नई दिल्ली: मोदी सरकार के एक्सपर्ट पैनल ने भारतीय दवा निर्माता से कहा है कि अपनी प्रयोगात्मक कोविड-19 दवा इटॉलिज़ुमाब की सिर्फ ‘सुरक्षा’ ही नहीं, बल्कि उसके ‘असर’ पर भी निगाह रखें.
बायोलॉजिक दवा इटॉलिज़ुमाब एक ‘मानवकृत मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ है, जिसे बायोकॉन ने क्यूबा के सेंटर फॉर मॉलिक्युलर इम्यूनोलॉजी के सहयोग से तैयार किया है.
इटॉलिज़ुमाब को, जो पहले से ही त्वचा की एक बीमारी, सोरियासिस के इलाज के लिए एक अनुमोदित दवा है, 12 जुलाई को शीर्ष विनियामक ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की ओर से, कोरोनावायरस के इलाज के लिए, ‘प्रतिबंधित आपातकालीन उपयोग’ की अनुमति मिल गई थी.
बेंगलुरू स्थित दवा निर्माता ने पिछले महीने, पहले से स्वीकृत चौथे दौर के क्लीनिकल ट्रायल में संशोधन के लिए, सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (एसईसी) के सामने प्रस्ताव पेश किया था.
पैनल ने- जो नई दवाओं और वैक्सीन्स की मंज़ूरी के आवेदनों पर, डीसीजीआई को सलाह देता है- कंपनी को सलाह दी है कि ‘क्लीनिकल ट्रायल के प्रमुख लक्ष्य’ के तहत, सिर्फ दवा की सुरक्षा तक सीमित न रहकर, उसके ‘असर’ की भी निगरानी करें.
26 नवंबर को हुई मीटिंग में एसईसी ने कहा, ‘कंपनी को अपने बुनियादी लक्ष्य में बदलाव करके, सुरक्षा मूल्यांकन के अतिरिक्त उसमें नैदानिक परिणाम प्रभावकारिता मूल्यांकन को भी शामिल करना चाहिए’. इस मीटिंग के मिनट्स हाल ही में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की वेबसाइट पर अपलोड किए गए, सीडीएससीओ स्वास्थ्य मंत्रालय का एक अंग है, जो देश में दवाओं और वैक्सीन्स की गुणवत्ता को नियमित करता है.
‘इसी हिसाब से फर्म को एक संशोधित प्रस्ताव भेजना चाहिए, जिस पर कमेटी आगे विचार कर सके.
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आमतौर पर, चौथे दौर के ट्रायल्स, ‘मार्केटिंग के बाद की निगरानी’ के रूप में किए जाते हैं, जिन्हें ‘पुष्टीकरण परीक्षण’ भी कहा जाता है. इस फेज़ में दवा के गंभीर विपरीत रिएक्शंस का डेटा जमा किया जाता है, और उसे नियामक को भेजा जाता है.
दवा का ‘प्रभाव’ आमतौर से, तीसरे दौर के ट्रायल्स में स्थापित किया जाता है, चौथे में नहीं. लेकिन डीसीजीआई ने भारत में इस दवा को, अनिवार्य फेज़ 3 क्लीनिकल ट्रायल्स के बिना ही मंज़ूरी दे दी थी. उसके इस क़दम से जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भौंहें तन गईं थीं, क्योंकि तीसरे दौर के ट्रायल्स को, किसी भी प्रयोगात्मक दवा के असर के, बेहतर मूल्यांकन के लिए अहम माना जाता है.
बायोकॉन के प्रवक्ता ने दिप्रिंट से कहा कि ‘हम सलाह के हिसाब से चलेंगे, और जो ज़रूरी होगा वो करेंगे’.
2,000 कोविड मरीज़ों पर पहले ही इस्तेमाल हो चुकी है दवा
कंपनी ने पैनल को सूचित किया कि इटॉलिज़ुमाब, जो कोरोनावायरस मरीज़ों के इलाज के, क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल में शामिल होने के लिए, नेशनल कोविड-19 टास्क फोर्स को प्रभावित करने में नाकाम रही थी, आपात इस्तेमाल की अनुमति के तहत, क़रीब ‘2,000 कोविड-19 मरीज़ों’ को दी गई है.
एसईसी ने कंपनी से ‘अभी तक का सुरक्षा डेटा, जिसमें मृत्यु का डेटा भी शामिल है’ पेश करने के लिए कहा है. मृत्यु डेटा से पता चलता है कि कोविड से जुड़ी बीमारी में, मौत को रोकने में दवा कितनी कारगर है.
जुलाई में, कंपनी ने घोषणा की थी कि पूरे देश में, चौथे दौर का ट्रायल किया जाएगा, जो 10-15 अस्पतालों में 200 मरीज़ों पर किया जाएगा.
उससे पहले कंपनी ने कहा था, ‘चौथे दौर के नतीजों से कोविड-19 की जटिलताओं में, इटॉलीज़ुमाब के असर के सबूत सामने आएंगे’.
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खुलासा: बायोकॉन के संस्थापक किरण मजुमदार शॉ दिप्रिंट के प्रतिष्ठित निवेशकों में से हैं. निवेशकों के विवरण के लिए कृपया यहां क्लिक करें.
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