विटामिन-के कई मायने में अहम भूमिका निभाता है जो थ्रोमबोसिस से बचाव के साथ-साथ हृदय और फेफड़ों की मांसपेशियों में लोचदार फाइबर घटने से भी रोक सकता है. कोमोर्बिड की स्थिति से बचाने में भी विटामिन-के की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसे कोविड-19 के घातक होने का जोखिम बढ़ाने का एक बड़ा कारण माना जाता है.
विटामिन-के वसा में घुलनशील विटामिन और कंपाउंड का एक समूह है, जिनमें विटामिन-के1 और के2 सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. विटामिन के2 को ज्यादा बेहतर माना जाता है क्योंकि यह रक्त में के1 की तुलना में ज्यादा समय तक रहता है. विटामिन-के1 जहां कई घंटों तक रह सकता है, वहीं के2 कुछ रूप में कई दिनों तक सर्कुलेट करता रह सकता है.
विटामिन-के का मुख्य कार्य प्रोटीन को सक्रिय करना है जो रक्त के थक्के जमने, हृदय स्वस्थ रखने और हड्डियों की मजबूती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
पालक और काले जैसी हरी पत्तीदार सब्जियों और चिकन व पोर्क जैसे मांस में बहुतायत में पाए जाने वाले विटामिन-के की कोविड-19 से पीड़ित होने और हालत गंभीर होने से रोकने में कितनी अहम भूमिका हो सकती है, इस पर वैज्ञानिक अध्ययन का अभाव है.
लेकिन इसके तमाम फायदों को देखते हुए ऑब्जर्वेशन के साथ-साथ रैंडम कंट्रोल ट्रायल के जरिये भी कोविड-19 मामले में विटामिन-के की भूमिका का आकलन करना जरूरी है, खासकर ऐसे स्थिति में जब इस बीमारी का कोई मानक इलाज अब तक ढूढ़ा नहीं जा सका है.
यहां पांच संभावित मैकेनिज्म पेश हैं जो बताते हैं कि विटामिन-के कोविड-19 को घातक स्थिति में पहुंचने से रोकने में अहम कारक हो सकता है.
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1. मैट्रिक्स ग्ला प्रोटीन
मैट्रिक्स ग्ला प्रोटीन (एमजीपी) विटामिन-के आधारित एक अवरोधक है जो नरम ऊतकों में कैल्शीफिकेशन यानी कैल्शियम का निर्माण और लोचदार फाइबर का घटना रोकता है.
एमजीपी फेफड़ों और धमनियों में लोचदार फाइबर के क्षरण यानी लचीलेपन और बदलाव की प्रक्रिया बाधित होने से बचाता है और श्वसन और रक्त संचरण को आसान बनाता है.
कोविड-19 से सबसे ज्यादा बुरी तरह प्रभावित होने वाले दो अंगों हृदय और फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए लोचदार फाइबर का क्षरण रोकने और उन्हें फिर से ठीक करने के बीच संतुलन होना बेहद जरूरी है.
2. एंडोथेलियल एस. प्रोटीन
विटामिन-के लिवर से बाहर 50 फीसदी थक्कारोधी प्रोटीन एस की सक्रियता और निर्माण में अहम भूमिका निभाता है. यह प्रोटीन लोकल थ्रोमबोसिस रोकने में काफी कारगर साबित होता है.
एंडोथेलियल सेल सतह पर यह प्रोटीन कोशिका की सतह पर मौजूद रहता है और प्रोटीन-सी कहे जाने वाले एक अन्य सक्रिय प्रोटीन की उपस्थिति में विटामिन-के आधारित क्लॉटिंग फैक्टर—प्रो-एंटीकोअंगुलेंट फैक्टर वी–को बढ़ाता है.
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3. कोमोर्बिडिटी और डेस्फोसो अनकॉर्बोसिलेटेड एमजीपी
कोमोर्बिड की स्थिति जैसे मधुमेह टाइप 2, उच्च रक्तचाप, किडनी खराब होना, मोटापा आदि कोविड-19 के ज्यादा घातक होने और जानलेवा तक साबित होने का जोखिम बढ़ाती है.
डेस्फोसो अनकॉर्बोसिलेटेड एमजीपी (डीपी-यूसीएमजीपी) विटामिन-के की कमी का पता लगाने के लिए एक बायोमार्कर जैसा है. अगस्त में विशेषज्ञ समीक्षा के बाद प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया था कि शोधकर्ताओं ने कोविड-19 रोगियों में लिवर के बाहर वाले हिस्से में विटामिन-के की गंभीर कमी के लक्षण पाए थे.
