तनाव बढ़ रहा है और वायरस का बहाव बढ़ रहा है. हमें निपाह वैक्सीन पर काम करना चाहिए.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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