यह आकलन डीपी-यूसीएमजीपी के उच्च स्तर का पता लगने पर आधारित था. इसके उच्च स्तर का एक कारण कोमोर्बिड की स्थिति हो सकती है, जो संभवतः पर्याप्त विटामिन-के अभाव में और बिगड़ गई होगी.
अध्ययनों से पता चलता है कि डायबिटीज मेलिटस, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, पुराने किडनी रोग और मोटापे जैसी विभिन्न कोमोर्बिड स्थितियों में मरीजों में डीपी-यूसीएमजीपी का स्तर काफी ज्यादा पाया गया है.
डीपी-यूसीएमजीपी और कोमोर्बिडिटी के बीच इस तरह का संबंध मिलने से लगता है कि विटामिन-के की कमी कोमोर्बिड स्थिति आने या उसके और गंभीर होने का जोखिम बढ़ा सकती है. हालांकि, नियमित शारीरिक कार्यों में ज्यादा उपयोग होने की वजह से विटामिन-के की जरूरत बढ़ना भी डीपी-यूसीएमजीपी में वृद्धि का एक और कारण हो सकता है.
4. विटामिन-डी और विटामिन-के के बीच का तालमेल
विटामिन-डी और विटामिन-के एक-दूसरे से संबद्ध हैं क्योंकि ये एक ही तरह के आहार में पाए जाते हैं.
कोविड-19 की गंभीरता और मृत्युदर के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण इम्युनोमोडायलेटरी कारक के तौर पर विटामिन-डी के बारे में पहले से ही व्यापक अध्ययन किया जा रहा है.
विटामिन-के और डी के बीच एक प्रतिरोधी संबंध भी है, जैसा 2001 में 16 चूहों पर किए गए अध्ययन से सामने आया था.
अध्ययन के अनुसार चूहों को जब विटामिन-डी की उच्च खुराक दी गई तो एमजीआर संश्लेषण में वृद्धि से उनके विटामिन-के भंडार में खासी कमी आ गई. शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे लोचदार फाइबर में कैल्शीफिकेशन के साथ इसका क्षरण भी बढ़ गया.
इस तरह से विटामिन-के की कमी की स्थिति में विटामिन-डी की मात्रा बढ़ना फेफड़ों और रक्तवाहिकाओं की सेहत को खतरे में डाल सकती है.
इसी वर्ष एक अध्ययन में बताया गया है कि विटामिन-के की कमी के बीच विटामिन-डी सप्लीमेंट दिया जाना स्थिर हालत वाले किडनी प्राप्तकर्ताओं की समय पूर्व मौत का कारण बनता है. यह संबंध बताता है कि किसी मरीज को विटामिन-डी की खुराक देने से पहले यह देखना चाहिए कि कहीं विटामिन-के की कमी तो नहीं है.
5. प्रतिरक्षा और सूजन
विटामिन-के की स्थिति सूजन और मिनरलाइजेशन प्रक्रिया के अलावा उम्र से जुड़ी बीमारियां शुरू होने में सुरक्षात्मक भूमिका निभा सकती है.
विटामिन-के न्यूक्लियर फैक्टर केबी(एनएफकेबी) संकेतकों को उभरने से रोककर एक एंटी-इनफ्लेमेटरी एजेंट के रूप में कार्य कर सकता है, जो सूजन आने का संभावित कारक है. एक अच्छे एंटीऑक्सिडेंट के तौर पर विटामिन-के सूजन का कारण बनने वाले रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पेशीज के जेनरेशन और एक्यूमुलेशन को बाधित करके ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के खिलाफ सुरक्षात्मक असर भी डाल सकता है.
आहार स्रोत
विटामिन-के1 : पौधों से उत्पादित यह विटामिन मानव आहार में विटामिन-के का प्रमुख स्वरूप है.
विटामिन-के2 : किण्वित डेयरी उत्पादों, पोर्क, चिकन और अंडे की जर्दी में पाया जाता है.
खाद्य और कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वयस्कों के लिए प्रतिदिन 75 से 90 माइक्रोग्राम विटामिन-के जरूरी होता है.
हालांकि, किसी को कितना विटामिन-के लेने की जरूरत है यह किसी प्रोफेशनल न्यूट्रिशनिस्ट की सलाह लेकर ही तय किया जाना चाहिए.
(लेखक एक क्लीनिकल और पब्लिक हेल्थ न्यूट्रिशनिस्ट और शोधकर्ता हैं)
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